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बुधवार, 18 मार्च 2015

न 'मंदिर' न 'मस्जिद'

"बच्चे झगड़ रहे थे मोहल्ले के,
न जाने किस बात पर . . .

सूकून इस बात का था, 
न 'मंदिर' का ज़िक्र था न 'मस्जिद' का !"
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जब  टूटने  लगे  होसले  तो  बस  ये  याद  रखना,

बिना  मेहनत  के  हासिल  तख्तो  ताज  नहीं  होते,

ढूंड  लेना  अंधेरों  में  मंजिल  अपनी,

जुगनू  कभी  रौशनी  के  मोहताज़  नहीं  होते.

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