ए भीड में रहने वाले इन्सान
एक बार वर्दी पहन के दिखा ऑर्डर के चक्रव्यूह में से
छुटी काट कर के तो दिखा रात के घुप्प अँधेरे में जब दुनिया सोती है
तू मुस्तैद खड़ा जाग के तो दिखा बाॅर्डर की ठंडी हवा में चलकर
घर की तरफ मुड़ के तो दिखा घर से चलने ले पहले वाइफ को
अगली छुट्टी के सपने तो दिखा कल छुट्टी आउंगा बोलके
बच्चों को फोन पे ही चाॅकलेट खिला के तो दिखा थकी हुई आखों से याद करने वाले
मां बाप को अपना मुस्कुराता चेहरा तो दिखा ये सब करते समय
दुश्मनकी गोली सीने पर लेकर तो दिखा आखिरी सांस लेते समय
तिरंगे को सलाम करके तो दिखा छुट्टी से लौटते वक्त बच्चों के आंसू, माँ बाप की बेबसी, पत्नी की लाचारी को नज़रअंदाज कर के तो दिखा सरकार कहती है शहीद की परिभाषा नही है
दम है तो भगत सिंह बन के तो दिखा बेबस लाचार बना दिया है देश के सैनिक को
विपति के अलावा कभी उसको याद करके तो दिखा रेगिस्तान की गर्मी, हिमालय की ठंड
क्या होती है वहां आकर तो दिखा जगलं में दगंल, नक्सलियों का मगंल
कभी अम्बुश में एक रात बैठ कर तो दिखा यह वर्दी मेरी आन बान और शान है
मेरी पहचान का तमाशा दुनियां को ना दिखा देश पर मर मिट कर भी मुझे शहीद न कहने वाले,
अगर दम है तो एक बार वर्दी पहन के तो दिखा.... एक सैनिक की अपनी पहचान के लिए जंग जारी.....