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शनिवार, 29 जुलाई 2023

नासूर


नासूर


वक़्त नूर को बेनूर बना देता है!

छोटे से जख्म को नासूर बना देता है!

कौन चाहता है अपनों से दूर रहना


 पर वक़्त सबको मजबूर बना देता है!

बुधवार, 30 मई 2018

मकान सारे कच्चे थे : Best shayari in Urdu translation

मकान सारे कच्चे थे : Best shayari in Urdu translation


"मकान सारे कच्चे थे"
گهر سڀ ڪچا هئا  ----- هريونش راءِ بچن
मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे…
شايد گهر سڀ ڪچا هئا
پر رشتا سڀ سچا هئا
चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे…
کٽ تي وِهندا هُئاسين
ويجهو ويجهو رهندا هئاسين
सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए….
جڏھن سوفا ۽ ڊبل بيڊ اچي ويا
وڇوٽيون اسان جون وڌنڌيون ويون
छतों पर अब न सोते हैं
कहानी किस्से अब न होते हैं..
اڄ ڇتين تي نٿا سمهون
ڪهاڻيون ڪِسا بہ نٿا چئون
आंगन में वृक्ष थे
सांझा करते सुख दुख थे…
اڱر ٻاهر وڻ هوندا هئا
سک دک ونڊيا ويندا هئا
दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था…
دروازا کُلا رهندا هئا
ايندڙ ويندڙ بہ اندر اچي وهندا هئا
कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे…
ڪانوَ ڪان ڪان ڪندا هئا
مهمان ايندا ويندا هئا …
इक साइकिल ही पास थी
फिर भी मेल जोल की आस थी …
سائيڪل هڪ ئي هوندي هئي
پوءِ بہ ميل ميلاپ جي آس رهندي هئي …
रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे…
رشتا نباهيندا هئاسين
رٺل کي منائيندا هئاسين …
पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था…
پوءِ ناڻو بلاشڪ گهٽ ھو
پر مٿي تي ڪو گم نہ هو
मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे…
گهر بلاشڪ ڪچا هئا
پر رشتا سڀ سچا هئا …
अब शायद कुछ पा लिया है
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया है...
شايد هاڻ گهڻو ڪجهہ ڪمايو آ
پر لڳي ٿو گهڻو ڪجهہ وڃايو آ …
जीवन की भाग-दौड़ में –
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
جيون جي ڍُڪ ڊوڙ ۾ -
ڇو وقت ساڻ رنگيني گم ٿيندي آهي؟
کلندڙ ٽپندڙ زندگي عام ٿي ويندي آهي ؟
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!!
هڪ صبح ھو جڏھن کلندا اُٿندا هئاسين
۽ اڄ ڪيتريون شام ويلون
بنا مسڪرائيندي گذري وينديون آهن !!
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते...
ڪيترو تہ پري لنگهي آيا آهيون
رشتن کي نباهيندي نباهيندي …
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते...
پنهنجي ”پاڻُ “ کي وڃائي ڇڏيو آ
پنهنجن کي پائيندي پائيندي …
मकान चाहे कच्चे थे...
रिश्ते सारे सच्चे थे…
گهر بلاشڪ ڪچا هئا …
پر رشتا سڀ سچا هئا …

रविवार, 17 सितंबर 2017

जख्म

जख्म


लोग शोर से जाग जाते हैं साहब, मुझे एक इंसान की ख़ामोशी सोने नही देती !!!


झूठी हँसी से ...जख्म और बढ़ता गया..


इससे बेहतर था ...खुलकर रो लिए होते..


कितना मुश्किल हैं जीना...!!!


जिसके लिये जीना... उसके बिना जीना.


आँसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ जिंदगी ,


ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके ..!!


[रह गयी है कुछ 'कमी' तो, शिकायत क्या है ,


इस जहाँ में सब 'अधूरा ' है ,मुकम्मल क्या है


रोकने की कोशिश तो बहुत की पलकों ने


पर इश्क मे पागल थे आंसू खुदखुशी करते रहे…


बड़े याद आते हैं वो भूले बिसरे दिन,


कुछ तेरे साथ......कुछ तेरे बिन...!


ये जीवन है...साहेब..


  *उलझेंगे नहीं,


  *तो सुलझेंगे कैसे...


  *और बिखरेंगे नहीं,


  *तो निखरेंगे कैसे....


खुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो,


आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो,


शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो,


दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुसवा न करो।

 

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

गलत सुना था कि,

गलत सुना था कि,


गलत सुना था कि,


इश्क आँखों से होता है....


दिल तो वो भी ले जाते है,


जो पलकें तक नही उठाते....!!!!

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

नफरतों का असर देखो, जानवरों का बटंवारा हो गया,

नफरतों का असर देखो,जानवरों का बटंवारा हो गया,


मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..

नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.


मंदिरो मे हिंदू देखे, 
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.


ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं
सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू और 
खजूर मुसलमान हो गए..


न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......
मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....

जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है
कि हरा मुस्लिम का है
और लाल हिन्दू का रंग है
तो वो दिन दूर नही
जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी


और
हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा...

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक

ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक


ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक​;​​​
बिना रूह के नहीं रखते​, घर वाले भी ज़िस्म को​।
बहुत दिल दिखाया है लोगों ने मेरा
"ऐ - मौत"
अगर तू साथ दे तो सबको रुला सकता हूँ में.
ये कलम भी कमबख्त बहुत दिल जली है.....
जब जब भी मुझे दर्द हुआ ये खूब चली है....

सोमवार, 10 अगस्त 2015

रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर,

रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर


रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर,

                         
सब कुछ यहीं है,कहीं और  तलाश ना कर,


हरआरज़ू पूरी हो,तो जीने का  क्या मज़ा,


जीने के लिए बस एक खूबसूरत   वजह की तलाश कर,


ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,


अपनेअपने हिस्से की "दोस्ती"   निभाएंगे,

                    
बहुतअच्छा लगेगा ज़िन्दगी का   ये सफ़र,


आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,

           
क्या भरोसा है.जिंदगी का,


इंसान बुलबुला है पानी का,


जी रहे है कपङे बदल बदल कर,


एक  दिन एक "कपङे"में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर.



बुधवार, 5 अगस्त 2015

ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते

ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते


ना मस्जिद आजान देती ना मंदिर के घंटे बजते
ना अल्ला का शोर होता ना राम नाम भजते


ना हराम होती रातों की नींद अपनी
मुर्गा हमें जगाता सुबह के पांच बजते


ना दीवाली होती और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत ना बकरे शहीद होते


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता
काश कोई धर्म ना होता.


काश कोई मजहब ना होता.


ना अर्ध देते ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते ना विसर्जन होता


जब भी प्यास लगती नदिओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती नदिओं का गर्जन होता


ना भगवानों की लीला होती ना अवतारों
का
नाटक होता


ना देशों की सीमा होती ना दिलों का
फाटक
होता


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता
काश कोई धर्म ना होता


काश कोई मजहब ना होता


कोई मस्जिद ना होती कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता कोई काफ़िर ना
होता


कोई बेबस ना होता कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता


ना ही गीता होती और ना कुरान होता
ना ही अल्ला होता ना भगवान होता


तुझको जो जख्म होता मेरा दिल तड़पता
ना मैं हिन्दू होता ना तू मुसलमान होता


तू भी इन्सान होता मैं भी इन्सान होता.......

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

रिश्ता दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं

रिश्ता दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं


"रिश्ता" दिल से होना चाहिए, शब्दों से नहीं,
"नाराजगी" शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं!

सड़क कितनी भी साफ हो
"धुल" तो हो ही जाती है,
इंसान कितना भी अच्छा हो
"भूल" तो हो ही जाती है!!!

आइना और परछाई के
जैसे मित्र रखो क्योकि
आइना कभी झूठ नही बोलता और परछाई कभी साथ नही छोङती......

खाने में कोई 'ज़हर' घोल दे तो
एक बार उसका 'इलाज' है..
लेकिन 'कान' में कोई 'ज़हर' घोल दे तो,
उसका कोई 'इलाज' नहीं है।

"मैं अपनी 'ज़िंदगी' मे हर किसी को
'अहमियत' देता हूँ...क्योंकि
जो 'अच्छे' होंगे वो 'साथ' देंगे...
और जो 'बुरे' होंगे वो 'सबक' देंगे...!!

अगर लोग केवल जरुरत पर
ही आपको याद करते है तो
बुरा मत मानिये बल्कि
गर्व कीजिये  क्योंकि "
मोमबत्ती की याद तभी आती है,
जब अंधकार होता है।"

शनिवार, 25 जुलाई 2015

शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर

शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर


एक ही विषय पर 5 महान शायरों का नजरिया....

.
1- Mirza Galib :
"शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर,
या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं।"
.
2- Iqbal
"मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा, वहाँ ख़ुदा नहीं।"
.
3- Ahmad Faraz
"काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर, खुदा मौजूद है वहाँ, पर उसे पता नहीं।"
.
4- Wasi
"खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं।"
.
5- Saqi
"पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए,
जन्नत में कौन सा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मजा नही।"

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

रोज   तारीख   बदलती.  है,

रोज   तारीख   बदलती.  है,

रोज.  दिन.  बदलते.   हैं....
रोज.  अपनी.  उमर.   भी बदलती.  है.....
रोज.  समय.  भी    बदलता. है...
हमारे   नजरिये.  भी.  वक्त.  के साथ.  बदलते.  हैं.....
बस   एक.  ही.  चीज.  है.  जो नहीं.   बदलती...
और  वो  हैं  "हम खुद"....

और  बस   ईसी.  वजह  से  हमें लगता   है.  कि.  अब  "जमाना" बदल   गया.  है........

किसी  शायर  ने  खूब  कहा  है,,

रहने   दे   आसमा.  ज़मीन   कि तलाश.  ना   कर,,
सबकुछ।  यही।  है,  कही  और  तलाश   ना   कर.,

हर  आरज़ू   पूरी  हो,  तो   जीने का।  क्या।  मज़ा,,,
जीने  के  लिए   बस।  एक खूबसूरत   वजह।  कि   तलाश कर,,,

ना  तुम  दूर  जाना  ना  हम  दूर जायेंगे,,
अपने   अपने   हिस्से कि। "दोस्ती"   निभाएंगे,,,

बहुत  अच्छा   लगेगा    ज़िन्दगी का   ये   सफ़र,,,
आप  वहा  से  याद   करना, हम यहाँ   से   मुस्कुराएंगे,,,

क्या   भरोसा   है.  जिंदगी   का,
इंसान.  बुलबुला.  है   पानी  का,

जी  रहे  है  कपडे  बदल  बदल कर,,
एक  दिन  एक  "कपडे"  में  ले जायेंगे  कंधे  बदल  बदल  कर,,

शनिवार, 18 जुलाई 2015

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की

एक सुंदर कविता - खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की


खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।


अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।


ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!


एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।