लम्हे चुरा
फुरसत से खरचूंगा, बस यही सोचता रहा।
फिसलती रही खुशियाँ, करता रहा भरपाई।
बरसों से जो जोड़े, वो लम्हे खर्च आऊं।
मैंने तो खर्चे नही, जाने कैसे बीत गए !!
आईने में देखा जो, पहचान ही न पाऊँ।
था तो मुझ जैसा, जाने कौन खड़ा था।
- चंद शब्द- हृदय से
शायरी कविताएँ - गम यादें : sweet sad fun dard poem sms for friends girlfriend wife for every occassion -morning evening and night
ग़ालिब ग़रीबी से तंग आकर
डाकू बन गए और डकैती करने एक बैंक गए ,
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बैंक में घुसते ही हवाई फ़ायर करते हुए " अर्ज़ किया -
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"तक़दीर में जो है वही मिलेगा,
हैंड्स-अप कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा...!!
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ग़ालिब ने फिर ऊँची आवाज़ में अर्ज़ किया
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"बहुत कोशिश करता हूँ उसकी यादों को भुलाने की,
ध्यान रहे कोई कोशिश न करना पुलिस बुलाने की..."
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फिर कैशियर की कनपटी पे बंदूक रखते हुए कहा-
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"ए ख़ुदा तू कुछ ख़्वाब मेरी आँखों से निकाल दे,
जो कुछ भी है, जल्दी से इस बैग में डाल दे..."
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कैश लेने के बाद ग़ालिब ने लाॅकर की तरफ़ इशारा करके कैशियर से कहा -
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"जज़्बातों को ना समझने वाला इश्क़ क्या सम्हालेगा
लाॅकर का पैसा क्या तेरा अब्बू बाहर निकालेगा .."
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जाते जाते एक और हवाई फ़ायर करते हुए अर्ज़ किया -
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"भुला दे मुझको क्या जाता है तेरा,
मार दूँगा गोली जो किसी ने पीछा किया मेरा..."
. . . . . एक प्यारी सी कविता . . . . .
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं....
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
"ज़िन्दगी" के लिये ही वक़्त नहीं......
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .....
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर "दोस्ती" के लिये वक़्त नहीं .....
गैरों की क्या बात. करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं......
आखों में है नींद. भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं......
"दिल" है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, की,,
थकने का भी वक़्त नहीं ....
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं.......
तू ही बता दे ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,,
जीने के लिये। भी वक़्त नहीं.... ....
चना ज़ोर गरम और पकोडे प्याज़ के ...
चार दिन मे सूखेंगे कपड़े ये आज के ...
आलस और खुमारी बिना किसी काज के ...
टर्राएँगे मेंढक फिर बिना किसी साज़ के ...
बिजली की कटौती का ये मौसम आया है ...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
भीगे बदन और गरम चाय की प्याली ...
धमकी सी गरजती बदली वो काली ...
नदियों सी उफनती मुहल्ले की नाली ...
नयी सी लगती वो खिड़की की जाली ...
छतरी और थैलियों का मौसम आया है ...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
निहत्थे से पौधो पे बूँदो का वार ...
हफ्ते मे आएँगे अब दो-तीन इतवार ...
पानी के मोतियों से लदा वो मकड़ी का तार...
मिट्टी की खुश्बू से सौंधी वो फुहार ...
मोमबत्तियाँ जलाने का मौसम आया है...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...