कुल पेज दृश्य

रविवार, 1 मार्च 2015

रात गुमसुम हैं मगर चाँद खामोश नहीं

  रात गुमसुम हैं मगर चाँद खामोश नहीं !कैसे कह दूँ फिर आज मुझे होश नहीं !!ऐसे डूबा तेरी आँखों के गहराई में आज !हाथ में जाम हैं,मगर पिने का होश नहीं !!...........।

उसकी पलकों से आँसू को चुरा रहे थे हम, उसके ग़मोको हंसींसे सजा रहे थे हम, जलाया उसी दिए ने मेरा हाथ जिसकी लो को हवासे बचा रहे थे हम................।

रात को रात का तोफा नहीं देते !दिल को जजबात का तोफा नहीं देते !!देने को तो हम आप को चाँद भी दे दे !मगर चाँद को चाँद का तोफा नहीं देते !!................।

दिल ने आज फिर तेरे दीदार की ख्वाहिश रखी है अगर फुरसत मिले
तो ख्वाबों मे आ जाना...............।

उल्फत की जंजीर से डर लगता हैं !कुछ अपनी ही तकदीर से डर लगता हैं !!जो जुदा करते हैं, किसी को किसी से !हाथ की बस उसी लकीर से डर लगता हैं...............।

कभी तो आ मिल, फिर से करें गुफ्तगू! मैं आँखें पढूँ तेरी, तू साँसें
सुने मेरी!...............।

" महोब्बत हुई तो नींद भी मेरी ना रही '
क्या कसूर था इन बेक़सूर आँखों का...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें