"बच्चे झगड़ रहे थे मोहल्ले के,
न जाने किस बात पर . . .
सूकून इस बात का था,
न 'मंदिर' का ज़िक्र था न 'मस्जिद' का !"
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जब टूटने लगे होसले तो बस ये याद रखना,
बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
ढूंड लेना अंधेरों में मंजिल अपनी,
जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते.
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