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मंगलवार, 12 जून 2018

लम्हे चुरा : A funny Hindi poem

लम्हे चुरा 


ज़िन्दगी से लम्हे चुरा, बटुए मे रखता रहा!
फुरसत से खरचूंगा, बस यही सोचता रहा।
उधड़ती रही जेब, करता रहा तुरपाई
फिसलती रही खुशियाँ, करता रहा भरपाई।
इक दिन फुरसत पायी, सोचा .......खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े, वो लम्हे खर्च आऊं।
खोला बटुआ..लम्हे न थे, जाने कहाँ रीत गए!
मैंने तो खर्चे नही, जाने कैसे बीत गए !!
फुरसत मिली थी सोचा, खुद से ही मिल आऊं।
आईने में देखा जो, पहचान  ही न पाऊँ।
ध्यान से देखा बालों पे, चांदी सा चढ़ा था।
था तो मुझ जैसा, जाने कौन खड़ा था।
                                                  -  चंद शब्द- हृदय से

सोमवार, 4 जून 2018

कामयाबी

कामयाबी

उन्हें कामयाबी में सुकून नजर आया
तो वो दौड़ते गए,
हमें सुकून में कामयाबी दिखी
तो हम ठहर गए...!

ख़्वाईशो के बोझ में बशर
तू क्या क्या कर रहा है..
इतना तो जीना भी नहीं
जितना तू मर रहा है.
..