कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

दौर-ए-इलेक्शन



दौर-ए-इलेक्शन में कहां कोई इंसान नज़र आता है।

कोई हिन्दू, कोई दलित, तो कोई मुसलमान नज़र आता है।

बीत जाता है जब इलाकों से इलेक्शन का दौर, तब हर इंसान रोटी के लिए परेशान नज़र आता है।

कुछ तो खासियत है, इस प्रजातंत्र में,
कुछ तो बात है, इस करामाती मंत्र में !

वोट देता हूँ फकीरों को,
कम्बख़्त शहंशाह बन जाते हैं,
और हम हर बार, वहीं के वहीं रह जाते हैं..!!

रह जाते हैं हम हर बार, ऊँगली रंगाने के लिए!
नए फकीरों को फिर, शहंशाह बनाने के लिए !
___

शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

देशभक्ति कविता: 26 जुलाई कारगिल दिवस पर

देशभक्ति कविता: 26 जुलाई कारगिल दिवस पर


नमन उन जवानो को जिन्होंने 


मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी


 
नमन उन माँताओ को जिन्होंने अपना बेटा खोया


 
नमन उन वीरांगनाओ को जिन्होंने अपने सुहाग को खोया


 
नमन उन बहनो और भाइयो को जिन्होंने अपने भाइयो को खोया



देश के हर उस परिवार को नमन जिन्होंने


 अपने आँगन का चिराग देश के नाम कुर्बान कर दिया


 
मै भारतीय हूँ मुझे आपके बलिदान पर गुमान है


 
26 जुलाई कारगिल दिवस    

शनिवार, 5 अगस्त 2023

नाज़ुक डाली

नाज़ुक डाली

दर्द कागज़ पर,  
मेरा बिकता रहा,

मैं बैचैन था, 
रातभर लिखता रहा..

छू रहे थे सब, 
बुलंदियाँ आसमान की, 

मैं सितारों के बीच, 
चाँद की तरह छिपता रहा..

अकड होती तो,  
कब का टूट गया होता, 

 मैं था नाज़ुक डाली,
जो सबके आगे झुकता रहा..

बदले यहाँ लोगों ने, 
रंग अपने-अपने ढंग से,

रंग मेरा भी निखरा पर,
मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..

जिनको जल्दी थी,
वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,

मैं समन्दर से राज, 
गहराई के सीखता रहा..!!

शनिवार, 29 जुलाई 2023

हिचकियाँ

हिचकियाँ


"दिल में सिर्फ आप हो और कोई खाश कैसे होगा, 


यादों में आपके सिवा कोई पास कैसे होगा, 


हिचकियाँ कहती हैं आप मुझे याद करते हो, 


पर बोलोगे नहीं तो मुझे ये एहसास कैसे होगा."

नासूर


नासूर


वक़्त नूर को बेनूर बना देता है!

छोटे से जख्म को नासूर बना देता है!

कौन चाहता है अपनों से दूर रहना


 पर वक़्त सबको मजबूर बना देता है!

नसीब


नसीब



दिल में है जो दर्द वो दर्द किसे बताएं!


हंसते हुए ये ज़ख्म किसे दिखाएँ!


कहती है ये दुनिया हमे खुश नसीब!


मगर इस नसीब की दास्ताँ किसे बताएं!

तन्हाई बेहतर है.

तन्हाई बेहतर है.


*तन्हाई बेहतर है...*
*मतलबी लोगों से*

*कदर  होती है इंसान* 
*की जरुरत पड़ने पर ही.*
*बिना जरुरत के तो*
*हीरे भी तिजोरी में रहते है*
लाख पता बदला, मगर पहुँच ही गया..
ये ग़म भी था कोई डाकिया ज़िद्दी सा।
मेरी दर्द की
एक दुकान है
जो सिर्फ अपनों की
मेहरबानी से चलती है

इम्तिहान

इम्तिहान


"जाना कहा था और कहां आ गए,
दुनिया में बन कर मेहमान आ गए,
अभी तो प्यार की किताब खोली थी,
और न जाने कितने इम्तिहान आ गए।"




शुक्रवार, 24 मार्च 2023

खफ़ा हुए

खफ़ा हुए









आग दिल में लगी जब वो खफ़ा हुए;
महसूस हुआ तब, जब वो जुदा हुए;
करके वफ़ा कुछ दे ना सके वो;
पर बहुत कुछ दे गए जब वो बेवफ़ा हुए!