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शनिवार, 30 मई 2015

बिक रहे थे रिश्ते

✳ कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...

✳ बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में..

✳ कांपते होठों से मैंने पुछा,
"क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"

✳ दूकानदार बोला:

✳ "कौनसा लोगे..?

✳ बेटे का ..या बाप का..?

✳ बहिन का..या भाई का..?

✳ बोलो कौनसा चाहिए..?

✳ इंसानियत का.या प्रेम का..?

✳ माँ का..या विश्वास का..?

✳ बाबूजी कुछ तो बोलो कौनसा चाहिए.चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...

✳ मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?

✳ दुकानदार नम आँखों से बोला:

✳ "संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है ..,माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे,

✳ और जिस दिन ये बिक जायेगा... उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..."

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