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शनिवार, 30 मई 2015

मोहब्बत ना सही मुकदमा ही कर दे

मोहब्बत ना सही मुकदमा ही कर दे मुझ पर/कम से कम तारीख दर तारीख मुलाक़ात तो होगी...

ये ना पूछ कि शिकायतें कितनी  है तुझसे ऐ जिंदगी......सिर्फ  ये बता कि तेरा कोई और सितम बाकी  तो नहीं है ।

कितने बदल गये ये आजकल के रिश्ते/चन्द मुस्कानों के लिए चुटकुले सुनाने पड़ते हैं

ताप्ज्जुब न कीजियेगा अगर कोई दुश्मन भी आपकी खैरियत पूछ जायें/ये वो दौर है, जहाँ हर मुलाक़ात में मक़सद छुपे होते हैं !

ना जाने क्यों कोसते हैं लोग बदसूरती को/बर्बाद करने वाले तो हसीन चेहरे होते हैं।

डूबे हुओं को हमने बिठाया था अपनी कश्ती में यारों/और फिर कश्ती का बोझ कहकर, हमें ही उतार दिया गया !

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