क्यू बार बार ताकते हो शीशे को.
नज़र लगाओगे क्या मेरी इकलौती मुहब्बत को…..........।
आज हम उन्हें बेवफ़ा बताकर आये हैं, उनके खतों को पानी में बहाकर आये हैं, कोई निकालकर पढ़ ना ले खतों को, इसलिए पानी में भी आग लगाकर आये..............।
तेरा नजरिया मेरे नजरिये से अलग था,
शायद तूने वक्त गुजारना था और मुझे सारी जिन्दगी.............।
मशवरा तो देते रहते हो खुश रहा करो
कभी वजह भी दे दिया करो..............।
जिंदगी की दौड़ में तजुर्बा कच्चा रह गया
हम ना सीख पाये फरेब
ये दिल कम्बक्त बच्चा का बच्चा ही रह गया.............।
हर शख्स मुझे एक अख़बार समझकर
अपने मतलब की ख़बर काट लेता है.............।
कभी टूटा नहीं मेरे दिल से.
तेरी याद का सिलसिला.
अभी
गुफ़्तगू किसी से भी हो.
ख्याल तेरा ही रहता है..............।
तेरी बाँहों की पनाह में रहने दे ओ हमसफ़र मेरे
सुकूने दिल को ये आसरा जरूरी है।..............।
इश्क़ और दोस्ती मेरी ज़िन्दगी के दो जहाँ है
इश्क़ मेरा रूह तो दोस्ती मेरा इमां है
इश्क़ पे कर दूँ फ़िदा अपनी ज़िन्दगी
मगर दोस्ती पे तो मेरा इश्क़ भी कुर्बान है............।
बस यही सोचकर छोड़ दी हमने जिद मोहब्बत की.
अश्क तेरे बहे या मेरे.
लेकिन रोती तो मोहब्बत ही है.
शायरी कविताएँ - गम यादें : sweet sad fun dard poem sms for friends girlfriend wife for every occassion -morning evening and night
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 28 मई 2015
क्यू बार बार ताकते हो शीशे को
रूह
कभी यूँ भी आ मेरे करीब तू, मेरा
इश्क मुझको ख़ुदा लगे,
मेरी रूह में तू उतर ज़रा मुझे अपना
भी कुछ पता लगे.....!!
ऐसी फ़िज़ा
काश मेरे मुल्क में ऐसी फ़िज़ा बने ,
मंदिर जले तो दर्द मुस्लमान को भी
हो....
और बेइज़्ज़त हो न पाये किसी
मस्ज़िद की आरज़ू.....
यह फ़िकर मंदिर के पुजारी को भी
हो ।.
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता
ना मस्जिद आजान देती, ना मंदिर के घंटे बजते
ना अल्ला का शोर होता, ना राम नाम भजते
ना हराम होती, रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता, सुबह के पांच बजते
ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता....
…….काश कोई मजहब ना होता....
ना अर्ध देते , ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता
जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता
ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों
का
नाटक होता
ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का
फाटक
होता
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता.....
…….काश कोई मजहब ना होता....
कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना
होता
कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई, बेखबर ना होता
ना ही गीता होती , और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता, ना भगवान होता
तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता.
ना मैं हिन्दू होता, ना तू मुसलमान होता
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता।
शिद्दत -ए -दर्द
शिद्दत -ए -दर्द से शर्मिंदा नहीं मेरी
वफ़ा 'ग़ालिब ',.,
दोस्त गहरे हों तो फिर जख्म भी गहरे
होंगे ,.,!!!
बुधवार, 27 मई 2015
ख़्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में
ख़्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में,
अपने कर्मों की शाख को हिलाना होगा।
उजाला नहीं होगा कभी अंधेरे को कोसने से,
अपने हिस्से का दिया ख़ुद ही जलाना होगा!
"फेंका हुआ किसी का, न छिना हुआ मिले,
मुझे बस मेरे नसिब का लिखा हुआ मिले ।
ना मिला ये भी तो कोई गम नहीं,
मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले ।
दोस्ती
हमारी दोस्ती के बारे
में शक हो तो,
अकेले में एक सिक्का उछालना, अगर
हेड आया तो हम दोस्त,
और टेल आया तो पलट देना यार, अकेले
में कौन देखता है
मेरे लिए कभी दुखी न होना
✏ ऐ "सुख" तू कहाँ मिलता है
क्या. तेरा कोई. स्थायी. पता. है
✏क्यों बन बैठा है. अन्जाना
आखिर. क्या है तेरा ठिकाना।
✏कहाँ कहाँ. ढूंढा. तुझको
पर. तू न. कहीं मिला मुझको
✏ढूंढा. ऊँचे मकानों. में
बड़ी बड़ी दुकानों. में
स्वादिस्ट पकवानों. में
चोटी. के. धनवानों. में
✏वो भी तुझको. ढूंढ. रहे थे
बल्कि मुझको. ही पूछ. रहे. थे
✏क्या आपको कुछ पता है
ये सुख आखिर कहाँ रहता है?
✏मेरे. पास. तो. "दुःख" का पता था
जो सुबह शाम. अक्सर. मिलता था
✏परेशान होके रपट लिखवाई
पर ये कोशिश भी काम न आई
✏उम्र अब ढलान. पे. है
हौसले थकान. पे. है
✏हाँ उसकी. तस्वीर है मेरे. पास
अब. भी. बची हुई. है आस
✏मैं. भी. हार नही मानूंगा
सुख. के. रहस्य को. जानूंगा
✏बचपन. में मिला करता था
मेरे साथ रहा करता. था
✏पर. जबसे. मैं बड़ा हो. गया
मेरा. सुख मुझसे जुदा. हो गया।
✏मैं फिर भी. नही हुआ हताश
जारी रखी उसकी तलाश
✏एक. दिन. जब आवाज. ये आई
क्या. मुझको. ढूंढ. रहा है भाई
✏मैं. तेरे. अन्दर छुपा. हुआ. हूँ
तेरे. ही. घर. में. बसा. हुआ. हूँ
✏मेरा. नही. है कुछ. भी "मोल"
सिक्कों. में. मुझको. न. तोल
✏मैं. बच्चों. की. मुस्कानों. में हूँ
हारमोनियम की. तानों में. हूँ
✏पत्नी. के. साथ चाय. पीने. में
"परिवार" के. संग. जीने. में
✏माँ. बाप के. आशीर्वाद में
रसोई घर के पफवानो। में
✏बच्चों। की सफलता। में। हूँ
माँ। की। निश्छल। ममता में हूँ
✏हर। पल। तेरे। संग रहता। हूँ
और अक्सर। तुझसे कहता। हूँ
✏मैं तो हूँ बस। एक "अहसास"
बंद। कर दे तु। मेरी तलाश
✏जो मिला उसी। में। कर "संतोष"
आज को। जी। ले। कल की न सोच
✏कल के लिए। आज। को न खोना
मेरे लिए कभी दुखी। न। होना
मेरे। लिए कभी। दुखी न होना
मंगलवार, 26 मई 2015
मैं अपरिचित हूँ , नही
मैं अपरिचित हूँ , नहीं, विश्वास बनकर देखिए,
उड. रहा कब से , कहां? आकाश बनकर देखिये,
आप बादल हैं बरस जाऐं, जहां चाहें ,जभी,
पर पपीहे की अकिंचन श्वास बनकर देखिए,।
सिर्फ परछाई नहीं, कुछ तथ्य हूँ, कुछ कथ्य हूँ,
फूल की मृदु गंध हूँ, मधुमास बनकर देखिए,।
एक वृंदावन बसा है आप के मन में सदा,
राधिका की पीर का एहसास बनकर देखिए,।
नेह के रिश्ते सभी जुड. जाएंगे, इस मोड. पर,
आप थोडी. देर को भुजपाश बनकर देखिए,।
जिंदगी दो बूँद पानी के बिना है कुछ नहीं,
रेत में भटके हिरन की प्यास बनकर देखिए,।
धड़कने दिलो की कभी बंद नहीं होगी
धड़कने दिलो की कभी बंद नहीं होगी।
बस तुम इस दिल से निकलकर कही मत जाना............।
कितना आसान होता हैं किसी को अपनी पसंद कहना.
पर अफसोस,
जब तकदीर फैसला सुनाती हैं तो रोया भी नहीँ जाता....!..........।
हाथों की लकीरों मैं तुम हो ना हो.
जिदंगी भर दिल में जरूर रहोगे.......।.........।
तेरा वजुद दील मे कुछ ईस तरह हे.
के दिमाग मे खुन के बजाय तेरी याद बेहती हे।...............।
निकले थे इसी आस पे
किसी को अपना बना लेंगे.
एक ख्वाइश ने उमर भर का
मुसाफिर बना दिया...............।
तेरी नफ़रत मे वो दम कहाँ.जो मेरी चाहत को कम कर दे..............।
सुनो तुमसे दूर क्या हुआ अब तो खुद को भी अनजान सा लगने लगा हु में.............।
रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए
पहले जाँ, फिर जान-ए-जाँ, फिर जान-ए-जाना हो गए।..............।दिल क्या येह ज़िन्दगी भी फ़िदा कर दूंगा तुझ पर
तेरी नज़र में प्यार का इक़रार तोह मिले..!...........।
सुना है इश्क की सजा मौत होती है.
तो लो, मार दो हमेँ प्यार करते है हम आपसे....!!..........।
तेरे लिए एक मशवरा है,
ऐ बेखबर.
कभी हमारा ख्याल आये , तो अपना ख्याल
रखना……!!..........।
किसी ने मुझसे कहा आपकी आँखें बहुत खूबसूरत हैं
मैंने कहा बारिश के बाद अक्सर मौसम सुहाना हो जाता है..
रविवार, 24 मई 2015
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में ।
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।।
सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे । बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ।।
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,पर बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए , घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को, आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।
जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन , आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।
जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी , आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा ।
दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है ।
मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो ,
जिसे खुदको काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है ।
जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।
इस कविता को मैने आप तक पहुंचाने मे र्सिफ उंगली का उपयोग किया है,
Choti si zindagi hai
A beautiful poem by Sri Sri Ravi Shanker Ji....
Choti si zindagi hai, Har baat mein khush raho.
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Jo chehra paas na ho, Uski aawaz mein khush raho.
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Koi rutha ho tumse, Uske is andaz mein khush raho.
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Jo laut ke nahi aane wale, Un lamhon ki yaad mein khush raho.
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Kal kisne dekha hai, Apne aaj mein khush raho.
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Khushiyon ka intezaar kisliye, Dusron ki muskan mein khush raho.
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Kyun tadapte ho har pal kisi ke saath ko, Kabhi to apne aap mein khush raho.
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Chhoti si to zindagi hai, Har haal mein khush raho...
शुक्रवार, 22 मई 2015
मिली थी जिन्दगी किसी के 'काम' आने के लिए..
मिली थी जिन्दगी
किसी के 'काम' आने के लिए..
पर वक्त बित रहा है
कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'
और ये मौत के फ़रिश्ते तो
'रिश्वत' भी नही लेते...
खुदा की मोहब्बत को फना
कौन करेगा?
सभी बंदे नेक तो गुनाह
कौन करेगा?
"ए खुदा मेरे इन दोस्तो को
सलामत रखना...वरना मेरी
सलामती की दुआ कौन करेगा ?
गुरुवार, 21 मई 2015
लाईटा परी जावे
इन आँधियों से कह दो कहीं और
जा के चले
ये राजस्थान है
अठे
वायरो वाजता ही लाईटा
परी जावे
भयंकर शायरी
भयंकर शायरी
अरे हमें तो अपनों ने लूटा,
गैरों में कहाँ दम था.
मेरी हड्डी वहाँ टूटी,
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.
मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,
उसका पेट्रोल ख़त्म था.
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,
क्योंकि उसका किराया कम था.
मुझे डॉक्टरों ने उठाया,
नर्सों में कहाँ दम था.
मुझे जिस बेड पर लेटाया,
उसके नीचे बम था.
मुझे तो बम से उड़ाया,
गोली में कहाँ दम था.
और मुझे सड़क में दफनाया,
क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था
क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख
"क्या फर्क पड़ता है,
हमारे पास कितने लाख,
कितने करोड़,
कितने घर,
कितनी गाड़ियां हैं,
खाना तो बस दो ही रोटी है।
जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है।
फर्क इस बात से पड़ता है,
कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये,
कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए ..
क्या खुब लिखा है किसी ने ...
"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... !
जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !!
वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... !
जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"
न मेरा 'एक' होगा, न तेरा 'लाख' होगा, ... !
न 'तारिफ' तेरी होगी, न 'मजाक' मेरा होगा ... !!
गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... !
मेरा भी 'खाक' होगा, तेरा भी 'खाक' होगा ... !!
जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड'b करने
वालों ... !
याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !!
कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... !
और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !!
क्या करामात है 'कुदरत' की, ... !
'ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के
दिखाता है ... !!
'मौत' को देखा तो नहीं, पर शायद 'वो' बहुत
"खूबसूरत" होगी, ... !
"कम्बख़त" जो भी 'उस' से मिलता है,
"जीना छोड़ देता है" ... !!
'ग़ज़ब' की 'एकता' देखी "लोगों की ज़माने
में" ... !
'ज़िन्दों' को "गिराने में" और 'मुर्दों' को "उठाने
में" ... !!
'ज़िन्दगी' में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री"
होगी, ... !
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" "आख़री होगी" ... !!
उर आँगन अनुराग अतिथी
उर आँगन अनुराग अतिथी
अब आये कौन बुलाये कौन
बहुत बड़ी ये बंजर बस्ती,
यहाँ बसे कौन बसाये कौन
मुखर मौन की मोहक मर्यादा ,
माने कौन मनाये कौन
अमृतपान को आतुर सबही ,
गरल घोर गटकाये कौन
जीवन ज्वाल की जगमग ज्योति
अब जागे कौन जगाये कौन
आत्म दीप बन अज्ञान तिमिर में
यहाँ जले कौन जलाये कौन
बचपन से रीता है बचपन ,
अब बाबुल सा बहलाये कौन
थपकी देकर लोरी गाकर ,
यहाँ सोये कौन सुलाये कौन
नींद उचटती अब भी अक्सर ,
यह पूछे कौन बताये कौन
भाव भरे भव भावुक बन्धन ,
अब बाँधे कौन बँधाये कौन
गाँव गली में वो गीत प्रीत के ,
अब गायेे कौन गवाये कौन
नटखट नटवर नंद नागर सा ,
यहाँ नाचे कौन नचाये कौन
(रतनसिहं चाँपावत )
चंद लब्ज़....
 चंद लब्ज़....
--------------------------------------
बहुत देखा जीवन में
समझदार बन कर
पर ख़ुशी हमेशा
पागलपन से ही मिली है ।।
-------------------------------------
इसे इत्तेफाक समझो
या दर्द भरी हकीकत,
आँख जब भी नम हुई,
वजह कोई अपना ही था
-------------------------------------
"हमने अपने नसीब से ज्यादा
अपने दोस्तो पर भरोसा रखा है."
क्यूँ की नसीब तो बहुत बार
बदला है".
लेकिन मेरे दोस्त अभी भी वही है".
-------------------------------------
उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,
जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...
-------------------------------------
दर्द को दर्द से न देखो,
दर्द को भी दर्द होता है,
दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,
आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...
------------------------------------------------
ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो,
दर्द की शिद्दत...!
"दर्द तो दर्द" होता हैं,
थोड़ा क्या, ज्यादा क्या...!!
------------------------------------------------
"दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,
बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,
पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,
कभी मुस्कान तो कभी आखों का पानी बन कर.
------------------------------------------------
वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है ...
खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी ....!!
-------------------------------------------------
क्या खूब लिखा है :
"कमा के इतनी दौलत भी मैं
अपनी "माँ" को दे ना पाया,.:::::
के जितने सिक्कों से "माँ"
मेरी नज़र उतारा करती थी..."
---------------------------------------------------
गलती कबूल करने और
गुनाह छोड़ने में कभी देर ना करें......!
क्योकिं
सफर जितना लम्बा होगा
वापसी उतनी मुश्किल हो जायेगी...!!
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इंसान बिकता है ...
कितना महँगा या सस्ता ये
उसकी मजबूरी तय करती है...!
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"शब्द दिल से निकलते है
दिमाग से तो मतलब निकलते है."..
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सब कुछ हासिल नहीं होता
ज़िन्दगी में यहाँ....
.
किसी का "काश" तो
किसी का "अगर" छूट ही जाता है...!!!!
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दो अक्षर की "मौत" और
तीन अक्षर के "जीवन" में ....
ढाई अक्षर का "दोस्त"
बाज़ी मार जाता हैं
बुरा तू भी नही, मैं भी नही
ये चन्द पंक्तियाॅ जिसने भी लिखी है खुब लिखी है:-
गलतियों से जुदा
तू भी नही, मैं भी नही।
दोनो इंसान है
खुदा तू भी नही, मैं भी नही।।
तू मुझे ओर मैं तुझे
इल्जाम देते है मगर....।
अपने अन्दर झाॅकता
तू भी नही, मैं भी नही......।।
गलत फहमियों ने कर दी पैदा दूरियाॅ ।
वरना बुरा तू भी नही, मैं भी नही ।।