दौर-ए-इलेक्शन में कहां कोई इंसान नज़र आता है।
कोई हिन्दू, कोई दलित, तो कोई मुसलमान नज़र आता है।
बीत जाता है जब इलाकों से इलेक्शन का दौर, तब हर इंसान रोटी के लिए परेशान नज़र आता है।
कुछ तो खासियत है, इस प्रजातंत्र में,
कुछ तो बात है, इस करामाती मंत्र में !
वोट देता हूँ फकीरों को,
कम्बख़्त शहंशाह बन जाते हैं,
और हम हर बार, वहीं के वहीं रह जाते हैं..!!
रह जाते हैं हम हर बार, ऊँगली रंगाने के लिए!
नए फकीरों को फिर, शहंशाह बनाने के लिए !
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