!! सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर..
चीख भी लेता हूँ और आवाज भी
नही होती...!!
आओ निकाह-ऐ-इश्क कर लेते है, तुम दहेज़ में अपने सारे गम ले आओ, मैं हक़-ऐ-मेहर में तमाम खुशियाँ दे देता हूँ....!!
आसान नही है हमसे यूँ शायिरयों में जीत पाना !
हम हर एक शब्द मोहब्बत में हार कर लिखते हैं !!
सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद;
क्या करते हम भी यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।
एक उसूल पर गुजारी है ज़िन्दगी मैंने....
जिसको अपना माना उसे कभी परखा नहीं...!!
जमाने की नजर मेँ थोड़ा सा अकड कर चलना
सीख ले ऐ
दोस्त........
मोम जैसा दिल लेकर फिरोगे तो, लोग जलाते
ही रहेँगेl
जिंदगी की दौड़ में
तजुर्बा थोडा कच्चा रह गया,
हमने न सीखा फरेब, दिल बच्चा रह गया !!
"इश्क" का धंधा ही बंद कर दिया साहेब।.... मुनाफे में “जेब” जले.. और घाटे में “दिल”!!!!
बारूद मेरे अन्दर का भीग गया तेरे आंसुओं से..
वरना ये दिल एक बड़ी घटना को अंजाम दे देता..
"मुकद्दर में लखा के लाये हैं दर-ब-दर भटकना...
इसलिये मौसम कोई भी हो परिंदे परेशान ही रहते हैं..."
मंजिले तो हमेशा खुशनसीबो को नसीब से मिलती हेैे...
हमतो दिवाने हैे...
हमेशा सफर मे ही रहेगेँl
कभी हो मुखातिब तो कहूँ भी सही की क्या दर्द है मेरा,
अब ख़त मे पूँछोगे तो खैरियत ही कहूँगा।
किताबों की तरह हैं हम भी….
अल्फ़ाज़ से भरपूर, मगर ख़ामोश….!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें