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शनिवार, 29 जुलाई 2023

हिचकियाँ

हिचकियाँ


"दिल में सिर्फ आप हो और कोई खाश कैसे होगा, 


यादों में आपके सिवा कोई पास कैसे होगा, 


हिचकियाँ कहती हैं आप मुझे याद करते हो, 


पर बोलोगे नहीं तो मुझे ये एहसास कैसे होगा."

इम्तिहान

इम्तिहान


"जाना कहा था और कहां आ गए,
दुनिया में बन कर मेहमान आ गए,
अभी तो प्यार की किताब खोली थी,
और न जाने कितने इम्तिहान आ गए।"




सोमवार, 4 जून 2018

कामयाबी

कामयाबी

उन्हें कामयाबी में सुकून नजर आया
तो वो दौड़ते गए,
हमें सुकून में कामयाबी दिखी
तो हम ठहर गए...!

ख़्वाईशो के बोझ में बशर
तू क्या क्या कर रहा है..
इतना तो जीना भी नहीं
जितना तू मर रहा है.
..



शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

चिराग

चिराग

मैं तो चिराग हुँ 

तेरे आशियाने का,

 कभी ना कभी 

तो बुझ जाऊंगा,

आज शिकायत है 

तुझे मेरे उजाले से, 

कल अँधेरे में बहुत याद आऊंगा..




रविवार, 17 सितंबर 2017

जख्म

जख्म


लोग शोर से जाग जाते हैं साहब, मुझे एक इंसान की ख़ामोशी सोने नही देती !!!


झूठी हँसी से ...जख्म और बढ़ता गया..


इससे बेहतर था ...खुलकर रो लिए होते..


कितना मुश्किल हैं जीना...!!!


जिसके लिये जीना... उसके बिना जीना.


आँसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ जिंदगी ,


ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके ..!!


[रह गयी है कुछ 'कमी' तो, शिकायत क्या है ,


इस जहाँ में सब 'अधूरा ' है ,मुकम्मल क्या है


रोकने की कोशिश तो बहुत की पलकों ने


पर इश्क मे पागल थे आंसू खुदखुशी करते रहे…


बड़े याद आते हैं वो भूले बिसरे दिन,


कुछ तेरे साथ......कुछ तेरे बिन...!


ये जीवन है...साहेब..


  *उलझेंगे नहीं,


  *तो सुलझेंगे कैसे...


  *और बिखरेंगे नहीं,


  *तो निखरेंगे कैसे....


खुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो,


आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो,


शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो,


दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुसवा न करो।

 

रविवार, 16 अगस्त 2015

प्यास लगी थी गजब की...

प्यास लगी थी गजब की...


प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...


पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...


बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!


ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!


वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!


सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!


सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। 


आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।


"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और


 "किस्मत" महलों में राज करती है!!


"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
 
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,


वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

गलत सुना था कि,

गलत सुना था कि,


गलत सुना था कि,


इश्क आँखों से होता है....


दिल तो वो भी ले जाते है,


जो पलकें तक नही उठाते....!!!!

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

नफरतों का असर देखो, जानवरों का बटंवारा हो गया,

नफरतों का असर देखो,जानवरों का बटंवारा हो गया,


मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..

नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.


मंदिरो मे हिंदू देखे, 
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.


ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं
सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू और 
खजूर मुसलमान हो गए..


न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......
मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....

जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है
कि हरा मुस्लिम का है
और लाल हिन्दू का रंग है
तो वो दिन दूर नही
जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी


और
हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा...

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक

ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक


ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक​;​​​
बिना रूह के नहीं रखते​, घर वाले भी ज़िस्म को​।
बहुत दिल दिखाया है लोगों ने मेरा
"ऐ - मौत"
अगर तू साथ दे तो सबको रुला सकता हूँ में.
ये कलम भी कमबख्त बहुत दिल जली है.....
जब जब भी मुझे दर्द हुआ ये खूब चली है....

सोमवार, 10 अगस्त 2015

रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर,

रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर


रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर,

                         
सब कुछ यहीं है,कहीं और  तलाश ना कर,


हरआरज़ू पूरी हो,तो जीने का  क्या मज़ा,


जीने के लिए बस एक खूबसूरत   वजह की तलाश कर,


ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,


अपनेअपने हिस्से की "दोस्ती"   निभाएंगे,

                    
बहुतअच्छा लगेगा ज़िन्दगी का   ये सफ़र,


आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,

           
क्या भरोसा है.जिंदगी का,


इंसान बुलबुला है पानी का,


जी रहे है कपङे बदल बदल कर,


एक  दिन एक "कपङे"में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर.



गुरुवार, 6 अगस्त 2015

कुछ दिन से.

कुछ दिन से...............


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


बातें हैं पर चीत नहीं है


हैरां  हूं मैं देख के दुनिया


दुश्मन है सब मीत नहीं है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


हंसों में है मारामारी..


लछन इनके ठीक नहीं है


पंछी का मन आकुल व्याकुल


मुख पर मीठे गीत नहीं है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


मानसरोवर हूवा पराया


यहां कोई मन मीत नहीं है


हंसो का कलरव है गुपचुप


अब वह मधुर संगीत नही है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


मिले प्रेम का प्रेम ही प्रतिफल


जग की एेसी रीत नहीं है


सब के सब रूठे बैढे हैं

अपनो में वह प्रीत नहीं है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है.............


सरदार सिंह सांदू "रचित"

बुधवार, 5 अगस्त 2015

ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते

ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते


ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते
ना अल्ला का शोर होता ना राम नाम भजते


ना हराम होती रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता सुबह के पांच बजते


ना दीवाली होती और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत ना बकरे शहीद होते


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता
काश कोई धर्म ना होता.


काश कोई मजहब ना होता.


ना अर्ध देते ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते ना विसर्जन होता


जब भी प्यास लगती नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती नदिओं का गर्जन होता


ना भगवानों की लीला होती ना अवतारों
का
नाटक होता


ना देशों की सीमा होती ना दिलों का
फाटक
होता


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता
काश कोई धर्म ना होता


काश कोई मजहब ना होता


कोई मस्जिद ना होती कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता कोई काफ़िर ना
होता


कोई बेबस ना होता कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता


ना ही गीता होती और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता ना भगवान होता


तुझको जो जख्म होता मेरा दिल तड़पता
ना मैं हिन्दू होता ना तू मुसलमान होता


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता.......

सोमवार, 27 जुलाई 2015

वक़्त   नहीं

. . . . . एक  प्यारी  सी कविता . . . . .

              " वक़्त   नहीं "

हर  ख़ुशी   है  लोंगों   के  दामन  में,
पर   एक   हंसी  के  लिये  वक़्त  नहीं....

दिन  रात   दौड़ती   दुनिया   में,
"ज़िन्दगी"   के   लिये  ही   वक़्त नहीं......

सारे   रिश्तों  को   तो  हम  मार चुके,
अब   उन्हें   दफ़नाने  का   भी वक़्त  नहीं .....

सारे   नाम   मोबाइल   में   हैं ,
पर   "दोस्ती"   के   लिये   वक़्त  नहीं .....

गैरों   की   क्या   बात.  करें ,
जब   अपनों   के   लिये    ही वक़्त  नहीं......

आखों   में   है   नींद.  भरी ,
पर   सोने   का  वक़्त   नहीं......

"दिल"  है  ग़मो  से  भरा  हुआ ,
पर  रोने  का   भी   वक़्त   नहीं .

पैसों   की  दौड़  में   ऐसे   दौड़े, की,,
थकने   का  भी   वक़्त   नहीं ....

पराये  एहसानों   की  क्या   कद्र  करें ,
जब  अपने   सपनों   के   लिये  ही  वक़्त  नहीं.......

तू   ही   बता  दे  ऐ   ज़िन्दगी ,
इस   ज़िन्दगी   का   क्या  होगा,
की   हर   पल   मरने   वालों  को,,
जीने    के    लिये।  भी    वक़्त  नहीं.... ....

शनिवार, 18 जुलाई 2015

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की

एक सुंदर कविता - खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की


खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।


अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।


ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!


एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।