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शनिवार, 9 मई 2015

महाराणा प्रताप पर एक कविता

महाराणा प्रताप पर एक कविता
राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था।
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।।
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई।
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई।
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।।
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया।
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।।
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ।
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।

खुश हूँ


             
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं
"काम में खुश हूं," आराम में खुश हू

"आज पनीर नहीं," दाल में ही खुश हूं
"आज गाड़ी नहीं," पैदल ही खुश हूं

"दोस्तों का साथ नहीं," अकेला ही खुश हूं
"आज कोई नाराज है," उसके इस अंदाज से ही खुश हूं

"जिस को देख नहीं सकता," उसकी आवाज से ही खुश हूं
"जिसको पा नहीं सकता," उसको सोच कर ही खुश हूं

"बीता हुआ कल जा चुका है," उसकी मीठी याद में ही खुश हूं
"आने वाले कल का पता नहीं," इंतजार में ही खुश हूं

"हंसता हुआ बीत रहा है पल," आज में ही खुश हूं
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं

"अगर दिल को छुआ, तो जवाब देना"
"वरना बिना जवाब के भी खुश हूं.

शुक्रवार, 8 मई 2015

गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार

गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार।
इनसे क्या होगा,अगर बदले नहीँ विचार।

  हर विचार दुबारा पढना, गहराई तक सोचना, फिर अगला विचार पढना,  खासकर वक्त के बारे में

"इस दुनियाँ के हर शख्स को नफरत है "झूठ" से...

मैं परेशान हूँ ये सोचकर, कि फिर ये "झूठ" बोलता कौन है"।

"निंदा "तो उसी की होती है
जो"जिंदा" है।
मरे हुए कि तो बस तारीफ ही होती हैं।

महसूस जब हुआ कि सारा शहर,
मुझसे जलने लगा है,
तब समझ आ गया कि अपना नाम भी,
चलने लगा है”…

सदा उनके कर्जदार रहिये जो आपके लिए कभी खुद का वक्त नहीं देखता है,
और
सदा उनसे वफ़ादार रहिये जो व्यस्त होने के बावजूद भी आपके लिए वक़्त निकालता है।

मोक्ष  का  एक  ही  मार्ग  है।
         और  वह  बिल्कुल  सीधा  ही  है।
            अब
मुशकिल   उन्हें  होती  है।
       जिनकी  चाल  ही  टेड़ी  है।

हम जब दिन की शुरुआत करते है,
तब लगता है की, पैसा ही जीवन है ..
लेकिन, जब शाम को लौट कर घर आते है,
तब लगता है, शान्ति ही जीवन है ।

फलदार पेड़ और गुणवान व्यक्ति ही झुकते है ,
सुखा पेड़ और मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।

कदर किरदार की होती है… वरना…
कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है.......

पानी मर्यादा तोड़े तो "विनाश"
                          "और"
         वाणी मर्यादा तोड़े तो "सर्वनाश"

इसलिए हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखो।

बुधवार, 6 मई 2015

सुकून मिलता है

!! सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर..
चीख भी लेता हूँ और आवाज भी
नही होती...!!

आओ  निकाह-ऐ-इश्क कर लेते है, तुम दहेज़ में अपने सारे गम ले आओ, मैं हक़-ऐ-मेहर में तमाम खुशियाँ दे देता हूँ....!!

आसान नही है हमसे यूँ शायिरयों में जीत पाना !
हम हर एक शब्द मोहब्बत में हार कर लिखते हैं !!

सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद;
क्या करते हम भी यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।
एक उसूल पर गुजारी है ज़िन्दगी मैंने....
जिसको अपना माना उसे कभी परखा नहीं...!!

जमाने की नजर मेँ थोड़ा सा अकड कर चलना
सीख ले ऐ
दोस्त........
मोम जैसा दिल लेकर फिरोगे तो, लोग जलाते
ही रहेँगेl

जिंदगी की दौड़ में
तजुर्बा थोडा कच्चा रह गया,

हमने न सीखा फरेब, दिल बच्चा रह गया !!

"इश्क" का धंधा ही बंद कर दिया साहेब।.... मुनाफे में “जेब” जले.. और घाटे में “दिल”!!!!

बारूद मेरे अन्दर का भीग गया तेरे आंसुओं से..
वरना ये दिल एक बड़ी घटना को अंजाम दे देता..
"मुकद्दर में लखा के लाये हैं दर-ब-दर भटकना...

इसलिये मौसम कोई भी हो परिंदे परेशान ही रहते हैं..."

मंजिले तो हमेशा खुशनसीबो को नसीब से मिलती हेैे...
हमतो दिवाने हैे...
हमेशा सफर मे ही रहेगेँl
कभी हो मुखातिब तो कहूँ भी सही की क्या दर्द है मेरा,
अब ख़त मे पूँछोगे तो खैरियत ही कहूँगा।

किताबों की तरह हैं हम भी….
अल्फ़ाज़ से भरपूर, मगर ख़ामोश….!!

आशाएं ऐसी हो जो

आशाएं ऐसी हो जो-
    मंज़िल  तक ले जाएँ,

           मंज़िल  ऐसी हो जो-
          जीवन जीना सीखा दे,

    जीवन ऐसा हो जो-
   संबंधों की कदर करे,

      और संबंध ऐसे हो जो-
  याद करने को मजबूर करदे ।
     
        

मंगलवार, 5 मई 2015

"रिश्ता" दिल से होना चाहिए

"रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,
"नाराजगी" शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं!

सड़क कितनी भी साफ हो
"धुल" तो हो ही जाती है,
इंसान कितना भी अच्छा हो
"भूल" तो हो ही जाती है!!!

आइना और परछाई के
जैसे मित्र रखो क्योकि
आइना कभी झूठ नही बोलता और परछाई कभी साथ नही छोङती......

खाने में कोई 'ज़हर' घोल दे तो
एक बार उसका 'इलाज' है..
लेकिन 'कान' में कोई 'ज़हर' घोल दे तो,
उसका कोई 'इलाज' नहीं है।

"मैं अपनी 'ज़िंदगी' मे हर किसी को
'अहमियत' देता हूँ...क्योंकि
जो 'अच्छे' होंगे वो 'साथ' देंगे...
और जो 'बुरे' होंगे वो 'सबक' देंगे...!!

अगर लोग केवल जरुरत पर
ही आपको याद करते है तो
बुरा मत मानिये बल्कि
गर्व कीजिये  क्योंकि "
मोमबत्ती की याद तभी आती है,
जब अंधकार होता है।"

जो भाग्य में है

"जो भाग्य में है , वह
               भाग कर आएगा,
जो नहीं है , वह
          आकर भी भाग जाएगा...!"

यहाँ सब कुछ बिकता है ,
         दोस्तों रहना जरा संभाल के ,
बेचने वाले हवा भी बेच देते है ,
                    गुब्बारों में डाल के ,

सच बिकता है , झूट बिकता है,
                   बिकती है हर कहानी ,
तीनों लोक में फेला है , फिर भी
                  बिकता है बोतल में पानी ,

कभी फूलों की तरह मत जीना,
          जिस दिन खिलोगे ,
                  टूट कर बिखर्र जाओगे ,
जीना है तो पत्थर की तरह जियो;
          जिस दिन तराशे गए ,
                 "भगवान" बन जाओगे....!!

रविवार, 3 मई 2015

लौट आता हूँ वापस घर की तरफ...

लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार  पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”

दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...

बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!

भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!

हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.

"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,

पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं।

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...

पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम

गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।

अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करेc

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नही तो, कल निकलेगा।

अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।

मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।

ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा।

जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।

कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।.....

जाने क्यू

जाने क्यूं
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नही होते।
जाने क्यूं
अब मस्त मौला मिजाज नही होते।

पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।
जाने क्यूं
अब चेहरे,
खुली किताब नही होते।

सुना है
बिन कहे
दिल की बात
समझ लेते थे।
गले लगते ही
दोस्त हालात
समझ लेते थे।

तब ना फेस बुक
ना स्मार्ट मोबाइल था
ना फेसबुक
ना ट्विटर अकाउंट था
एक चिट्टी से ही
दिलों के जज्बात
समझ लेते थे।

सोचता हूं
हम कहां से कहां आ गये,
प्रेक्टीकली सोचते सोचते
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से
समस्या का समाधान
कहां पूछता है
अब बेटा बाप से
उलझनों का निदान
कहां पूछता है
बेटी नही पूछती
मां से गृहस्थी के सलीके
अब कौन गुरु के
चरणों में बैठकर
ज्ञान की परिभाषा सीखे।

परियों की बातें
अब किसे भाती है
अपनो की याद
अब किसे रुलाती है
अब कौन
गरीब को सखा बताता है
अब कहां
कृण्ण सुदामा को गले लगाता है

जिन्दगी मे
हम प्रेक्टिकल हो गये है
मशीन बन गये है सब
इंसान जाने कहां खो गये है!

इंसान जाने कहां खो गये है 
इंसान जाने कहां खो गये है....!!!!

शुक्रवार, 1 मई 2015

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा।
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।।

माना कि तुम लफ़्ज़ों के बादशाह हो

बस एक करवट ज्यादा ले लूं किसी रोज़ सोते
वक़्त,
माँ आज भी आकर पूछ लेती है "बेटा, तबियत
तो ठीक है
_______________

रूठ कर तुम चली गइ हो तो जरा इतना बता दो
ख्वाबों में आने का अधिकार तुम्हे किसने दे दिया है

माना कि तुम लफ़्ज़ों के बादशाह हो,मगर हम भी खामोशियों पर राज़ करते हैं!

तकलीफें तो हज़ारों हैं इस ज़माने में….
बस कोई अपना नज़रअंदाज़ करे तो बर्दाश्त नहीं होता…

इत्र से कपड़ो का महकना बड़ी बात नही
मजा तब है जब खुशबू आपके किरदार से आए

रख लो दिल में सम्भालकर थोङी सी याद मेरी..!
रह जाओ जब तन्हा बहुत काम आएगें हम…!!

मजबूरियॉ ओढ के निकलता हूं घर से आजकल, वरना शौक तो आज भी है बारिशों में भीगनें का

ना शौक दीदार का… ना फिक्र जुदाई
की, बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग जो…
मोहब्बत नहीँ करतेँ

फ़र्क़ नहीं पड़ता माला को,
गर कोई मोती टूट जाये।
पर धागे का हाल पूछना ,
सब खाली खाली सा हो जाता है।

रविवार, 26 अप्रैल 2015

सुकून उतना ही देना

          सुकून उतना ही देना
  प्रभु जितने से जिंदगी चल जाए,
     औकात बस इतनी देना कि
        औरों  का भला हो जाए,
    रिश्तो में गहराई इतनी हो कि
          प्यार से निभ जाए,
    आँखों में शर्म इतनी देना कि
       बुजुर्गों का मान रख पायें,
     साँसे पिंजर में इतनी हों कि
        बस नेक काम कर जाएँ,
          बाकी उम्र ले लेना कि
      औरों पर बोझ न बन जाएँ !!

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

Ahista chal zindagi

Ahista chal zindagi, abhi kai karz chukana baaki hai.

Kuch dard mitana baaki hai, kuch farz nibhana baaki hai.

Raftaar mein tere chalne se kuchh rooth gaye, kuch chhut gaye.

Roothon ko manana baaki hai, roton ko hasana baki hai.

Kuch hasraatein abhi adhuri hain, kuch kaam bhi aur zaruri hai.

Khwahishen jo ghut gayi is dil mein, unko dafnana baki hai.

Kuch rishte ban kar toot gaye, kuch judte-judte chhut gaye.

Un tootte-chhutte rishton ke zakhmon ko mitana baki hai.

Tu aage chal main aata hoon, kya chhod tujhe ji paunga?

In saanson par haqq hai jinka, unko samjhaana baaki hai.

Aahista chal zindagi, abhi kai karz chukana baki hai...

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

नज़र रखो

         नज़र रखो अपने 'विचार' पर,
            क्योंकि वे ''शब्द'' बनते हैँ।

            नज़र रखो अपने 'शब्द' पर,
             क्योंकि वे ''कार्य'' बनते हैँ।

             नज़र रखो अपने 'कार्य' पर,
           क्योंकि वे ''स्वभाव'' बनते हैँ।

           नज़र रखो अपने 'स्वभाव' पर,
            क्योंकि वे ''आदत'' बनते हैँ।

           नज़र रखो अपने 'आदत' पर,
            क्योंकि वे ''चरित्र'' बनते हैँ।

          नज़र रखो अपने 'चरित्र' पर,
      क्योंकि उससे ''जीवन आदर्श'' बनते हैँ।

प्रेम पथिक पगुराता चल

प्रेम पथिक पगुराता चल
तरुण तृषा तरसाता चल
प्रेम........................

         लसत लोल लोचन ललित
         सहज सरल संकुचाता चल
         प्रेम................

चपल चारु चंचल चितवन
बाण बंकिम बरसाता चल
प्रेम .......................

       अलस अलक आतुर अधर
        मादक मधु महकाता चल
       प्रेम........................

उर उमंग अतिरेक अनंग
मन मयूर मदमाता चल
प्रेम..........

      .विरह विकल व्याकुल व्यथित
       देह  दाह  दहकाता   चल
       प्रेम...................

प्रेम प्रभू पावन प्रसाद
दिव्य दरस दरसाता चल
प्रेम.....................
( RATAN SINGH CHAMPAWAT )

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

आहिस्ता चल जिंदगी

आहिस्ता  चल  जिंदगी,अभी
कई  कर्ज  चुकाना  बाकी  है
कुछ  दर्द  मिटाना   बाकी  है
कुछ   फर्ज निभाना  बाकी है
   रफ़्तार  में तेरे  चलने से
   कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
   रूठों को मनाना बाकी है
   रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
    कुछ हसरतें अभी  अधूरी हैं
    कुछ काम भी और जरूरी हैं
    जीवन की उलझ  पहेली को
    पूरा  सुलझाना  बाकी  है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना ,क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह   बात   बताना  बाकी  है
     आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी
     कई कर्ज चुकाना बाकी    है
     कुछ दर्द मिटाना   बाकी   है  
     कुछ  फर्ज निभाना बाकी है !

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

जब मैं छोटा था

गुलज़ार साहब की कविता :-
जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है
मेरे घर से “स्कूल” तक का
वो रास्ता,
क्या क्या
नहीं था वहां,
चाट के ठेले,
जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले
सब कुछ,
अब वहां
“मोबाइल शॉप”,
“विडियो पार्लर” हैं,
फिर भी
सब सूना है..
शायद
अब दुनिया
सिमट रही है…
.
.
.
जब
मैं छोटा था,
शायद
शामें बहुत लम्बी
हुआ करती थीं…
मैं हाथ में
पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी
“साइकिल रेस”,
वो बचपन के खेल,
वो
हर शाम
थक के चूर हो जाना,
अब
शाम नहीं होती,
दिन ढलता है
और
सीधे रात हो जाती है.
शायद
वक्त सिमट रहा है..
जब
मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी
हुआ करती थी,
दिन भर
वो हुजूम बनाकर
खेलना,
वो
दोस्तों के
घर का खाना,
वो
लड़कियों की
बातें,
वो
साथ रोना…
अब भी
मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती
जाने कहाँ है,
जब भी
“traffic signal”
पर मिलते हैं
“Hi” हो जाती है,
और
अपने अपने
रास्ते चल देते हैं,
होली,
दीवाली,
जन्मदिन,
नए साल पर
बस SMS आ जाते हैं,
शायद
अब रिश्ते
बदल रहें हैं..
.ं
जब
मैं छोटा था,
तब खेल भी
अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई,
लंगडी टांग,
पोषम पा,
टिप्पी टीपी टाप.
अब
internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद
ज़िन्दगी
बदल रही है.
.
.
जिंदगी का
सबसे बड़ा सच
यही है..
जो अकसर क़ब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर
लिखा होता है…
“मंजिल तो
यही थी,
बस
जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते”
.
ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है…
कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल
सिर्फ सपने में ही है..
अब
बच गए
इस पल में..
तमन्नाओं से भर
इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.
कुछ रफ़्तार
धीमी करो,
मेरे दोस्त,
और
इस ज़िंदगी को जियो..
खूब जियो मेरे दोस्त….. ।।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

एक  विवाहित बेटी का पत्र उसकी माँ के नाम

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

अब मेरी सुबह 6 बजे होती है और रात 12 बज जाती है, तब

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

सबको गरम गरम परोसती हूँ, और खुद ठंढा ही खा लेती हूँ, तब

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

जब कोई बीमार पड़ता है तो
एक पैर पर उसकी सेवा में लग जाती हूँ,

और जब मैं बीमार पड़ती हूँ
तो खुद ही अपनी सेवा कर लेती हूँ, तब

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

जब रात में सब सोते हैं,
बच्चों और पति को चादर ओढ़ाना नहीं भूलती,

और खुद को कोई चादर ओढाने वाला नहीं, तब

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

सबकी जरुरत पूरी करते करते खुद को भूल जाती हूँ,
खुद से मिलने वाला कोई नहीं, तब

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

यही कहानी हर लड़की की शायद शादी के बाद हो जाती है

कहने को तो हर आदमी शादी से पहले कहता है

"माँ की याद तुम्हें आने न दूँगा"

पर, फिर भी क्यों?

"माँ तुम बहुत याद आती हो"

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।
अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।
ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!
एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।.