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गुरुवार, 28 मई 2015

शिद्दत -ए -दर्द

शिद्दत -ए -दर्द से शर्मिंदा नहीं मेरी
वफ़ा 'ग़ालिब ',.,
दोस्त गहरे हों तो फिर जख्म भी गहरे
होंगे ,.,!!!

बुधवार, 27 मई 2015

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में,
अपने कर्मों की शाख को हिलाना होगा।
उजाला नहीं होगा कभी अंधेरे को कोसने से,
अपने हिस्से का दिया ख़ुद ही जलाना होगा!

"फेंका हुआ किसी का, न छिना हुआ मिले,
मुझे बस मेरे नसिब का लिखा हुआ मिले ।
ना मिला ये भी तो कोई गम नहीं,
मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले ।

दोस्ती

हमारी दोस्ती के बारे
में शक हो तो,
अकेले में एक सिक्का उछालना, अगर
हेड आया तो हम दोस्त,
और टेल आया तो पलट देना यार, अकेले
में कौन देखता है

मेरे लिए कभी दुखी न होना

✏ ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता   है
क्या.  तेरा   कोई.  स्थायी.   पता.  है

✏क्यों   बन   बैठा   है.   अन्जाना
आखिर.  क्या   है   तेरा   ठिकाना।

✏कहाँ   कहाँ.    ढूंढा.  तुझको
पर.  तू  न.  कहीं  मिला  मुझको

✏ढूंढा.  ऊँचे   मकानों.  में
बड़ी  बड़ी   दुकानों.  में

स्वादिस्ट   पकवानों.  में
चोटी.  के.  धनवानों.  में

✏वो   भी   तुझको.    ढूंढ.  रहे   थे
बल्कि   मुझको.  ही   पूछ.  रहे.  थे

✏क्या   आपको   कुछ   पता    है
ये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?

✏मेरे.  पास.  तो.  "दुःख"  का   पता   था
जो   सुबह   शाम.  अक्सर.  मिलता  था

✏परेशान   होके   रपट    लिखवाई
पर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आई

✏उम्र   अब   ढलान.   पे.   है
हौसले    थकान.   पे.    है

✏हाँ   उसकी.  तस्वीर   है   मेरे.  पास
अब.  भी.  बची   हुई.  है    आस

✏मैं.  भी.  हार    नही    मानूंगा
सुख.  के.  रहस्य   को.   जानूंगा

✏बचपन.   में    मिला    करता    था
मेरे    साथ   रहा    करता.   था

✏पर.  जबसे.   मैं    बड़ा   हो.   गया
मेरा.  सुख   मुझसे   जुदा.  हो  गया।

✏मैं   फिर   भी.  नही   हुआ    हताश
जारी   रखी    उसकी    तलाश

✏एक.  दिन.  जब   आवाज.  ये    आई
क्या.   मुझको.   ढूंढ.  रहा  है   भाई

✏मैं.  तेरे.  अन्दर   छुपा.   हुआ.    हूँ
तेरे.  ही.  घर.  में.  बसा.   हुआ.   हूँ

✏मेरा.  नही.  है   कुछ.   भी    "मोल"
सिक्कों.   में.  मुझको.   न.   तोल

✏मैं.  बच्चों.  की.   मुस्कानों.   में    हूँ
हारमोनियम   की.   तानों   में.   हूँ

✏पत्नी.  के.  साथ    चाय.   पीने.  में
"परिवार"    के.  संग.  जीने.   में

✏माँ.  बाप   के.  आशीर्वाद    में
रसोई   घर   के  पफवानो।  में

✏बच्चों।  की   सफलता।  में।   हूँ
माँ।   की।  निश्छल।  ममता  में  हूँ

✏हर।  पल।  तेरे।  संग    रहता।  हूँ
और   अक्सर।  तुझसे   कहता।  हूँ

✏मैं   तो   हूँ   बस।  एक    "अहसास"
बंद।  कर   दे   तु।  मेरी    तलाश

✏जो   मिला   उसी।  में।  कर   "संतोष"
आज  को।  जी।  ले।  कल  की न सोच

✏कल  के   लिए।  आज।  को  न   खोना

मेरे   लिए   कभी   दुखी।   न।  होना
मेरे।  लिए   कभी।  दुखी   न    होना

मंगलवार, 26 मई 2015

मैं अपरिचित हूँ , नही

मैं अपरिचित हूँ , नहीं,  विश्वास बनकर देखिए,
उड. रहा कब से , कहां? आकाश बनकर देखिये,
आप बादल हैं बरस जाऐं, जहां चाहें ,जभी,
पर पपीहे की अकिंचन श्वास बनकर देखिए,।
सिर्फ परछाई नहीं, कुछ तथ्य हूँ, कुछ कथ्य हूँ,
फूल की मृदु गंध हूँ, मधुमास बनकर देखिए,।
एक वृंदावन बसा है आप के मन में सदा,
राधिका की पीर का एहसास बनकर देखिए,।
नेह के रिश्ते सभी जुड. जाएंगे, इस मोड. पर,
आप थोडी. देर को भुजपाश बनकर देखिए,।
जिंदगी दो बूँद पानी के बिना है कुछ नहीं,
रेत में भटके हिरन की प्यास बनकर देखिए,।

धड़कने दिलो की कभी बंद नहीं होगी

धड़कने दिलो की कभी बंद नहीं होगी।
बस तुम इस दिल से निकलकर कही मत जाना............।
कितना आसान होता हैं किसी को अपनी पसंद कहना.
पर अफसोस,
जब तकदीर फैसला सुनाती हैं तो रोया भी नहीँ जाता....!..........।
हाथों की लकीरों मैं तुम हो ना हो.
जिदंगी भर दिल में जरूर रहोगे.......।.........।
तेरा वजुद दील मे कुछ ईस तरह हे.
के दिमाग मे खुन के बजाय तेरी याद बेहती हे।...............।
निकले थे इसी आस पे
किसी को अपना बना लेंगे.
एक ख्वाइश ने उमर भर का
मुसाफिर बना दिया...............।
तेरी नफ़रत मे वो दम कहाँ.जो मेरी चाहत को कम कर दे..............।
सुनो तुमसे दूर क्या हुआ अब तो खुद को भी अनजान सा लगने लगा हु में.............।
रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए
पहले जाँ, फिर जान-ए-जाँ, फिर जान-ए-जाना हो गए।..............।दिल क्या येह ज़िन्दगी भी फ़िदा कर दूंगा तुझ पर
तेरी नज़र में प्यार का इक़रार तोह मिले..!...........।
सुना है इश्क की सजा मौत होती है.
तो लो, मार दो हमेँ प्यार करते है हम आपसे....!!..........।
तेरे लिए एक मशवरा है,
ऐ बेखबर.
कभी हमारा ख्याल आये , तो अपना ख्याल
रखना……!!..........।
किसी ने मुझसे कहा आपकी आँखें बहुत खूबसूरत हैं
मैंने कहा बारिश के बाद अक्सर मौसम सुहाना हो जाता है..

रविवार, 24 मई 2015

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में ।
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।।

सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे । बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ।।

लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,पर बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।

वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए , घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।

सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को, आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।

जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन , आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।

जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी , आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा ।

दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था  जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है ।

मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो ,
जिसे खुदको काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है ।

जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।

इस कविता को मैने आप तक पहुंचाने मे  र्सिफ उंगली का उपयोग किया है,

Choti si zindagi hai

A beautiful poem by Sri Sri Ravi Shanker Ji....

Choti si zindagi hai, Har baat mein khush raho.
:::::::
Jo chehra paas na ho, Uski aawaz mein khush raho.
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Koi rutha ho tumse, Uske is andaz mein khush raho.
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Jo laut ke nahi aane wale, Un lamhon ki yaad mein khush raho.
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Kal kisne dekha hai, Apne aaj mein khush raho.
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Khushiyon ka intezaar kisliye, Dusron ki muskan mein khush raho.
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Kyun tadapte ho har pal kisi ke saath ko, Kabhi to apne aap mein khush raho.
:::::::
Chhoti si to zindagi hai, Har haal mein khush raho... ��

शुक्रवार, 22 मई 2015

मिली थी जिन्दगी  किसी के 'काम' आने के लिए..

मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बित रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
                              
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...
खुदा की मोहब्बत को फना
कौन करेगा?
सभी बंदे नेक तो गुनाह
कौन करेगा?

"ए खुदा मेरे इन दोस्तो को
सलामत रखना...वरना मेरी
सलामती की दुआ कौन करेगा ?

गुरुवार, 21 मई 2015

लाईटा परी जावे

इन आँधियों  से कह दो कहीं और
जा के चले

ये राजस्थान है

अठे
वायरो वाजता ही लाईटा
परी जावे

भयंकर शायरी

भयंकर शायरी

अरे हमें तो अपनों ने लूटा,
गैरों में कहाँ दम था.
मेरी हड्डी वहाँ टूटी,
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.

मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,
उसका पेट्रोल ख़त्म था.
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,
क्योंकि उसका किराया कम था.

मुझे डॉक्टरों ने उठाया,
नर्सों में कहाँ दम था.
मुझे जिस बेड पर लेटाया,
उसके नीचे बम था.

मुझे तो बम से उड़ाया,
गोली में कहाँ दम था.
और मुझे सड़क में दफनाया,
क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था

क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख

"क्या फर्क पड़ता है,
हमारे पास कितने लाख,
कितने करोड़,
कितने घर,
कितनी गाड़ियां हैं,

खाना तो बस दो ही रोटी है।
जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है।

फर्क इस बात से पड़ता है,
कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये,
कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए ..
क्या खुब लिखा है किसी ने ...

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... !
जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !!

वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... !
जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

न मेरा 'एक' होगा, न तेरा 'लाख' होगा, ... !
न 'तारिफ' तेरी होगी, न 'मजाक' मेरा होगा ... !!

गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... !
मेरा भी 'खाक' होगा, तेरा भी 'खाक' होगा ... !!

जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड'b करने
वालों ... !
याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !!

कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... !
और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !!

क्या करामात है 'कुदरत' की, ... !
'ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के
दिखाता है ... !!

'मौत' को देखा तो नहीं, पर शायद 'वो' बहुत
"खूबसूरत" होगी, ... !
"कम्बख़त" जो भी 'उस' से मिलता है,
"जीना छोड़ देता है" ... !!

'ग़ज़ब' की 'एकता' देखी "लोगों की ज़माने
में" ... !
'ज़िन्दों' को "गिराने में" और 'मुर्दों' को "उठाने
में" ... !!

'ज़िन्दगी' में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री"
होगी, ... !
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।

मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" "आख़री होगी" ... !!

उर आँगन अनुराग अतिथी

उर आँगन अनुराग अतिथी
अब आये कौन बुलाये कौन
बहुत बड़ी ये बंजर बस्ती,
यहाँ बसे कौन  बसाये कौन

मुखर मौन की मोहक मर्यादा ,
माने कौन मनाये कौन
अमृतपान को आतुर सबही ,
गरल घोर गटकाये कौन

जीवन ज्वाल की जगमग ज्योति
अब जागे कौन जगाये कौन
आत्म दीप बन अज्ञान तिमिर में
यहाँ जले कौन जलाये कौन

बचपन से रीता है बचपन ,
अब बाबुल सा बहलाये कौन
थपकी देकर लोरी गाकर ,
यहाँ सोये कौन सुलाये कौन

नींद उचटती अब भी अक्सर ,
यह पूछे कौन बताये कौन
भाव भरे भव भावुक बन्धन ,
अब बाँधे कौन बँधाये कौन

गाँव गली में वो गीत प्रीत के ,
अब गायेे कौन गवाये कौन
नटखट नटवर नंद नागर सा ,
यहाँ नाचे कौन नचाये कौन

(रतनसिहं चाँपावत )

चंद लब्ज़....

 चंद लब्ज़....
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बहुत देखा जीवन में
समझदार बन कर

पर ख़ुशी हमेशा
पागलपन से ही मिली है ।।

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इसे इत्तेफाक समझो

या दर्द भरी हकीकत,

आँख जब भी नम हुई,

वजह कोई अपना ही था

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"हमने अपने नसीब से ज्यादा

अपने दोस्तो पर भरोसा रखा है."

क्यूँ की नसीब तो बहुत बार

बदला है".

लेकिन मेरे दोस्त अभी भी वही है".

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उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,
जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...

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दर्द को दर्द से न देखो,

दर्द को भी दर्द होता है,

दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,

आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...

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ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो,

दर्द की शिद्दत...!

"दर्द तो दर्द" होता हैं,

थोड़ा क्या, ज्यादा क्या...!!

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"दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,

बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,

पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,

कभी मुस्कान तो कभी आखों का पानी बन कर.

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वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है ...

खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी ....!!

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क्या खूब लिखा है :

"कमा के इतनी दौलत भी मैं
अपनी "माँ" को दे ना पाया,.:::::

के जितने सिक्कों से "माँ"
मेरी नज़र उतारा करती थी..."

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गलती कबूल करने और

गुनाह छोड़ने में कभी देर ना करें......!

क्योकिं

सफर जितना लम्बा होगा

वापसी उतनी मुश्किल हो जायेगी...!!

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इंसान बिकता है ...

कितना महँगा या सस्ता ये

उसकी मजबूरी तय करती है...!

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"शब्द दिल  से निकलते है

दिमाग से तो मतलब निकलते है."..

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सब कुछ हासिल नहीं होता
ज़िन्दगी में यहाँ....

.

किसी का "काश" तो
किसी का "अगर" छूट ही जाता है...!!!!

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दो अक्षर की "मौत" और
तीन अक्षर के "जीवन" में ....

ढाई अक्षर का "दोस्त"
बाज़ी मार जाता हैं

बुरा तू भी नही, मैं भी नही

ये चन्द पंक्तियाॅ जिसने भी लिखी है खुब लिखी है:-

  गलतियों से जुदा
तू भी नही, मैं भी नही।
    दोनो इंसान है
खुदा तू भी नही, मैं भी नही।।

तू मुझे ओर मैं तुझे
इल्जाम देते है मगर....।
अपने अन्दर झाॅकता
तू भी नही, मैं भी नही......।।

गलत फहमियों ने कर दी पैदा दूरियाॅ ।
वरना बुरा तू भी नही, मैं भी नही ।।

बुधवार, 20 मई 2015

बेटियां किस घर के लिये बनाई है

लड़कियां चीड़ीयां होती हैं
पर पंख नही होते लड़कियों के
मायके भी होते हैं
ससुराल भी होती है 
पर घर नही होते लड़कियों के
मां बाप कहते हैं ये बेटियां तो परायी हैं
ससुराल वाले कहते हैं ये तो पराये घर से आई है
भगवान
अब तू ही बता ये बेटियां
किस घर के लिये बनाई हैं

सोमवार, 18 मई 2015

नरक में भी मस्ती

सोचा ना था कभी
ऐसी दोस्ती होगी,

साथ मेरे आप लोगों जैसी
हस्ती होगी,

जन्नत की गलियों के
ख्वाब क्यूँ देखूं,

अगर हम सारे दोस्त
साथ होंगे तो नरक में भी
मस्ती होगी....

शनिवार, 16 मई 2015

वो थे पापा

जब
मम्मी
डाँट रहीं थी
तो
कोई चुपके से
हँसा रहा था,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सो रहा था
तब कोई
चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सुबह उठा
तो
कोई बहुत
थक कर भी
काम पर
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुद
कड़ी धूप में
रह कर
कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
सपने
तो मेरे थे
पर उन्हें
पूरा करने का
रास्ता
कोई और
बताऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
सिर्फ
अपनी
खुशियों में
हँसता हूँ,
पर
मेरी हँसी
देख कर
कोई
अपने गम
भुलाऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
फल
खाने की
ज्यादा
जरूरत तो
उन्हें थी,
पर
कोई मुझे
सेब
खिलाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुश तो
मुझे होना चाहिए
कि
वो मुझे मिले ,
पर
मेरे
जन्म लेने की
खुशी
कोई और
मनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
ये दुनिया
पैसों से
चलती है
पर
कोई
सिर्फ मेरे लिए
पैसे
कमाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
घर में सब
अपना प्यार
दिखाते हैं
पर
कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार
किए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
पेड़ तो
अपना फल
खा नही सकते
इसलिए
हमें देते हैं...
पर
कोई
अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट
भरे जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
नौकरी के लिए
घर से बाहर
जाने पर
दुखी था
पर
मुझसे भी
अधिक
आंसू
कोई और
बहाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं
अपने
"बेटा " शब्द को
सार्थक
बना सका
या नही..
पता नहीं...
पर
कोई
बिना स्वार्थ के
अपने
"पिता" शब्द को
सार्थक
बनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा ।।।।।।

थोड़ा धीरज रख

पानी को बर्फ में
बदलने में वक्त लगता है ....
ढले हुए सूरज को
निकलने में वक्त लगता है ....

थोड़ा धीरज रख,
थोड़ा और जोर लगाता रह ....
किस्मत के जंग लगे दरवाजे को
खुलने में वक्त लगता है ....

कुछ देर रुकने के बाद
फिर से चल पड़ना दोस्त ....
हर ठोकर के बाद
संभलने में वक्त लगता है ....

बिखरेगी फिर वही चमक
तेरे वजूद से तू महसूस करना ....
टूटे हुए मन को
संवरने में थोड़ा वक्त लगता है ....

जो तूने कहा
कर दिखायेगा रख यकीन ....
गरजे जब बादल
तो बरसने में वक्त लगता है ....

खुशी आ रही है
और आएगी ही, इन्तजार कर ....
जिद्दी दुख-दर्द को टलने में
थोड़ा में वक्त लगता है ॥

तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है


   
बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है
वहां मैं मेरे papa के नाम से जाना जाता हूँ और
यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ
वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है
यहाँ कोठी है बंगले है और कार है
वहां परिवार है और संस्कार है
यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है
वहां दूसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है... ...
यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ
यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है
वहां रात में भी बाहर घुमने की आदत है
मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है
वह इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है
चल आज हम उसी गाँव में चलते है ..
उसी गाँव में चलते है।।