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रविवार, 31 मई 2015

चिड़िया दिल से हारी कितनी

मुरझाई टहनी प्यारी कितनी
चिड़िया दिल से हारी कितनी

स्वप्न संजोये अब भी मन में
प्रेम डोर यह भारी कितनी

चिंहुँक रही है फिर भी देखो
प्यारी  इसको यारी कितनी

खुश बहुत मुरझाई डाली
पावन प्रीत हमारी कितनी

साथ निभाया हर हालत में
हम लोगों से न्यारी  कितनी....

[ रतनसिहं चम्पावत ]

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