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रविवार, 5 जुलाई 2015

दिलकी देहरी से

❤❤ दिलकी देहरी से ❤

सफल इनके वो सारे प्रयास हो गये
कुछ चेहरे और ज्यादा उदास हो गये

जो कर रहे थे हमसे बातें आम की
लोग वही सबसे पहले खास हो गये

नींद रात भर आँखों से छिपती फिरी
सपने भी सुबह तक निराश हो गये

जब देखी उसके हाथ में  दियासलाई
हम खुशी खुशी से सूखी घास होे गये

ऐ जिन्दगी ! तेरी इस ज़द्दोज़हद में
कितने ही लोग बेवक्त लाश हो गये

सच कहूँ भी तो बताओ  कैसे कहूँ
लफ़्ज़ तमाम मेरे  लबतराश हो गये

दिल की बात दिल तक कहाँ जाती है
पत्थरों से सख्त सब अहसास हो गये

�� रतनसिहं चम्पावत कृत ��

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