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मंगलवार, 26 मई 2015

मैं अपरिचित हूँ , नही

मैं अपरिचित हूँ , नहीं,  विश्वास बनकर देखिए,
उड. रहा कब से , कहां? आकाश बनकर देखिये,
आप बादल हैं बरस जाऐं, जहां चाहें ,जभी,
पर पपीहे की अकिंचन श्वास बनकर देखिए,।
सिर्फ परछाई नहीं, कुछ तथ्य हूँ, कुछ कथ्य हूँ,
फूल की मृदु गंध हूँ, मधुमास बनकर देखिए,।
एक वृंदावन बसा है आप के मन में सदा,
राधिका की पीर का एहसास बनकर देखिए,।
नेह के रिश्ते सभी जुड. जाएंगे, इस मोड. पर,
आप थोडी. देर को भुजपाश बनकर देखिए,।
जिंदगी दो बूँद पानी के बिना है कुछ नहीं,
रेत में भटके हिरन की प्यास बनकर देखिए,।

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