नीम्बू की अभिलाषा
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चाह नहीं मैं लेमोनेड के
बोतल में बेचा जाऊँ,
चाह नहीं, दाल-मोंठ में
मिल शराबी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सलाद के ऊपर
जहां तहां छिड़का जाऊँ,
चाह नहीं, घर के किवाड़ पर
लटक भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस रन वे पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि की रक्षा करने
जिस पर उड़ते राफेल अनेक ।।
(श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी से सादर क्षमा याचना करते हुए...)