प्यारी सी मुस्कान चाहिये
ना कोई राह़ आसान चाहिए,,,
ना ही हमें कोई पहचान चाहिए,,,
एक चीज माँगते रोज भगवान से,,,
अपनों के चेहरे पे हर पल,,,
प्यारी सी मुस्कान चाहिये !!!
शायरी कविताएँ - गम यादें : sweet sad fun dard poem sms for friends girlfriend wife for every occassion -morning evening and night
ना कोई राह़ आसान चाहिए,,,
ना ही हमें कोई पहचान चाहिए,,,
एक चीज माँगते रोज भगवान से,,,
अपनों के चेहरे पे हर पल,,,
प्यारी सी मुस्कान चाहिये !!!
आँखे' कितनी अजीब होती है,
जब उठती है तो दुआ बन जाती है,
जब झुकती है तो हया बन जाती है,
उठ के झुकती है तो अदा बन जाती है
झुक के उठती है तो खता बन जाती है,
जब खुलती है तो दुनिया इसे रुलाती है,
जब बंद होती है तो दुनिया को ये रुलाती है...!!
"हर रिश्ते में विश्वास रहने दो;
जुबान पर हर वक़्त मिठास रहने दो;
यही तो अंदाज़ है जिंदगी जीने का;
न खुद रहो उदास, न दूसरों को रहने दो.
आमर सी आशा करो भलो दियो सन्देश।
आज आमर पठाविया झूर झूर रोवे देश।।
सेवा तो इण देश री, करी घणी कलाम।
जातोङा हंसला तनै, भारत करै सलाम।।
लिखता तो रोवै कलम, कठै गयो कलाम।
आखर संग कागद करै, आँसू भरया सलाम।।
भारत माता भाल ने कियो ऊंचो कलाम।
फेरु पाछो आवज्ये सादर करूँ सलाम।।
नेह समेत करू नमन मानो मिसाइल मैन।
शब्दा री श्रद्धांजलि टपकन लाग्या नैन।।
आमर सी आशा करो भलो दियो सन्देश।
आज आमर पठाविया झूर झूर रोवे देश।।
धरम जात सूं उपरे मानव मोटो एक।
आज छोड़ चाल्यो अबे नर घणो ओ नेक।।
सीधो सरल सुभाव रो एहडो नर नह और।
करूँ विदा कलाम जी छलकी नैना कौर।।
. . . . . एक प्यारी सी कविता . . . . .
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं....
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
"ज़िन्दगी" के लिये ही वक़्त नहीं......
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .....
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर "दोस्ती" के लिये वक़्त नहीं .....
गैरों की क्या बात. करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं......
आखों में है नींद. भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं......
"दिल" है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, की,,
थकने का भी वक़्त नहीं ....
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं.......
तू ही बता दे ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,,
जीने के लिये। भी वक़्त नहीं.... ....
चना ज़ोर गरम और पकोडे प्याज़ के ...
चार दिन मे सूखेंगे कपड़े ये आज के ...
आलस और खुमारी बिना किसी काज के ...
टर्राएँगे मेंढक फिर बिना किसी साज़ के ...
बिजली की कटौती का ये मौसम आया है ...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
भीगे बदन और गरम चाय की प्याली ...
धमकी सी गरजती बदली वो काली ...
नदियों सी उफनती मुहल्ले की नाली ...
नयी सी लगती वो खिड़की की जाली ...
छतरी और थैलियों का मौसम आया है ...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
निहत्थे से पौधो पे बूँदो का वार ...
हफ्ते मे आएँगे अब दो-तीन इतवार ...
पानी के मोतियों से लदा वो मकड़ी का तार...
मिट्टी की खुश्बू से सौंधी वो फुहार ...
मोमबत्तियाँ जलाने का मौसम आया है...
हमारे घर आँगन आज सावन आया है ...
निज पथ की बाधा को
सहर्ष स्वीकार करो।
हे जीवकुल श्रेष्ठ तुम
स्वयं का उद्धार करो।
अभिनन्दन कर रहा है
नव्उदित सूर्य तुम्हारा।
पर जीवनरूपी सागर को
पहले तुम पार करो।
हे जीवकुल श्रेष्ठ तुम
स्वयं का उद्धार करो।
आलस्य,अभिमान,निद्रा का
परित्याग करो तुम ।
प्रेम,मानवता,ईश्वर से
अनुराग करो तुम ।
जग की क्षुद्र वासनाओ का
तुम तिरस्कार करो।
हे जीवकुल श्रेष्ठ तुम
स्वयं का उद्धार करो।
तुम दिव्यपुरूष हो
निडर,निर्भीक,नि:स्वार्थ बनो।
जीवन रण के अर्जुन तुम
कर्तव्य के परमार्थ बनो।
अपने उद्देश्यो का स्वयं ही
तुम परिष्कार करो।
हे जीवकुल श्रेष्ठ तुम
स्वयं का उद्धार करो।
जिम्मेदारियां ओढ़ के निकलता हूँ घर से यारो...
वरना, बारिशों में भीगने का शौक तो अब भी है....!!
वो बचपन के दिन लौटा दे ऐ खुदा.....
जहाँ न दोस्त का मतलब पता था और न मतलब की दोस्ती....
"उम्र" और "ज़िन्दगी" में बस फर्क "इतना"
जो "दोस्तों" के बिन बीति वो "उम्र"
और जो दोस्तों के "साथ" "गुज़री" वो "ज़िन्दगी..
और बस ईसी. वजह से हमें लगता है. कि. अब "जमाना" बदल गया. है........
किसी शायर ने खूब कहा है,,
रहने दे आसमा. ज़मीन कि तलाश. ना कर,,
सबकुछ। यही। है, कही और तलाश ना कर.,
हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का। क्या। मज़ा,,,
जीने के लिए बस। एक खूबसूरत वजह। कि तलाश कर,,,
ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,,
अपने अपने हिस्से कि। "दोस्ती" निभाएंगे,,,
बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,,,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,,,
क्या भरोसा है. जिंदगी का,
इंसान. बुलबुला. है पानी का,
जी रहे है कपडे बदल बदल कर,,
एक दिन एक "कपडे" में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर,,
पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।
जाने क्यूं
अब चेहरे,
खुली किताब नही होते।
सुना है
बिन कहे
दिल की बात
समझ लेते थे।
गले लगते ही
दोस्त हालात
समझ लेते थे।
तब ना फेस बुक
ना स्मार्ट मोबाइल था
ना फेसबुक
ना ट्विटर अकाउंट था
एक चिट्टी से ही
दिलों के जज्बात
समझ लेते थे।
सोचता हूं
हम कहां से कहां आ गये,
प्रेक्टीकली सोचते सोचते
भावनाओं को खा गये।
अब भाई भाई से
समस्या का समाधान
कहां पूछता है
अब बेटा बाप से
उलझनों का निदान
कहां पूछता है
बेटी नही पूछती
मां से गृहस्थी के सलीके
अब कौन गुरु के
चरणों में बैठकर
ज्ञान की परिभाषा सीखे।
परियों की बातें
अब किसे भाती है
अपनो की याद
अब किसे रुलाती है
अब कौन
गरीब को सखा बताता है
अब कहां
कृण्ण सुदामा को गले लगाता है
जिन्दगी मे
हम प्रेक्टिकल हो गये है
मशीन बन गये है सब
इंसान जाने कहां खो गये है!
इंसान जाने कहां खो गये है
इंसान जाने कहां खो गये है....!!!!
रिश्ता वो नहीं होता जो
दुनिया को दिखाया जाता है!
रिश्ता वह होता है,जिसे
दिल से निभाया जाता है!!
अपना कहने से कोई
अपना नहीं होताव्,
अपना वो होता है जिसे
दिल से अपनाया जाता है !
कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का ।।
हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का ।
बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया ।।
पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया ।।
अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने ।।
मेरे रोने को पल भर भी ,बिल्कुल नहीं सहा तुमने ।।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं ।।
अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं ।।
देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं ।।
आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं।।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं।।
बेटी की बातों को सुन के ,पिता नहीं रह सका खड़ा।।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा ।।
कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी ।।
जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी ।।
माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला।।
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला।।
छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा ।।
उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा।।
बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है।।
कभी न रोने वाला बापू,फूट फूट कर रोया है ।।
खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे।
क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
बीड़ी अब
CIGARETTE
बन गयी,
चटाई
CARPET बन गयी,
मुक्केबाजी
BOXING बन गयी,
कुश्ती हमारी
WRESLING बन गयी,
गिल्ली डंडा
CRICKET बन गया,
..हमारा भारत
GREAT बन गया..
गाय हमारी
COW बन गयी,
शर्म हया अब
WOW बन गयी,
काढ़ा हमारा
CHAI बन गया,
छोरा बेचारा
GUY बन गया,
कठपुतली अब
PUPPET बन गया,
..हमारा भारत
GREAT बन गया..
हल्दी अब
TURMERIC बन गयी,
ग्वारपाठा
ALOVIRA बन गया,
योग हमारा
YOGA बन गया,
घर का जोगी
JOGA बन गया,
भोजन 100 रु.
PLATE बन गया,
..हमारा भारत
GREAT बन गया..
घर की दीवारेँ
WALL बन गयी,
दुकानेँ
SHOPING MALLबन गयीँ,
गली मोहल्ला
WARD बन गया,
ऊपरवाला
LORD बन गया,
रक्षाकवच
HELMET बन गया,
..हमारा भारत
GREAT बन गया..
माँ हमारी
MOM बन गयी,
छोरियाँ
ITEM BOMB बन गयीँ,
पिताजी अब
DAD बन गये,
घर के मालिक
HEAD बन गये,
..हमारा भारत
GREAT हो गया..
मनमोहन बिलकुल fail हो गया
केजरीवाल भी खेल हो गया
आडवाणी हमेशा के लिए
P.M. in wait हो गया
क्यों की MODI बीजेपी में
Heavy wait हो गया.
अच्छे दिनों का सपना
फिलहाल LATE हो गया,
MODI फिर भी
GREAT हो गया..
तुलसी की जगह
मनी प्लांट ने ले ली..!
चाची की जगह
आंटी ने ले ली..!
पिता जी डेड हो गये..!
भाई तो अब ब्रो हो गये..!
बेचारी बेहन भी अब
सिस हो गयी..!
दादी की लोरी तो अब
टांय टांय फिस्स हो गयी..!
टी वी के सास बहू में भी
अब साँप नेवले का रिश्ता है..!
पता नहीं एकता कपूर
औरत है या फरिश्ता है..!!!
जीती जागती माँ बच्चों के
लिए ममी हो गयी..!
रोटी अब अच्छी कैसे लगे
मैग्गी जो इतनी यम्मी हो गयी..!
गाय का आशियाना अब
शहरों की सड़कों पर बचा है..!
विदेशी कुत्तों ने लोगों के
कंधों पर बैठकर इतिहास रचा है..!
बहुत दुखी हूँ ये सब देखकर
दिल टूट रहा है..!
हमारे द्वारा ही हमारी
भारतीय सभ्यता का
साथ छूट रहा है.....
एक मेसेज
भारतीय सभ्यता के नाम....
युं ना किसी के दिल के साथ खेलो.....
युं ना किसी के दिल के साथ खेलो.....
जब ग्रुप में मैसेज ही नहीं करना है तो....
स्मार्टफोन बेच कर रेडियो लेलो
कलम बुद्दका आले में
टाट-पट्टिका ताले में ।।
ढाबा है विद्यालय में ,
ध्यान बंद शौचालय में ।।
मास्टर जी झमेले में
दिखते खड़े तबेले में ।।
भूसा-चूनी ,चारा काटें
अधिकारी जी ,फ़िर भी डाँटें ।।
सब्ज़ी-चावल रोटी परसें ,
बच्चे पढ़ने को हैं तरसें ।।
आया सरकारी फ़रमान
मास्टर है अवगुण की खान ।।
पड़ा निकम्मा कुर्सी तोड़े
चलो इसे कोल्हू से जोड़ें ।।
बेग़ारी करवाओ इससे
बच्चे न पढ़ पाएँ जिससे ।।
वोट बैंक तैयार रहे
होता अत्याचार रहे ।।
मुँह खोले तो भेजो जेल
शिक्षा के सँग होता खेल ।।
कैसे चले ज्ञान की रेल ।
पढ़े फ़ारसी बेचें तेल ।।
मित्रों जीवन की इस तेज रफ्तार व आपाधापी में बहुत कुछ छूट जाता है, जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं - - -
घिरी रहती है तेल नून के चक्करों में।
बच्चों की पढाई या उनकी दवाइयों के schedule में,
मसरूफ सी कोई मिलती तो ज़रूर है
पर नहीं मिलती मुझे वो लड़की जिसे मैं ब्याह के लाया था
जो बिना बात किये रह न पाती थी,
आज कल सिर्फ एक ही सवाल पूछती 'कल tiffin में क्या ले जाओगे?
याद है मुझे वह बातूनी
पर नहीं मिलती मुझे वो लड़की जिसे से मैं ब्याह के लाया था
कतई ऐतियात से काजल लगाने का था शौक़ जिसे,
आजकल दिनों तक बालों के गिरहन भी नहीं सुलझाती,
याद है मुझे वह अल्ल्हड़
पर नहीं मिलती मुझे वो लड़की जिसे से मैं ब्याह के लाया था
नए जूते की मामुली सी खारिश ने रुलाया था जिसे घंटो,
बेपरवाह लेकर घूमती है हाथों पर, रसोई के छाले वह आज,
याद है मुझे वह नाज़ो से पली
पर नहीं मिलती मुझे वो लड़की जिसे से मैं ब्याह के लाया था
लेकिन यह देखा है मैंने,
की ज़िंदगी की हर चीज़ में अपवाद होता है
इतवार की शाम चौक से गुज़रते समय,
जब पानी के बताशों के ठेलों की तरफ देखती है
तो उसकी लालची निगाहों में,
दिख जाती है वो लड़की जिसे मैं ब्याह के लाया था
मैं आज भी अक्सर बैठक के सोफे, पर ही पसर जाता हूँ ।
रात भर ठण्ड में ठिठुरता हूँ,
और सुबह अपने को, ख्याल से डाले हुए कम्बल में ढका पाता हुँ.
सुबह की हड़बड़ी में शरारत से ही सही पर पूछता ज़रूर हूँ
आखिर पिछली रात किसने की थी मेहरबानी;
और फिर उसकी दबी सी लज भरी हंसी में आखिर
पा ही जाता हूँ वो लड़की जिसे मैं ब्याह के लाया था
किसी शायर ने अंतिम यात्रा
का क्या खूब वर्णन किया है.....
था मैं नींद में और.
मुझे इतना
सजाया जा रहा था....
बड़े प्यार से
मुझे नहलाया जा रहा
था....
ना जाने
था वो कौन सा अजब खेल
मेरे घर
में....
बच्चो की तरह मुझे
कंधे पर उठाया जा रहा
था....
था पास मेरा हर अपना
उस
वक़्त....
फिर भी मैं हर किसी के
मन
से
भुलाया जा रहा था...
जो कभी देखते
भी न थे मोहब्बत की
निगाहों
से....
उनके दिल से भी प्यार मुझ
पर
लुटाया जा रहा था...
मालूम नही क्यों
हैरान था हर कोई मुझे
सोते
हुए
देख कर....
जोर-जोर से रोकर मुझे
जगाया जा रहा था...
काँप उठी
मेरी रूह वो मंज़र
देख
कर....
.
जहाँ मुझे हमेशा के
लिए
सुलाया जा रहा था....
.
मोहब्बत की
इन्तहा थी जिन दिलों में
मेरे
लिए....
.
उन्हीं दिलों के हाथों,
आज मैं जलाया जा रहा था!!!
लाजवाब लाईनें
इस दुनिया मे कोई किसी का
हमदर्द नहीं होता,
लाश को शमशान में रखकर अपने लोग ही पुछ्ते हैं।
लोगों ने रोज़ ही नया कुछ माँगा खुदा से
एक हम ही हैं तेरे ख्याल से आगे न गये............
तुम्हारे भरोसे से ही चलती हे मेरी साँसे
हो सके तो तुम मेरी साँसों का ख्याल रखना............
⚽उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है!
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है!
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है.............
काटो के बदले फूल क्या दोगे आँसू के बदले खुशी क्या दोगे हम चाहते है आप से उमर भर की दोस्ती हमारे इस शायरी का जवाब क्या दोगे...........
❤ अरमान था तेरे साथ जिंदगी बिताने का शिकवा है खुद के खामोश रह जाने का दीवानगी इस से बढकर और क्या होगी आज भी इंतजार है तेरे आने का............
बस जीने ही तो नहीं
देगी,
और कया कर लेगी याद तेरी..........
⚫आँसुओँ का कोई वजन नही होता दोस्त.पर ना जाने इनके गीर जाने से मन हल्का क्युँ होजाता है............
कितने आंसू बहूँगा उस बेवफा के लिए
जिसको खुदा ने मेरे नसीब मैं लिखा ही नहीं….........
☝तेरा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से☝कोई भी लफ्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं........
मुझे ये दिल की बीमारी ना होती
अगर तू इतनी प्यारी नहीं होती...........
बस यही दो मसले ज़िन्दगी भर ना हल हुए।
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए।
वक़्त ने कहा, काश थोड़ा और सब्र होता। सब्र ने कहा काश थोड़ा और वक़्त होता.........
मेरी हर गलती ये सोच कर माफ़ कर देना दोस्तों
कि तुम कोन से शरीफ़ हो...........
कभी फुरसत मिलें तो सोचना जरूर की ऐक लापरवाह लड़का क्यों तेरी परवाह करता था..!!........
हर दिन अपनी ज़िन्दगी को एकनया ख्वाब दो
चाहे पूरा ना हो पर आवाज़ तो दो
पूरे हो जायेंगे सारे ख्वाब तुम्हारे
सिर्फ एक शुरुआत तो दो...........
मैं जब सो जाऊं इन आँखों पे अपने होंठ रख देना यकीं आ
जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है....
आगे सफर था और पीछे हमसफर था....
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हम सफर छूट जाता...
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता...उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हम सफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो....
प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!