जख्म
लोग शोर से जाग जाते हैं साहब, मुझे एक इंसान की ख़ामोशी सोने नही देती !!!
झूठी हँसी से ...जख्म और बढ़ता गया..
इससे बेहतर था ...खुलकर रो लिए होते..
कितना मुश्किल हैं जीना...!!!
जिसके लिये जीना... उसके बिना जीना.
आँसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ जिंदगी ,
ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके ..!!
[रह गयी है कुछ 'कमी' तो, शिकायत क्या है ,
इस जहाँ में सब 'अधूरा ' है ,मुकम्मल क्या है
रोकने की कोशिश तो बहुत की पलकों ने
पर इश्क मे पागल थे आंसू खुदखुशी करते रहे…
बड़े याद आते हैं वो भूले बिसरे दिन,
कुछ तेरे साथ......कुछ तेरे बिन...!
ये जीवन है...साहेब..
*उलझेंगे नहीं,
*तो सुलझेंगे कैसे...
*और बिखरेंगे नहीं,
*तो निखरेंगे कैसे....
खुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो,
आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो,
शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो,
दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुसवा न करो।
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