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रविवार, 16 अगस्त 2015

बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में,

बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में,


एक दिवस को छोड़ बरस भर बंद रही हूँ तालों में,
बस केवल पंद्रह अगस्त को मुस्काने की आदी हूँ,
लालकिले से चीख रही मैं भारत की आज़ादी हूँ,
जन्म हुआ सन सैतालिस में,बचपन मेरा बाँट दिया,
मेरे ही अपनों ने मेरा दायाँ बाजू काट दिया,
जब मेरे पोषण के दिन थे तब मुझको कंगाल किया
मस्तक पर तलवार चला दी,और अलग बंगाल किया
मुझको जीवनदान दिया था लाल बहादुर नाहर ने,
वर्ना मुझको मार दिया था जिन्ना और जवाहर ने,
मैंने अपना यौवन काटा था काँटों की सेजों पर,
और बहुत नीलाम हुयी हूँ ताशकंद की मेजों पर,
नरम सुपाड़ी बनी रही मैं,कटती रही सरौतों से,
मेरी अस्मत बहुत लुटी है उन शिमला समझौतों से,
मुझको सौ सौ बार डसा है,कायर दहशतगर्दी ने,
सदा झुकायीं मेरी नज़रे,दिल्ली की नामर्दी ने,
मेरा नाता टूट चूका है,पायल कंगन रोली से,
छलनी पड़ा हुआ है सीना नक्सलियों की गोली से,
तीन रंग की मेरी चूनर रोज़ जलायी जाती है,
मुझको नंगा करके मुझमे आग लगाई जाती है
मेरी चमड़ी तक बेची है मेरे राजदुलारों ने,
मुझको ही अँधा कर डाला मेरे श्रवण कुमारों ने
उजड़ चुकी हूँ बिना रंग के फगवा जैसी दिखती हूँ,
भारत तो ज़िंदा है पर मैं विधवा जैसी दिखती हूँ,
मेरे सारे ज़ख्मों पर ये नमक लगाने आये हैं,
लालकिले पर एक दिवस का जश्न मनाने आये हैं
बूढ़े बालों को ये काली चोटी देने आये हैं,
एक साल के बाद मुझे ये रोटी देने आये हैं,
जो मुझसे हो लूट चुके वो पाई पाई कब दोगे,
मैं कब से बीमार पड़ी हूँ मुझे दवाई कब दोगे,
सत्य न्याय ईमान धरम का पहले उचित प्रबंध करो,
तब तक ऐसे लालकिले का नाटक बिलकुल बंद कर

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

नफरतों का असर देखो, जानवरों का बटंवारा हो गया,

नफरतों का असर देखो,जानवरों का बटंवारा हो गया,


मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..

नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.


मंदिरो मे हिंदू देखे, 
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.


ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं
सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू और 
खजूर मुसलमान हो गए..


न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......
मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....

जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है
कि हरा मुस्लिम का है
और लाल हिन्दू का रंग है
तो वो दिन दूर नही
जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी


और
हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा...

जलते हुए दिए को परवाने क्या बुझायेंगे,

जलते हुए दिएको परवाने क्या बुझायेंगे


पाकिस्तानी बोलते है
कि
हम हिंदुस्तानिओ
को जिंदा जला देंगे...
.
उन के लिए  2 लाईन पेश
कर रहा हु -
.
"जलते हुए दिए
को परवाने
क्या बुझायेंगे,
जो मुर्दों को नही जलाते
वो जिन्दो को क्या जलाएंगे........
.
ना हम शैतान से हारे,
ना हम हैवान से हारे,
कश्मीर में
जो आया तूफान ,
ना हम उस तूफान से
हारे,
.
यही सोच कर ऐ
पाकिस्तान,
हमने तेरी जान
बक्शी है,
शिकारी तो हम है
मगर,
हमने कभी कुत्ते
नहीं मारे...।
.
वन्देमातरम !

बुधवार, 5 अगस्त 2015

ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते

ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते


ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते
ना अल्ला का शोर होता ना राम नाम भजते


ना हराम होती रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता सुबह के पांच बजते


ना दीवाली होती और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत ना बकरे शहीद होते


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता
काश कोई धर्म ना होता.


काश कोई मजहब ना होता.


ना अर्ध देते ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते ना विसर्जन होता


जब भी प्यास लगती नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती नदिओं का गर्जन होता


ना भगवानों की लीला होती ना अवतारों
का
नाटक होता


ना देशों की सीमा होती ना दिलों का
फाटक
होता


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता
काश कोई धर्म ना होता


काश कोई मजहब ना होता


कोई मस्जिद ना होती कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता कोई काफ़िर ना
होता


कोई बेबस ना होता कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता


ना ही गीता होती और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता ना भगवान होता


तुझको जो जख्म होता मेरा दिल तड़पता
ना मैं हिन्दू होता ना तू मुसलमान होता


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता.......