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बुधवार, 20 मई 2015

बेटियां किस घर के लिये बनाई है

लड़कियां चीड़ीयां होती हैं
पर पंख नही होते लड़कियों के
मायके भी होते हैं
ससुराल भी होती है 
पर घर नही होते लड़कियों के
मां बाप कहते हैं ये बेटियां तो परायी हैं
ससुराल वाले कहते हैं ये तो पराये घर से आई है
भगवान
अब तू ही बता ये बेटियां
किस घर के लिये बनाई हैं

सोमवार, 18 मई 2015

नरक में भी मस्ती

सोचा ना था कभी
ऐसी दोस्ती होगी,

साथ मेरे आप लोगों जैसी
हस्ती होगी,

जन्नत की गलियों के
ख्वाब क्यूँ देखूं,

अगर हम सारे दोस्त
साथ होंगे तो नरक में भी
मस्ती होगी....

शनिवार, 16 मई 2015

वो थे पापा

जब
मम्मी
डाँट रहीं थी
तो
कोई चुपके से
हँसा रहा था,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सो रहा था
तब कोई
चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सुबह उठा
तो
कोई बहुत
थक कर भी
काम पर
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुद
कड़ी धूप में
रह कर
कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
सपने
तो मेरे थे
पर उन्हें
पूरा करने का
रास्ता
कोई और
बताऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
सिर्फ
अपनी
खुशियों में
हँसता हूँ,
पर
मेरी हँसी
देख कर
कोई
अपने गम
भुलाऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
फल
खाने की
ज्यादा
जरूरत तो
उन्हें थी,
पर
कोई मुझे
सेब
खिलाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुश तो
मुझे होना चाहिए
कि
वो मुझे मिले ,
पर
मेरे
जन्म लेने की
खुशी
कोई और
मनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
ये दुनिया
पैसों से
चलती है
पर
कोई
सिर्फ मेरे लिए
पैसे
कमाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
घर में सब
अपना प्यार
दिखाते हैं
पर
कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार
किए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
पेड़ तो
अपना फल
खा नही सकते
इसलिए
हमें देते हैं...
पर
कोई
अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट
भरे जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
नौकरी के लिए
घर से बाहर
जाने पर
दुखी था
पर
मुझसे भी
अधिक
आंसू
कोई और
बहाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं
अपने
"बेटा " शब्द को
सार्थक
बना सका
या नही..
पता नहीं...
पर
कोई
बिना स्वार्थ के
अपने
"पिता" शब्द को
सार्थक
बनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा ।।।।।।

थोड़ा धीरज रख

पानी को बर्फ में
बदलने में वक्त लगता है ....
ढले हुए सूरज को
निकलने में वक्त लगता है ....

थोड़ा धीरज रख,
थोड़ा और जोर लगाता रह ....
किस्मत के जंग लगे दरवाजे को
खुलने में वक्त लगता है ....

कुछ देर रुकने के बाद
फिर से चल पड़ना दोस्त ....
हर ठोकर के बाद
संभलने में वक्त लगता है ....

बिखरेगी फिर वही चमक
तेरे वजूद से तू महसूस करना ....
टूटे हुए मन को
संवरने में थोड़ा वक्त लगता है ....

जो तूने कहा
कर दिखायेगा रख यकीन ....
गरजे जब बादल
तो बरसने में वक्त लगता है ....

खुशी आ रही है
और आएगी ही, इन्तजार कर ....
जिद्दी दुख-दर्द को टलने में
थोड़ा में वक्त लगता है ॥

तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है


   
बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है
वहां मैं मेरे papa के नाम से जाना जाता हूँ और
यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ
वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है
यहाँ कोठी है बंगले है और कार है
वहां परिवार है और संस्कार है
यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है
वहां दूसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है... ...
यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ
यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है
वहां रात में भी बाहर घुमने की आदत है
मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है
वह इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है
चल आज हम उसी गाँव में चलते है ..
उसी गाँव में चलते है।।

मंगलवार, 12 मई 2015

सांप बेरोजगार हो गये

किसी ने क्या खूब लिखा है.....

सांप बेरोजगार हो गये,
अब आदमी काटने लगे.....

कुत्ते क्या करें ?. ..
जब "तलवे," आदमी चाटने लगे..!!

कहीं चांदी के चमचे हैं....!!
तो कहीं चमचों की चांदी है...!!

''छोटी छोटी बातें दिल में रखने से
बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं"

कभी पीठ पीछे आपकी बात चले
तो घबराना मत ...

बात तो "उन्हीं की होती है"..
जिनमें कोई " बात " होती है

    निंदा उसीकी होती हे जो जिंदा हैँ
मरने के बाद तारीफ होती हे.

ज़िन्दगी में रौशनी

दोस्ती ज़िन्दगी में रौशनी कर देती हैं !

हर ख़ुशी को दोगुनी कर देती हैं,

कभी झूम के बरसती हैं बंज़र दिल पे !

कभी अमावस को चांदनी कर देती हैं.

सुबह की धूप

"हर सुबह की धूप कुछ याद
दिलाती है,
हर महकती खुशबू एक जादू
जगाती है,
जिंदगी कितनी भी ब्यस्त
क्यों ना हो,
निगाहों पर सुबह-सुबह अपनों
की याद आ ही जाती है."

शनिवार, 9 मई 2015

महाराणा प्रताप पर एक कविता

महाराणा प्रताप पर एक कविता
राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था।
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।।
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई।
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई।
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।।
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया।
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।।
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ।
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।

खुश हूँ


             
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं
"काम में खुश हूं," आराम में खुश हू

"आज पनीर नहीं," दाल में ही खुश हूं
"आज गाड़ी नहीं," पैदल ही खुश हूं

"दोस्तों का साथ नहीं," अकेला ही खुश हूं
"आज कोई नाराज है," उसके इस अंदाज से ही खुश हूं

"जिस को देख नहीं सकता," उसकी आवाज से ही खुश हूं
"जिसको पा नहीं सकता," उसको सोच कर ही खुश हूं

"बीता हुआ कल जा चुका है," उसकी मीठी याद में ही खुश हूं
"आने वाले कल का पता नहीं," इंतजार में ही खुश हूं

"हंसता हुआ बीत रहा है पल," आज में ही खुश हूं
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं

"अगर दिल को छुआ, तो जवाब देना"
"वरना बिना जवाब के भी खुश हूं.

शुक्रवार, 8 मई 2015

गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार

गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार।
इनसे क्या होगा,अगर बदले नहीँ विचार।

  हर विचार दुबारा पढना, गहराई तक सोचना, फिर अगला विचार पढना,  खासकर वक्त के बारे में

"इस दुनियाँ के हर शख्स को नफरत है "झूठ" से...

मैं परेशान हूँ ये सोचकर, कि फिर ये "झूठ" बोलता कौन है"।

"निंदा "तो उसी की होती है
जो"जिंदा" है।
मरे हुए कि तो बस तारीफ ही होती हैं।

महसूस जब हुआ कि सारा शहर,
मुझसे जलने लगा है,
तब समझ आ गया कि अपना नाम भी,
चलने लगा है”…

सदा उनके कर्जदार रहिये जो आपके लिए कभी खुद का वक्त नहीं देखता है,
और
सदा उनसे वफ़ादार रहिये जो व्यस्त होने के बावजूद भी आपके लिए वक़्त निकालता है।

मोक्ष  का  एक  ही  मार्ग  है।
         और  वह  बिल्कुल  सीधा  ही  है।
            अब
मुशकिल   उन्हें  होती  है।
       जिनकी  चाल  ही  टेड़ी  है।

हम जब दिन की शुरुआत करते है,
तब लगता है की, पैसा ही जीवन है ..
लेकिन, जब शाम को लौट कर घर आते है,
तब लगता है, शान्ति ही जीवन है ।

फलदार पेड़ और गुणवान व्यक्ति ही झुकते है ,
सुखा पेड़ और मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।

कदर किरदार की होती है… वरना…
कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है.......

पानी मर्यादा तोड़े तो "विनाश"
                          "और"
         वाणी मर्यादा तोड़े तो "सर्वनाश"

इसलिए हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखो।

बुधवार, 6 मई 2015

सुकून मिलता है

!! सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर..
चीख भी लेता हूँ और आवाज भी
नही होती...!!

आओ  निकाह-ऐ-इश्क कर लेते है, तुम दहेज़ में अपने सारे गम ले आओ, मैं हक़-ऐ-मेहर में तमाम खुशियाँ दे देता हूँ....!!

आसान नही है हमसे यूँ शायिरयों में जीत पाना !
हम हर एक शब्द मोहब्बत में हार कर लिखते हैं !!

सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद;
क्या करते हम भी यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।
एक उसूल पर गुजारी है ज़िन्दगी मैंने....
जिसको अपना माना उसे कभी परखा नहीं...!!

जमाने की नजर मेँ थोड़ा सा अकड कर चलना
सीख ले ऐ
दोस्त........
मोम जैसा दिल लेकर फिरोगे तो, लोग जलाते
ही रहेँगेl

जिंदगी की दौड़ में
तजुर्बा थोडा कच्चा रह गया,

हमने न सीखा फरेब, दिल बच्चा रह गया !!

"इश्क" का धंधा ही बंद कर दिया साहेब।.... मुनाफे में “जेब” जले.. और घाटे में “दिल”!!!!

बारूद मेरे अन्दर का भीग गया तेरे आंसुओं से..
वरना ये दिल एक बड़ी घटना को अंजाम दे देता..
"मुकद्दर में लखा के लाये हैं दर-ब-दर भटकना...

इसलिये मौसम कोई भी हो परिंदे परेशान ही रहते हैं..."

मंजिले तो हमेशा खुशनसीबो को नसीब से मिलती हेैे...
हमतो दिवाने हैे...
हमेशा सफर मे ही रहेगेँl
कभी हो मुखातिब तो कहूँ भी सही की क्या दर्द है मेरा,
अब ख़त मे पूँछोगे तो खैरियत ही कहूँगा।

किताबों की तरह हैं हम भी….
अल्फ़ाज़ से भरपूर, मगर ख़ामोश….!!

आशाएं ऐसी हो जो

आशाएं ऐसी हो जो-
    मंज़िल  तक ले जाएँ,

           मंज़िल  ऐसी हो जो-
          जीवन जीना सीखा दे,

    जीवन ऐसा हो जो-
   संबंधों की कदर करे,

      और संबंध ऐसे हो जो-
  याद करने को मजबूर करदे ।
     
        

मंगलवार, 5 मई 2015

"रिश्ता" दिल से होना चाहिए

"रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,
"नाराजगी" शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं!

सड़क कितनी भी साफ हो
"धुल" तो हो ही जाती है,
इंसान कितना भी अच्छा हो
"भूल" तो हो ही जाती है!!!

आइना और परछाई के
जैसे मित्र रखो क्योकि
आइना कभी झूठ नही बोलता और परछाई कभी साथ नही छोङती......

खाने में कोई 'ज़हर' घोल दे तो
एक बार उसका 'इलाज' है..
लेकिन 'कान' में कोई 'ज़हर' घोल दे तो,
उसका कोई 'इलाज' नहीं है।

"मैं अपनी 'ज़िंदगी' मे हर किसी को
'अहमियत' देता हूँ...क्योंकि
जो 'अच्छे' होंगे वो 'साथ' देंगे...
और जो 'बुरे' होंगे वो 'सबक' देंगे...!!

अगर लोग केवल जरुरत पर
ही आपको याद करते है तो
बुरा मत मानिये बल्कि
गर्व कीजिये  क्योंकि "
मोमबत्ती की याद तभी आती है,
जब अंधकार होता है।"

जो भाग्य में है

"जो भाग्य में है , वह
               भाग कर आएगा,
जो नहीं है , वह
          आकर भी भाग जाएगा...!"

यहाँ सब कुछ बिकता है ,
         दोस्तों रहना जरा संभाल के ,
बेचने वाले हवा भी बेच देते है ,
                    गुब्बारों में डाल के ,

सच बिकता है , झूट बिकता है,
                   बिकती है हर कहानी ,
तीनों लोक में फेला है , फिर भी
                  बिकता है बोतल में पानी ,

कभी फूलों की तरह मत जीना,
          जिस दिन खिलोगे ,
                  टूट कर बिखर्र जाओगे ,
जीना है तो पत्थर की तरह जियो;
          जिस दिन तराशे गए ,
                 "भगवान" बन जाओगे....!!

रविवार, 3 मई 2015

लौट आता हूँ वापस घर की तरफ...

लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार  पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”

दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...

बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!

भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!

हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.

"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,

पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं।

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...

पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम

गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।

अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करेc

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नही तो, कल निकलेगा।

अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।

मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।

ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा।

जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।

कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।.....

जाने क्यू

जाने क्यूं
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नही होते।
जाने क्यूं
अब मस्त मौला मिजाज नही होते।

पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।
जाने क्यूं
अब चेहरे,
खुली किताब नही होते।

सुना है
बिन कहे
दिल की बात
समझ लेते थे।
गले लगते ही
दोस्त हालात
समझ लेते थे।

तब ना फेस बुक
ना स्मार्ट मोबाइल था
ना फेसबुक
ना ट्विटर अकाउंट था
एक चिट्टी से ही
दिलों के जज्बात
समझ लेते थे।

सोचता हूं
हम कहां से कहां आ गये,
प्रेक्टीकली सोचते सोचते
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से
समस्या का समाधान
कहां पूछता है
अब बेटा बाप से
उलझनों का निदान
कहां पूछता है
बेटी नही पूछती
मां से गृहस्थी के सलीके
अब कौन गुरु के
चरणों में बैठकर
ज्ञान की परिभाषा सीखे।

परियों की बातें
अब किसे भाती है
अपनो की याद
अब किसे रुलाती है
अब कौन
गरीब को सखा बताता है
अब कहां
कृण्ण सुदामा को गले लगाता है

जिन्दगी मे
हम प्रेक्टिकल हो गये है
मशीन बन गये है सब
इंसान जाने कहां खो गये है!

इंसान जाने कहां खो गये है 
इंसान जाने कहां खो गये है....!!!!

शुक्रवार, 1 मई 2015

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा।
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।।

माना कि तुम लफ़्ज़ों के बादशाह हो

बस एक करवट ज्यादा ले लूं किसी रोज़ सोते
वक़्त,
माँ आज भी आकर पूछ लेती है "बेटा, तबियत
तो ठीक है
_______________

रूठ कर तुम चली गइ हो तो जरा इतना बता दो
ख्वाबों में आने का अधिकार तुम्हे किसने दे दिया है

माना कि तुम लफ़्ज़ों के बादशाह हो,मगर हम भी खामोशियों पर राज़ करते हैं!

तकलीफें तो हज़ारों हैं इस ज़माने में….
बस कोई अपना नज़रअंदाज़ करे तो बर्दाश्त नहीं होता…

इत्र से कपड़ो का महकना बड़ी बात नही
मजा तब है जब खुशबू आपके किरदार से आए

रख लो दिल में सम्भालकर थोङी सी याद मेरी..!
रह जाओ जब तन्हा बहुत काम आएगें हम…!!

मजबूरियॉ ओढ के निकलता हूं घर से आजकल, वरना शौक तो आज भी है बारिशों में भीगनें का

ना शौक दीदार का… ना फिक्र जुदाई
की, बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग जो…
मोहब्बत नहीँ करतेँ

फ़र्क़ नहीं पड़ता माला को,
गर कोई मोती टूट जाये।
पर धागे का हाल पूछना ,
सब खाली खाली सा हो जाता है।