कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

मुक़द्दर का सिकंदर

तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है
कहीं ज़ख्म तो कहीं पीठ में खंजर क्यों है

सुना है तू हर ज़र्रे में है रहता, फिर
ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यों है

जब रहने वाले दुनियां के हर बन्दे तेरे हैं,
फिर कोई दोस्त तो कोई दुश्मन क्यों है..

तू ही लिखता है हर किसी का मुक़द्दर, फिर
कोई बदनसीब, कोई मुक़द्दर का सिक्कंदर क्यों है..

मेरी आदत नही

www.salekart.blogspot.in

कुछ चंद पंक्तिया आज मेरे बारे में।।।

किसी को तकलीफ देना मेरी आदत नही,
बिन बुलाया मेहमान बनना मेरी आदत नही…!

मैं अपने गम में रहता हूँ नबाबों की तरह,
परायी खुशियो के पास जाना मेरी आदत नही…!

सबको हँसता ही देखना चाहता हूँ मै,
किसी को धोखे से भी रुलाना मेरी आदत नही…!

बांटना चाहता हूँ तो बस प्यार और मोहब्बत,
यूँ नफरत फैलाना मेरी आदत नही…!

जिंदगी मिट जाये किसी की खातिर गम नही,
कोई बद्दुआ दे मरने की यूँ जीना मेरी आदत नही…!

सबसे दोस्त की हैसियत से बोल लेता हूँ,
किसी का दिल दुखा दूँ मेरी आदत नही…!

दोस्ती होती है दिलों से चाहने पर,
जबरदस्ती दोस्ती करना मेरी आदत नही..!

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

अगर बिकी तेरी दोस्ती...

हरिवंशराय बच्चनजी की सुन्दर कविता---

अगर बिकी तेरी दोस्ती...
तो पहले ख़रीददार हम होंगे..!
तुझे ख़बर न होगी तेरी क़ीमत ..
पर तुझे पाकर सबसे अमीर हम होंगे..!!
दोस्त साथ हो तो रोने में भी शान है..
दोस्त ना हो तो महफिल भी समशान है!

सारा खेल दोस्ती का है ऐ मेरे दोस्त,
वरना जनाजा और बारात एक ही समान है !! ....

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात
अच्छी लगती है..




मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में
रहना ।।





चाहता तो हु की
ये दुनिया
बदल दू
पर दो वक़्त की रोटी के
जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती
दोस्तों



महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से
कभी ना चला ...!



युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, 'किमत
चेहरों की होती है!!'




अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र
क्यों ??
और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र
क्यों ???


"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर
देती हैं,
एक उसका 'अहम' और
दूसरा उसका 'वहम'......



" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"


मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"




दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है
या नहीं,
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नही


ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात
"आख़री" होगी,
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक
दूसरे से,
ना जाने कौनसी "मुलाक़ात"
आख़री होगी ....।।।।

अगर जींदगी मे कुछ पाना हो तो
तरीके बदलो,....ईरादे नही....||

ग़ालिब ने खूब कहा है :
ऐ चाँद तू किस मजहब का है !!
ईद भी तेरी और करवाचौथ भी तेरा!!

इंसान और कमियाँ

लाजवाब लाईन

  एक बार इंसान ने कोयल से कहा
         "तूं काली ना होती तो
           कितनी अच्छी होती"

              सागर से कहा:-
     "तेरा पानी खारा ना होता तो
           कितना अच्छा होता"

              गुलाब से कहा:-
        "तुझमें काँटे ना होते तो
           कितना अच्छा होता"

        तब तीनों एक साथ बोले:-
         "हे इंसान अगर तुझमें
  दुसरो की कमियाँ देखने की आदत
   ना होती तो तूं कितना अच्छा होता"

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

जज्वात की कलम से

जज्वात की कलम से जिगर के पास लिखा कर
मायूसियाँ छोड़, रोज एक नयी आस लिखा कर
  ऐब को हुनर समझ के जो इतराता रहा उम्र भर
  ये दिलफरेबी छोड़ ,कुछ दिलखराश लिखा कर
बड़े शौक से गया था सुनाने उसको नई गजल
कहने लगा वो, लफ़्ज छोड़ अहसास लिखा कर
फूल खुशबू हुस्न ओ ईश्क रंज ओ गम मय साकी
ये चलन अब आम है छोड़ ,कुछ खास लिखा कर
उतर जा अन्दर तक अँधेरों में तलाश कोई रोशनी
कशमकश ये छोड़ कुछ सुनहरे कयास लिखा कर
किस किस की तस्दीक में यूं जाया करेगा जिन्दगी
खुदासनासी छोड़ और  खुदसनास लिखा कर
अक्ल ओ खिरद दानिशवरी से  क्या हुआ हासिल
ये होशियारी छोड़ अब तू बदहवास लिखा कर

ए दोस्त तू जिंदगी को जी

"ए दोस्त तू जिंदगी को जी,
उसे समझने की कोशिश न कर।

सुन्दर सपनो के ताने बाने बुन,
उसमे उलझने की कोशिश न कर।

चलते वक़्त के साथ तू भी चल,
उसमे सिमटने की कोशिश न कर।

अपने हाथो को फैला,
खुल कर साँस ले,
अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर।

मन में चल रहे युद्ध को विराम दे,
खामख्वाह खुद से लड़ने की कोशिश न कर।

कुछ बाते भगवान् पर छोड़ दे,
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर।

जो मिल गया उसी में खुश रह,
जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर।

रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा,
मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश ना कर ।

अंधेरो के माथे पर

अंधेरो के माथे पर रोज उजाले लिखता हूँ
मंजिलो के नाम पैरों के छालै लिखता हूँ

ज़माना तो महज़ लफ्ज़ों का दिवाना है
मैंअहसास के मुख पर ताले लिखता हूँ

वाद ए सबा के साज़ पर मखमली आवाज़ में
दिल जिसे गा सके वो गीत निराले लिखता हूँ

कि  पार उतरना ही सबका मुक्कद्दर नहीं होता
इन कश्तियों को समन्दर के हवाले लिखता हूँ

कब तक तू मुझे यूं आजमाएगी ए जिन्दगी
मैं दिल के नाम दर्द के निवाले लिखता हूँ

(रतन सिंह चम्पावत कृत)

बुधवार, 25 मार्च 2015

यदा यदा हि मोबाइलस्य ग्लानिर्भवति सिग्नलः

यदा यदा हि मोबाइलस्य
ग्लानिर्भवति सिग्नलः

आउट ऑफ रीच सूचनेन
त्वरित जागृत संशयाः ।

विच्छेदितं संपर्का: कलहं मात्र भविष्यति।
तस्मात चार्जिंग एवं रिचार्जिंग कुर्वंतु तव सत्वरं।।

मनसोक्तम् चॅटिंगं।
हास्यविनोदेन टेक्स्टिंगं।

सत्वर सत्वर फाॅरवर्डिंगं
अखंडितं सेवाः प्रार्थयामि।।

टच स्क्रीनं नमस्तुभ्यं अंगुलीस्पर्शं क्षमस्वमे।
प्रसन्नाय इष्टमित्राणां अहोरात्रं मेसेजम् करिष्ये॥

इति श्री मोबाईल स्तोत्रम् संपूर्णम्
ॐ शांति शांति शांति:
॥शुभम् भवतु॥

"रोज सुबह शाम इसका ३ बार जाप करें तो Internet की सर्विस अखंड बनी रहती है और आपका Mobile सदा निरोगी रहता है।"

मंगलवार, 24 मार्च 2015

बहुत कुछ गंवा दिया

मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे...
चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे...
सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए....
छतों पर अब न सोते हैं
बात बतंगड अब न होते हैं..
आंगन में वृक्ष थे
सांझे सुख दुख थे...
दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था...
कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे...
इक साइकिल ही पास था
फिर भी मेल जोल था...
रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे...
पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था...
मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे...
अब शायद कुछ पा लिया है
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया

सुख तू कहाँ मिलता है


ऐ सुख तू कहाँ मिलता है
क्या तेरा कोई स्थायी पता है

क्यों बन बैठा है अन्जाना
आखिर क्या है तेरा ठिकाना।

कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको
पर तू न कहीं मिला मुझको

ढूंढा ऊँचे मकानों में
बड़ी बड़ी दुकानों में

स्वादिस्ट पकवानों में
चोटी के धनवानों में

वो भी तुझको ढूंढ रहे थे
बल्कि मुझको ही पूछ रहे थे

क्या आपको कुछ पता है
ये सुख आखिर कहाँ रहता है?

मेरे पास तो दुःख का पता था
जो सुबह शाम अक्सर मिलता था

परेशान होके रपट लिखवाई
पर ये कोशिश भी काम न आई

उम्र अब ढलान पे है
हौसले थकान पे है

हाँ उसकी तस्वीर है मेरे पास
अब भी बची हुई है आस

मैं भी हार नही मानूंगा
सुख के रहस्य को जानूंगा

बचपन में मिला करता था
मेरे साथ रहा करता था

पर जबसे मैं बड़ा हो गया
मेरा सुख मुझसे जुदा हो गया।

मैं फिर भी नही हुआ हताश
जारी रखी उसकी तलाश

एक दिन जब आवाज ये आई
क्या मुझको ढूंढ रहा है भाई

मैं तेरे अन्दर छुपा हुआ हूँ
तेरे ही घर में बसा हुआ हूँ

मेरा नही है कुछ भी मोल
सिक्कों में मुझको न तोल

मैं बच्चों की मुस्कानों में हूँ
हारमोनियम की तानों में हूँ

पत्नी के साथ चाय पीने में
परिवार के संग जीने में

माँ बाप के आशीर्वाद में
रसोई घर के महाप्रसाद में

बच्चों की सफलता में हूँ
माँ की निश्छल ममता में हूँ

हर पल तेरे संग रहता हूँ
और अक्सर तुझसे कहता हूँ

मैं तो हूँ बस एक अहसास
बंद कर दे मेरी तलाश

जो मिला उसी में कर संतोष
आज को जी ले कल की न सोच

कल के लिए आज को न खोना

मेरे लिए कभी दुखी न होना
मेरे लिए कभी दुखी न होना

सोमवार, 23 मार्च 2015

Sarfaroshi ki tamanna

Sarfaroshi ki tamanna By Martyr Shree Ram Prasad Bismill,                                                       सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचः ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या बिसमिले दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूचः-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिए हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ, जिन में हो जुनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोलः सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्क़िलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,

जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लढ़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

शनिवार, 21 मार्च 2015

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

नव वर्ष की हर्षित बेला पर,
खुशियां     मिले     अपार |
यश,कीर्ति, सम्मान     मिले,
और      बढे        सत्कार ||
       शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
        शुभ-शुभ     रहे       विचार |
        उत्साह.   बढे  चित चेतन में,
        निर्मल      रहे        आचार ||
सफलतायें नित  नयी मिले,
बधाई                बारम्बार |
मंगलमय हो काज  आपके,
सुखी       रहे      परिवार ||
     
"नव वर्ष  की हार्दिक शुभकामनाएं"

शुक्रवार, 20 मार्च 2015

बोये जाते हैं बेटे

बोये जाते हैं बेटे
पर उग जाती हैं बेटियाँ,
खाद पानी बेटों को
पर लहराती हैं बेटियां,
स्कूल जाते हैं बेटे
पर पढ़ जाती हैं बेटियां,
मेहनत करते हैं बेटे
पर अव्वल आती हैं बेटियां,
रुलाते हैं जब खूब बेटे
तब हंसाती हैं बेटियां,
नाम करें न करें बेटे
पर नाम कमाती हैं बेटियां,
जब दर्द देते बेटे
तब मरहम लगाती बेटियां,
छोड़ जाते हैं जब बेटे
तो काम आती हैं बेटियां,
आशा रहती है बेटों से
पर पुर्ण करती हैं बेटियां,
हजारों फरमाइश से भरे हैं बेटे
पर समय की नज़ाकत को समझती बेटियां,

बेटी को चांद जैसा मत बनाओ कि हर कोई घूर घूर कर देखे

किंतु

बेटी को सूरज जैसा बनाओ ताकि घूरने से पहले सब की नजर झुक जाये.

हम लोग बेटियों के लिये हर तरह अधिक चिंता किया करते हैं

लेकिन

आज के इस युग में एक बेटी दस बेटों के तुल्य है ....

         

"जो मम्मी, पापा को स्वर्ग ले जाये वह बेटा होता है"

किंतु

"जो स्वर्ग को घर में ले आये, वह बेटी होती है " .....!


एक पिता ने अपनी बेटी से पूछा :
तुम किसे जादा चाहती हो मुझे या अपने पतिदेव को....??

बेटी ने उत्तर दिया :
मुझे सचमुच पता नहीं,
लेकिन जब मैं आपको देखती हूं तो उन्हें भूल जाती हूं ....

लेकिन जब मैं उन्हें देखती हूं तब आपको याद करती हूं

आप कभी भी अपनी बेटी को बेटा कह सकते हो लेकिन आप कभी अपने बेटे को बेटी नहीं कह सकते  . .

यही कारण है कि बेटियां आम नहीं, खास होती हैं ..

बेटी की मोहब्बत को कभी आजमाना नहीं ,

वह फूल है, उसे कभी रुलाना नहीं

पिता का तो गुमान होती है बेटी,

जिन्दा होने की पहचान होती है बेटी ,

उसकी आंखें कभी नम न होने देना ,

उसकी जिन्दगी से कभी खुशियां कम न होने देना ,

उन्गली पकड़ कर कल जिसको चलाया था तुमने,

फ़िर उसको ही डोली में बिठाया था तुमने,

बहुत छोटा सा सफ़र होता है बेटी के साथ,

बहुत कम वक्त के लिये वह होती हमारे पास ..!!

असीम दुलार पाने की हकदार है बेटी,

समझो ईश्वर का आशीर्वाद है बेटी . . . .

रिश्ते और रास्ते

रिश्ते और रास्ते एक ही सिक्के

के दो पहलू हैं, कभी रिश्ते

निभाते निभाते रास्ते खो जाते हैं!

और कभी रास्ते पर चलते चलते

रिश्ते बन जाते हैं!

दिलो में शिकवे

जो दिलो में शिकवे और जुबान पर शिकायते कम रखते है, 
वो लोग हर रिश्ता निभाने का दम रखते हैं.. 

जिंदगी बहुत कुछ
सिखाती है,
कभी हंसाती है तो
कभी रुलाती है,
पर जो हर हाल में
खुश रहते हैं,
जिंदगी उनके आगे
सर झुकाती है।

बुधवार, 18 मार्च 2015

कुदरत

एक बात हमेशा याद रखना दोस्तों

                ढूंढने पर वही मिलेंगे
                    जो खो गए थे,

                वो कभी नहीं मिलेंगे
                 जो बदल गए है ॥
कोई  चाहे  कितना  भी  महान  क्यों  ना  हो  जाए , 
पर  कुदरत  कभी  भी  किसी  को  महान  बनने का  मौका  नहीं  देती ।। 
कंठ  दिया  कोयल  को ,  तो  रूप  छीन  लिया। 
रूप  दिया  मोर को ,  तो  ईच्छा  छीन  ली ।  दि  ईच्छा  इन्सान को ,  तो  संतोष  छीन  लिया। 
दिया  संतोष  संतको ,  तो  संसार  छीन  लिया। 
दिया  संसार  चलाने  देवी -देवताओं  को , 
तो  उनसे  भी  मोक्ष  छीन  लिया । 
दिया  मोक्ष  उस  निराकार को ,  तो उसका  भी  आकार  छीन  लिया ।। 
मत  करना  कभी  भी  ग़ुरूर  अपने  आप  पर   'ऐ इंसान' , 
मेरे  रब ने तेरे  और  मेरे  जैसे  कितने  मिट्टी  से  बना के  मिट्टी  में  मिला  दिए  ।

रंग बदलते देखा है ....

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है ....
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!

वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..
उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ रोते देखा है .. !!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से .. टूट जाते थे ..पत्थर ..
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..
उनके .. होठों पर भी .. जबरन .. चुप्पी का ताला .. लगा देखा है .. !!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..
इनके .. रहते हुए भी .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर हुआ देखा है .. !!!

कर सको......तो किसी को खुश करो......दुःख देते ........तो हजारों को देखा है..

न 'मंदिर' न 'मस्जिद'

"बच्चे झगड़ रहे थे मोहल्ले के,
न जाने किस बात पर . . .

सूकून इस बात का था, 
न 'मंदिर' का ज़िक्र था न 'मस्जिद' का !"
---------------------------

जब  टूटने  लगे  होसले  तो  बस  ये  याद  रखना,

बिना  मेहनत  के  हासिल  तख्तो  ताज  नहीं  होते,

ढूंड  लेना  अंधेरों  में  मंजिल  अपनी,

जुगनू  कभी  रौशनी  के  मोहताज़  नहीं  होते.

मंगलवार, 17 मार्च 2015

गलतियां

ग़लतियों से जुदा
तू भी नही,
मैं भी नही,

दोनो इंसान हैं,
खुदा तू भी नही,
मैं भी नही ... !

" तू मुझे ओर मैं तुझे
इल्ज़ाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता
तू भी नही,
मैं भी नही " ... !!

" ग़लत फ़हमियों ने कर दी
दोनो मैं पैदा दूरियाँ,
वरना फितरत का बुरा
तू भी नही,
मैं भी नही...!!