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शनिवार, 29 जुलाई 2023

हिचकियाँ

हिचकियाँ


"दिल में सिर्फ आप हो और कोई खाश कैसे होगा, 


यादों में आपके सिवा कोई पास कैसे होगा, 


हिचकियाँ कहती हैं आप मुझे याद करते हो, 


पर बोलोगे नहीं तो मुझे ये एहसास कैसे होगा."

रविवार, 17 सितंबर 2017

जख्म

जख्म


लोग शोर से जाग जाते हैं साहब, मुझे एक इंसान की ख़ामोशी सोने नही देती !!!


झूठी हँसी से ...जख्म और बढ़ता गया..


इससे बेहतर था ...खुलकर रो लिए होते..


कितना मुश्किल हैं जीना...!!!


जिसके लिये जीना... उसके बिना जीना.


आँसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ जिंदगी ,


ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके ..!!


[रह गयी है कुछ 'कमी' तो, शिकायत क्या है ,


इस जहाँ में सब 'अधूरा ' है ,मुकम्मल क्या है


रोकने की कोशिश तो बहुत की पलकों ने


पर इश्क मे पागल थे आंसू खुदखुशी करते रहे…


बड़े याद आते हैं वो भूले बिसरे दिन,


कुछ तेरे साथ......कुछ तेरे बिन...!


ये जीवन है...साहेब..


  *उलझेंगे नहीं,


  *तो सुलझेंगे कैसे...


  *और बिखरेंगे नहीं,


  *तो निखरेंगे कैसे....


खुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो,


आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो,


शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो,


दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुसवा न करो।

 

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

कुछ दिन से.

कुछ दिन से...............


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


बातें हैं पर चीत नहीं है


हैरां  हूं मैं देख के दुनिया


दुश्मन है सब मीत नहीं है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


हंसों में है मारामारी..


लछन इनके ठीक नहीं है


पंछी का मन आकुल व्याकुल


मुख पर मीठे गीत नहीं है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


मानसरोवर हूवा पराया


यहां कोई मन मीत नहीं है


हंसो का कलरव है गुपचुप


अब वह मधुर संगीत नही है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है


मिले प्रेम का प्रेम ही प्रतिफल


जग की एेसी रीत नहीं है


सब के सब रूठे बैढे हैं

अपनो में वह प्रीत नहीं है


कुछ दिन से कुछ ठीक नहीं है.............


सरदार सिंह सांदू "रचित"