अंधेरो के माथे पर रोज उजाले लिखता हूँ
मंजिलो के नाम पैरों के छालै लिखता हूँ
ज़माना तो महज़ लफ्ज़ों का दिवाना है
मैंअहसास के मुख पर ताले लिखता हूँ
वाद ए सबा के साज़ पर मखमली आवाज़ में
दिल जिसे गा सके वो गीत निराले लिखता हूँ
कि पार उतरना ही सबका मुक्कद्दर नहीं होता
इन कश्तियों को समन्दर के हवाले लिखता हूँ
कब तक तू मुझे यूं आजमाएगी ए जिन्दगी
मैं दिल के नाम दर्द के निवाले लिखता हूँ
(रतन सिंह चम्पावत कृत)
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