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रविवार, 24 मई 2015

Choti si zindagi hai

A beautiful poem by Sri Sri Ravi Shanker Ji....

Choti si zindagi hai, Har baat mein khush raho.
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Jo chehra paas na ho, Uski aawaz mein khush raho.
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Koi rutha ho tumse, Uske is andaz mein khush raho.
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Jo laut ke nahi aane wale, Un lamhon ki yaad mein khush raho.
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Kal kisne dekha hai, Apne aaj mein khush raho.
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Khushiyon ka intezaar kisliye, Dusron ki muskan mein khush raho.
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Kyun tadapte ho har pal kisi ke saath ko, Kabhi to apne aap mein khush raho.
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Chhoti si to zindagi hai, Har haal mein khush raho... ��

शुक्रवार, 22 मई 2015

मिली थी जिन्दगी  किसी के 'काम' आने के लिए..

मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बित रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
                              
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...
खुदा की मोहब्बत को फना
कौन करेगा?
सभी बंदे नेक तो गुनाह
कौन करेगा?

"ए खुदा मेरे इन दोस्तो को
सलामत रखना...वरना मेरी
सलामती की दुआ कौन करेगा ?

गुरुवार, 21 मई 2015

लाईटा परी जावे

इन आँधियों  से कह दो कहीं और
जा के चले

ये राजस्थान है

अठे
वायरो वाजता ही लाईटा
परी जावे

भयंकर शायरी

भयंकर शायरी

अरे हमें तो अपनों ने लूटा,
गैरों में कहाँ दम था.
मेरी हड्डी वहाँ टूटी,
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.

मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,
उसका पेट्रोल ख़त्म था.
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,
क्योंकि उसका किराया कम था.

मुझे डॉक्टरों ने उठाया,
नर्सों में कहाँ दम था.
मुझे जिस बेड पर लेटाया,
उसके नीचे बम था.

मुझे तो बम से उड़ाया,
गोली में कहाँ दम था.
और मुझे सड़क में दफनाया,
क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था

क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख

"क्या फर्क पड़ता है,
हमारे पास कितने लाख,
कितने करोड़,
कितने घर,
कितनी गाड़ियां हैं,

खाना तो बस दो ही रोटी है।
जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है।

फर्क इस बात से पड़ता है,
कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये,
कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए ..
क्या खुब लिखा है किसी ने ...

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... !
जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !!

वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... !
जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

न मेरा 'एक' होगा, न तेरा 'लाख' होगा, ... !
न 'तारिफ' तेरी होगी, न 'मजाक' मेरा होगा ... !!

गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... !
मेरा भी 'खाक' होगा, तेरा भी 'खाक' होगा ... !!

जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड'b करने
वालों ... !
याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !!

कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... !
और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !!

क्या करामात है 'कुदरत' की, ... !
'ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के
दिखाता है ... !!

'मौत' को देखा तो नहीं, पर शायद 'वो' बहुत
"खूबसूरत" होगी, ... !
"कम्बख़त" जो भी 'उस' से मिलता है,
"जीना छोड़ देता है" ... !!

'ग़ज़ब' की 'एकता' देखी "लोगों की ज़माने
में" ... !
'ज़िन्दों' को "गिराने में" और 'मुर्दों' को "उठाने
में" ... !!

'ज़िन्दगी' में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री"
होगी, ... !
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।

मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" "आख़री होगी" ... !!

उर आँगन अनुराग अतिथी

उर आँगन अनुराग अतिथी
अब आये कौन बुलाये कौन
बहुत बड़ी ये बंजर बस्ती,
यहाँ बसे कौन  बसाये कौन

मुखर मौन की मोहक मर्यादा ,
माने कौन मनाये कौन
अमृतपान को आतुर सबही ,
गरल घोर गटकाये कौन

जीवन ज्वाल की जगमग ज्योति
अब जागे कौन जगाये कौन
आत्म दीप बन अज्ञान तिमिर में
यहाँ जले कौन जलाये कौन

बचपन से रीता है बचपन ,
अब बाबुल सा बहलाये कौन
थपकी देकर लोरी गाकर ,
यहाँ सोये कौन सुलाये कौन

नींद उचटती अब भी अक्सर ,
यह पूछे कौन बताये कौन
भाव भरे भव भावुक बन्धन ,
अब बाँधे कौन बँधाये कौन

गाँव गली में वो गीत प्रीत के ,
अब गायेे कौन गवाये कौन
नटखट नटवर नंद नागर सा ,
यहाँ नाचे कौन नचाये कौन

(रतनसिहं चाँपावत )

चंद लब्ज़....

 चंद लब्ज़....
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बहुत देखा जीवन में
समझदार बन कर

पर ख़ुशी हमेशा
पागलपन से ही मिली है ।।

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इसे इत्तेफाक समझो

या दर्द भरी हकीकत,

आँख जब भी नम हुई,

वजह कोई अपना ही था

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"हमने अपने नसीब से ज्यादा

अपने दोस्तो पर भरोसा रखा है."

क्यूँ की नसीब तो बहुत बार

बदला है".

लेकिन मेरे दोस्त अभी भी वही है".

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उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,
जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...

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दर्द को दर्द से न देखो,

दर्द को भी दर्द होता है,

दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,

आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...

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ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो,

दर्द की शिद्दत...!

"दर्द तो दर्द" होता हैं,

थोड़ा क्या, ज्यादा क्या...!!

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"दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,

बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,

पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,

कभी मुस्कान तो कभी आखों का पानी बन कर.

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वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है ...

खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी ....!!

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क्या खूब लिखा है :

"कमा के इतनी दौलत भी मैं
अपनी "माँ" को दे ना पाया,.:::::

के जितने सिक्कों से "माँ"
मेरी नज़र उतारा करती थी..."

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गलती कबूल करने और

गुनाह छोड़ने में कभी देर ना करें......!

क्योकिं

सफर जितना लम्बा होगा

वापसी उतनी मुश्किल हो जायेगी...!!

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इंसान बिकता है ...

कितना महँगा या सस्ता ये

उसकी मजबूरी तय करती है...!

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"शब्द दिल  से निकलते है

दिमाग से तो मतलब निकलते है."..

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सब कुछ हासिल नहीं होता
ज़िन्दगी में यहाँ....

.

किसी का "काश" तो
किसी का "अगर" छूट ही जाता है...!!!!

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दो अक्षर की "मौत" और
तीन अक्षर के "जीवन" में ....

ढाई अक्षर का "दोस्त"
बाज़ी मार जाता हैं

बुरा तू भी नही, मैं भी नही

ये चन्द पंक्तियाॅ जिसने भी लिखी है खुब लिखी है:-

  गलतियों से जुदा
तू भी नही, मैं भी नही।
    दोनो इंसान है
खुदा तू भी नही, मैं भी नही।।

तू मुझे ओर मैं तुझे
इल्जाम देते है मगर....।
अपने अन्दर झाॅकता
तू भी नही, मैं भी नही......।।

गलत फहमियों ने कर दी पैदा दूरियाॅ ।
वरना बुरा तू भी नही, मैं भी नही ।।

बुधवार, 20 मई 2015

बेटियां किस घर के लिये बनाई है

लड़कियां चीड़ीयां होती हैं
पर पंख नही होते लड़कियों के
मायके भी होते हैं
ससुराल भी होती है 
पर घर नही होते लड़कियों के
मां बाप कहते हैं ये बेटियां तो परायी हैं
ससुराल वाले कहते हैं ये तो पराये घर से आई है
भगवान
अब तू ही बता ये बेटियां
किस घर के लिये बनाई हैं

सोमवार, 18 मई 2015

नरक में भी मस्ती

सोचा ना था कभी
ऐसी दोस्ती होगी,

साथ मेरे आप लोगों जैसी
हस्ती होगी,

जन्नत की गलियों के
ख्वाब क्यूँ देखूं,

अगर हम सारे दोस्त
साथ होंगे तो नरक में भी
मस्ती होगी....

शनिवार, 16 मई 2015

वो थे पापा

जब
मम्मी
डाँट रहीं थी
तो
कोई चुपके से
हँसा रहा था,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सो रहा था
तब कोई
चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सुबह उठा
तो
कोई बहुत
थक कर भी
काम पर
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुद
कड़ी धूप में
रह कर
कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
सपने
तो मेरे थे
पर उन्हें
पूरा करने का
रास्ता
कोई और
बताऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
सिर्फ
अपनी
खुशियों में
हँसता हूँ,
पर
मेरी हँसी
देख कर
कोई
अपने गम
भुलाऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
फल
खाने की
ज्यादा
जरूरत तो
उन्हें थी,
पर
कोई मुझे
सेब
खिलाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुश तो
मुझे होना चाहिए
कि
वो मुझे मिले ,
पर
मेरे
जन्म लेने की
खुशी
कोई और
मनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
ये दुनिया
पैसों से
चलती है
पर
कोई
सिर्फ मेरे लिए
पैसे
कमाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
घर में सब
अपना प्यार
दिखाते हैं
पर
कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार
किए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
पेड़ तो
अपना फल
खा नही सकते
इसलिए
हमें देते हैं...
पर
कोई
अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट
भरे जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
नौकरी के लिए
घर से बाहर
जाने पर
दुखी था
पर
मुझसे भी
अधिक
आंसू
कोई और
बहाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं
अपने
"बेटा " शब्द को
सार्थक
बना सका
या नही..
पता नहीं...
पर
कोई
बिना स्वार्थ के
अपने
"पिता" शब्द को
सार्थक
बनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा ।।।।।।

थोड़ा धीरज रख

पानी को बर्फ में
बदलने में वक्त लगता है ....
ढले हुए सूरज को
निकलने में वक्त लगता है ....

थोड़ा धीरज रख,
थोड़ा और जोर लगाता रह ....
किस्मत के जंग लगे दरवाजे को
खुलने में वक्त लगता है ....

कुछ देर रुकने के बाद
फिर से चल पड़ना दोस्त ....
हर ठोकर के बाद
संभलने में वक्त लगता है ....

बिखरेगी फिर वही चमक
तेरे वजूद से तू महसूस करना ....
टूटे हुए मन को
संवरने में थोड़ा वक्त लगता है ....

जो तूने कहा
कर दिखायेगा रख यकीन ....
गरजे जब बादल
तो बरसने में वक्त लगता है ....

खुशी आ रही है
और आएगी ही, इन्तजार कर ....
जिद्दी दुख-दर्द को टलने में
थोड़ा में वक्त लगता है ॥

तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है


   
बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है
वहां मैं मेरे papa के नाम से जाना जाता हूँ और
यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ
वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है
यहाँ कोठी है बंगले है और कार है
वहां परिवार है और संस्कार है
यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है
वहां दूसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है... ...
यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ
यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है
वहां रात में भी बाहर घुमने की आदत है
मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है
वह इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है
चल आज हम उसी गाँव में चलते है ..
उसी गाँव में चलते है।।

मंगलवार, 12 मई 2015

सांप बेरोजगार हो गये

किसी ने क्या खूब लिखा है.....

सांप बेरोजगार हो गये,
अब आदमी काटने लगे.....

कुत्ते क्या करें ?. ..
जब "तलवे," आदमी चाटने लगे..!!

कहीं चांदी के चमचे हैं....!!
तो कहीं चमचों की चांदी है...!!

''छोटी छोटी बातें दिल में रखने से
बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं"

कभी पीठ पीछे आपकी बात चले
तो घबराना मत ...

बात तो "उन्हीं की होती है"..
जिनमें कोई " बात " होती है

    निंदा उसीकी होती हे जो जिंदा हैँ
मरने के बाद तारीफ होती हे.

ज़िन्दगी में रौशनी

दोस्ती ज़िन्दगी में रौशनी कर देती हैं !

हर ख़ुशी को दोगुनी कर देती हैं,

कभी झूम के बरसती हैं बंज़र दिल पे !

कभी अमावस को चांदनी कर देती हैं.

सुबह की धूप

"हर सुबह की धूप कुछ याद
दिलाती है,
हर महकती खुशबू एक जादू
जगाती है,
जिंदगी कितनी भी ब्यस्त
क्यों ना हो,
निगाहों पर सुबह-सुबह अपनों
की याद आ ही जाती है."

शनिवार, 9 मई 2015

महाराणा प्रताप पर एक कविता

महाराणा प्रताप पर एक कविता
राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था।
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।।
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई।
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई।
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।।
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया।
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।।
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ।
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।

खुश हूँ


             
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं
"काम में खुश हूं," आराम में खुश हू

"आज पनीर नहीं," दाल में ही खुश हूं
"आज गाड़ी नहीं," पैदल ही खुश हूं

"दोस्तों का साथ नहीं," अकेला ही खुश हूं
"आज कोई नाराज है," उसके इस अंदाज से ही खुश हूं

"जिस को देख नहीं सकता," उसकी आवाज से ही खुश हूं
"जिसको पा नहीं सकता," उसको सोच कर ही खुश हूं

"बीता हुआ कल जा चुका है," उसकी मीठी याद में ही खुश हूं
"आने वाले कल का पता नहीं," इंतजार में ही खुश हूं

"हंसता हुआ बीत रहा है पल," आज में ही खुश हूं
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं

"अगर दिल को छुआ, तो जवाब देना"
"वरना बिना जवाब के भी खुश हूं.

शुक्रवार, 8 मई 2015

गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार

गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार।
इनसे क्या होगा,अगर बदले नहीँ विचार।

  हर विचार दुबारा पढना, गहराई तक सोचना, फिर अगला विचार पढना,  खासकर वक्त के बारे में

"इस दुनियाँ के हर शख्स को नफरत है "झूठ" से...

मैं परेशान हूँ ये सोचकर, कि फिर ये "झूठ" बोलता कौन है"।

"निंदा "तो उसी की होती है
जो"जिंदा" है।
मरे हुए कि तो बस तारीफ ही होती हैं।

महसूस जब हुआ कि सारा शहर,
मुझसे जलने लगा है,
तब समझ आ गया कि अपना नाम भी,
चलने लगा है”…

सदा उनके कर्जदार रहिये जो आपके लिए कभी खुद का वक्त नहीं देखता है,
और
सदा उनसे वफ़ादार रहिये जो व्यस्त होने के बावजूद भी आपके लिए वक़्त निकालता है।

मोक्ष  का  एक  ही  मार्ग  है।
         और  वह  बिल्कुल  सीधा  ही  है।
            अब
मुशकिल   उन्हें  होती  है।
       जिनकी  चाल  ही  टेड़ी  है।

हम जब दिन की शुरुआत करते है,
तब लगता है की, पैसा ही जीवन है ..
लेकिन, जब शाम को लौट कर घर आते है,
तब लगता है, शान्ति ही जीवन है ।

फलदार पेड़ और गुणवान व्यक्ति ही झुकते है ,
सुखा पेड़ और मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।

कदर किरदार की होती है… वरना…
कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है.......

पानी मर्यादा तोड़े तो "विनाश"
                          "और"
         वाणी मर्यादा तोड़े तो "सर्वनाश"

इसलिए हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखो।

बुधवार, 6 मई 2015

सुकून मिलता है

!! सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर..
चीख भी लेता हूँ और आवाज भी
नही होती...!!

आओ  निकाह-ऐ-इश्क कर लेते है, तुम दहेज़ में अपने सारे गम ले आओ, मैं हक़-ऐ-मेहर में तमाम खुशियाँ दे देता हूँ....!!

आसान नही है हमसे यूँ शायिरयों में जीत पाना !
हम हर एक शब्द मोहब्बत में हार कर लिखते हैं !!

सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद;
क्या करते हम भी यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।
एक उसूल पर गुजारी है ज़िन्दगी मैंने....
जिसको अपना माना उसे कभी परखा नहीं...!!

जमाने की नजर मेँ थोड़ा सा अकड कर चलना
सीख ले ऐ
दोस्त........
मोम जैसा दिल लेकर फिरोगे तो, लोग जलाते
ही रहेँगेl

जिंदगी की दौड़ में
तजुर्बा थोडा कच्चा रह गया,

हमने न सीखा फरेब, दिल बच्चा रह गया !!

"इश्क" का धंधा ही बंद कर दिया साहेब।.... मुनाफे में “जेब” जले.. और घाटे में “दिल”!!!!

बारूद मेरे अन्दर का भीग गया तेरे आंसुओं से..
वरना ये दिल एक बड़ी घटना को अंजाम दे देता..
"मुकद्दर में लखा के लाये हैं दर-ब-दर भटकना...

इसलिये मौसम कोई भी हो परिंदे परेशान ही रहते हैं..."

मंजिले तो हमेशा खुशनसीबो को नसीब से मिलती हेैे...
हमतो दिवाने हैे...
हमेशा सफर मे ही रहेगेँl
कभी हो मुखातिब तो कहूँ भी सही की क्या दर्द है मेरा,
अब ख़त मे पूँछोगे तो खैरियत ही कहूँगा।

किताबों की तरह हैं हम भी….
अल्फ़ाज़ से भरपूर, मगर ख़ामोश….!!