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शुक्रवार, 22 मई 2015

मिली थी जिन्दगी  किसी के 'काम' आने के लिए..

मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बित रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
                              
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...
खुदा की मोहब्बत को फना
कौन करेगा?
सभी बंदे नेक तो गुनाह
कौन करेगा?

"ए खुदा मेरे इन दोस्तो को
सलामत रखना...वरना मेरी
सलामती की दुआ कौन करेगा ?

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