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सोमवार, 27 जुलाई 2015

वक़्त   नहीं

. . . . . एक  प्यारी  सी कविता . . . . .

              " वक़्त   नहीं "

हर  ख़ुशी   है  लोंगों   के  दामन  में,
पर   एक   हंसी  के  लिये  वक़्त  नहीं....

दिन  रात   दौड़ती   दुनिया   में,
"ज़िन्दगी"   के   लिये  ही   वक़्त नहीं......

सारे   रिश्तों  को   तो  हम  मार चुके,
अब   उन्हें   दफ़नाने  का   भी वक़्त  नहीं .....

सारे   नाम   मोबाइल   में   हैं ,
पर   "दोस्ती"   के   लिये   वक़्त  नहीं .....

गैरों   की   क्या   बात.  करें ,
जब   अपनों   के   लिये    ही वक़्त  नहीं......

आखों   में   है   नींद.  भरी ,
पर   सोने   का  वक़्त   नहीं......

"दिल"  है  ग़मो  से  भरा  हुआ ,
पर  रोने  का   भी   वक़्त   नहीं .

पैसों   की  दौड़  में   ऐसे   दौड़े, की,,
थकने   का  भी   वक़्त   नहीं ....

पराये  एहसानों   की  क्या   कद्र  करें ,
जब  अपने   सपनों   के   लिये  ही  वक़्त  नहीं.......

तू   ही   बता  दे  ऐ   ज़िन्दगी ,
इस   ज़िन्दगी   का   क्या  होगा,
की   हर   पल   मरने   वालों  को,,
जीने    के    लिये।  भी    वक़्त  नहीं.... ....

शनिवार, 18 जुलाई 2015

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की

एक सुंदर कविता - खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की


खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।


अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।


ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!


एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।