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शनिवार, 30 मई 2015

पल गुजारे थे जो तन्हाई में

खैर अच्छा ही हुआ कि ये मुमकिन न हुआ
मेरे इस रूह का कोई भी पैरहन न हुआ

पल गुजारे थे जो तन्हाई में रोते-रोते
इस तरीके से भी मेरा गम कुछ कम न हुआ

उड़ रहा था मेरा दिल भी परिंदों की तरह
तीर जब लग गई तो कोई भी मरहम न हुआ

देख लेना था मुझे भी हर सितम की अदा
ऐ सनम तेरे जैसा मेरा कोई दुश्मन न हुआ

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