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मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती : A Fantastic poem

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.... 

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

मंगलवार, 12 जून 2018

लम्हे चुरा : A funny Hindi poem

लम्हे चुरा 


ज़िन्दगी से लम्हे चुरा, बटुए मे रखता रहा!
फुरसत से खरचूंगा, बस यही सोचता रहा।
उधड़ती रही जेब, करता रहा तुरपाई
फिसलती रही खुशियाँ, करता रहा भरपाई।
इक दिन फुरसत पायी, सोचा .......खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े, वो लम्हे खर्च आऊं।
खोला बटुआ..लम्हे न थे, जाने कहाँ रीत गए!
मैंने तो खर्चे नही, जाने कैसे बीत गए !!
फुरसत मिली थी सोचा, खुद से ही मिल आऊं।
आईने में देखा जो, पहचान  ही न पाऊँ।
ध्यान से देखा बालों पे, चांदी सा चढ़ा था।
था तो मुझ जैसा, जाने कौन खड़ा था।
                                                  -  चंद शब्द- हृदय से

सोमवार, 4 जून 2018

कामयाबी

कामयाबी

उन्हें कामयाबी में सुकून नजर आया
तो वो दौड़ते गए,
हमें सुकून में कामयाबी दिखी
तो हम ठहर गए...!

ख़्वाईशो के बोझ में बशर
तू क्या क्या कर रहा है..
इतना तो जीना भी नहीं
जितना तू मर रहा है.
..



बुधवार, 30 मई 2018

मकान सारे कच्चे थे : Best shayari in Urdu translation

मकान सारे कच्चे थे : Best shayari in Urdu translation


"मकान सारे कच्चे थे"
گهر سڀ ڪچا هئا  ----- هريونش راءِ بچن
मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे…
شايد گهر سڀ ڪچا هئا
پر رشتا سڀ سچا هئا
चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे…
کٽ تي وِهندا هُئاسين
ويجهو ويجهو رهندا هئاسين
सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए….
جڏھن سوفا ۽ ڊبل بيڊ اچي ويا
وڇوٽيون اسان جون وڌنڌيون ويون
छतों पर अब न सोते हैं
कहानी किस्से अब न होते हैं..
اڄ ڇتين تي نٿا سمهون
ڪهاڻيون ڪِسا بہ نٿا چئون
आंगन में वृक्ष थे
सांझा करते सुख दुख थे…
اڱر ٻاهر وڻ هوندا هئا
سک دک ونڊيا ويندا هئا
दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था…
دروازا کُلا رهندا هئا
ايندڙ ويندڙ بہ اندر اچي وهندا هئا
कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे…
ڪانوَ ڪان ڪان ڪندا هئا
مهمان ايندا ويندا هئا …
इक साइकिल ही पास थी
फिर भी मेल जोल की आस थी …
سائيڪل هڪ ئي هوندي هئي
پوءِ بہ ميل ميلاپ جي آس رهندي هئي …
रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे…
رشتا نباهيندا هئاسين
رٺل کي منائيندا هئاسين …
पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था…
پوءِ ناڻو بلاشڪ گهٽ ھو
پر مٿي تي ڪو گم نہ هو
मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे…
گهر بلاشڪ ڪچا هئا
پر رشتا سڀ سچا هئا …
अब शायद कुछ पा लिया है
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया है...
شايد هاڻ گهڻو ڪجهہ ڪمايو آ
پر لڳي ٿو گهڻو ڪجهہ وڃايو آ …
जीवन की भाग-दौड़ में –
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
جيون جي ڍُڪ ڊوڙ ۾ -
ڇو وقت ساڻ رنگيني گم ٿيندي آهي؟
کلندڙ ٽپندڙ زندگي عام ٿي ويندي آهي ؟
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!!
هڪ صبح ھو جڏھن کلندا اُٿندا هئاسين
۽ اڄ ڪيتريون شام ويلون
بنا مسڪرائيندي گذري وينديون آهن !!
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते...
ڪيترو تہ پري لنگهي آيا آهيون
رشتن کي نباهيندي نباهيندي …
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते...
پنهنجي ”پاڻُ “ کي وڃائي ڇڏيو آ
پنهنجن کي پائيندي پائيندي …
मकान चाहे कच्चे थे...
रिश्ते सारे सच्चे थे…
گهر بلاشڪ ڪچا هئا …
پر رشتا سڀ سچا هئا …

मंगलवार, 13 मार्च 2018

डाकू ग़ालिब : When shayar becomes a Decoit

डाकू ग़ालिब : When shayar becomes a Decoit


ग़ालिब ग़रीबी से तंग आकर
डाकू बन गए और डकैती करने एक बैंक गए ,
.
.
बैंक में घुसते ही हवाई फ़ायर करते हुए " अर्ज़ किया -
.
"तक़दीर में जो है वही मिलेगा,
हैंड्स-अप कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा...!!

.
ग़ालिब ने फिर ऊँची आवाज़ में अर्ज़ किया
.
"बहुत कोशिश करता हूँ उसकी यादों को भुलाने की,
ध्यान रहे कोई कोशिश न करना पुलिस बुलाने की..."
.
.
फिर कैशियर की कनपटी पे बंदूक रखते हुए कहा-
.
"ए ख़ुदा तू कुछ ख़्वाब मेरी आँखों से निकाल दे,
जो कुछ भी है, जल्दी से इस बैग में डाल दे..."
.
.
कैश लेने के बाद ग़ालिब ने लाॅकर की तरफ़ इशारा करके कैशियर से कहा -
.
"जज़्बातों को ना समझने वाला इश्क़ क्या सम्हालेगा
लाॅकर का पैसा क्या तेरा अब्बू बाहर निकालेगा .."
.
.
जाते जाते एक और हवाई फ़ायर करते हुए अर्ज़ किया -

.
"भुला दे मुझको क्या जाता है तेरा,
मार दूँगा गोली जो किसी ने पीछा किया मेरा..."

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

चिराग

चिराग

मैं तो चिराग हुँ 

तेरे आशियाने का,

 कभी ना कभी 

तो बुझ जाऊंगा,

आज शिकायत है 

तुझे मेरे उजाले से, 

कल अँधेरे में बहुत याद आऊंगा..




रविवार, 17 सितंबर 2017

जख्म

जख्म


लोग शोर से जाग जाते हैं साहब, मुझे एक इंसान की ख़ामोशी सोने नही देती !!!


झूठी हँसी से ...जख्म और बढ़ता गया..


इससे बेहतर था ...खुलकर रो लिए होते..


कितना मुश्किल हैं जीना...!!!


जिसके लिये जीना... उसके बिना जीना.


आँसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ जिंदगी ,


ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके ..!!


[रह गयी है कुछ 'कमी' तो, शिकायत क्या है ,


इस जहाँ में सब 'अधूरा ' है ,मुकम्मल क्या है


रोकने की कोशिश तो बहुत की पलकों ने


पर इश्क मे पागल थे आंसू खुदखुशी करते रहे…


बड़े याद आते हैं वो भूले बिसरे दिन,


कुछ तेरे साथ......कुछ तेरे बिन...!


ये जीवन है...साहेब..


  *उलझेंगे नहीं,


  *तो सुलझेंगे कैसे...


  *और बिखरेंगे नहीं,


  *तो निखरेंगे कैसे....


खुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो,


आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो,


शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो,


दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुसवा न करो।

 

शनिवार, 19 अगस्त 2017

शराब

शराब


ये वहम है तेरा कि 
मुझे बेहोश करती है शराब...
होश था ही कब मुझे ,
 तुझसे इश्क़ होने के बाद !!!

शनिवार, 12 अगस्त 2017

तकदीर

तकदीर



ऐ तकदीर,,,,


ला तेरे हाथों की उँगलियाँ दबा दूँ मैं,

थक गई होगी मुझे नचाते नचाते !!

Lovely lines from Ghalib: फ़ना

Lovely lines from Ghalib...

ख़ुदा की मोहब्बत को फ़ना कौन करेगा?
خُدا کی مہبت کو فنا کون کریگا؟
सभी बन्दे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा?
سبھی بندے نئک ہوں تو گناہ کون کریگا؟
ऐ ख़ुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना
اے خُدا میرے دوستوں کو سلامت رکھنا
वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा
ورنہ میری سلامتی کی دُعا کون کریگا
और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज़
اور رکھنا میرے دُشمنوں کو بہی مہفوذ
वरना मेरी तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा...!!!
ورنہ میری تیرے پاس آنے کی دُعا کون
   کریگا۔۔۔۔!!!

रविवार, 16 अगस्त 2015

बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में,

बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में,


एक दिवस को छोड़ बरस भर बंद रही हूँ तालों में,
बस केवल पंद्रह अगस्त को मुस्काने की आदी हूँ,
लालकिले से चीख रही मैं भारत की आज़ादी हूँ,
जन्म हुआ सन सैतालिस में,बचपन मेरा बाँट दिया,
मेरे ही अपनों ने मेरा दायाँ बाजू काट दिया,
जब मेरे पोषण के दिन थे तब मुझको कंगाल किया
मस्तक पर तलवार चला दी,और अलग बंगाल किया
मुझको जीवनदान दिया था लाल बहादुर नाहर ने,
वर्ना मुझको मार दिया था जिन्ना और जवाहर ने,
मैंने अपना यौवन काटा था काँटों की सेजों पर,
और बहुत नीलाम हुयी हूँ ताशकंद की मेजों पर,
नरम सुपाड़ी बनी रही मैं,कटती रही सरौतों से,
मेरी अस्मत बहुत लुटी है उन शिमला समझौतों से,
मुझको सौ सौ बार डसा है,कायर दहशतगर्दी ने,
सदा झुकायीं मेरी नज़रे,दिल्ली की नामर्दी ने,
मेरा नाता टूट चूका है,पायल कंगन रोली से,
छलनी पड़ा हुआ है सीना नक्सलियों की गोली से,
तीन रंग की मेरी चूनर रोज़ जलायी जाती है,
मुझको नंगा करके मुझमे आग लगाई जाती है
मेरी चमड़ी तक बेची है मेरे राजदुलारों ने,
मुझको ही अँधा कर डाला मेरे श्रवण कुमारों ने
उजड़ चुकी हूँ बिना रंग के फगवा जैसी दिखती हूँ,
भारत तो ज़िंदा है पर मैं विधवा जैसी दिखती हूँ,
मेरे सारे ज़ख्मों पर ये नमक लगाने आये हैं,
लालकिले पर एक दिवस का जश्न मनाने आये हैं
बूढ़े बालों को ये काली चोटी देने आये हैं,
एक साल के बाद मुझे ये रोटी देने आये हैं,
जो मुझसे हो लूट चुके वो पाई पाई कब दोगे,
मैं कब से बीमार पड़ी हूँ मुझे दवाई कब दोगे,
सत्य न्याय ईमान धरम का पहले उचित प्रबंध करो,
तब तक ऐसे लालकिले का नाटक बिलकुल बंद कर

परी हो तुम गुजरात की

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के लिए बेस्ट कविता| Best poem for Independence day 15 August


परी हो तुम गुजरात की, रूप तेरा मद्रासी !
सुन्दरता कश्मिर की तुममे ,सिक्किम जैसा शर्माती !!

खान-पान पंजाबी जैसा, बंगाली जैसी बोली !
केरल जैसा आंख तुम्हारा ,है दिल तो तुम्हारा दिल्ली !!

महाराष्ट्र तुम्हारा फ़ैशन है, तो गोवा नया जमाना !
खुशबू हो तुम कर्नाटक कि,बल तो तेरा हरियाना !!

सिधी-सादी ऊड़ीसा जैसी,एम.पी जैसा मुस्काना !
दुल्हन तुम राजस्थानी जैसी ,त्रिपुरा जैसा इठलाना !!

झारखन्ड तुम्हारा आभूषण,तो मेघालय तुम्हारी बिन्दीया है !
सीना तो तुम्हारा यू.पी है तो ,हिमांचल तुम्हारी निन्दिया है !!

कानों का कुन्डल छत्तीसगढ़ ,तो मिज़ोरम तुम्हारा पायल है !
बिहार गले का हार तुम्हारा ,तो आसाम तुम्हारा आंचल है !!

नागालैन्ड- आन्ध्र दो हाथ तुम्हारे, तो ज़ुल्फ़ तुम्हारा अरुणांचल
है !
नाम तुम्हारा भारत माता, तो पवित्रता तुम्हारा ऊत्तरांचल है !!

सागर है परिधान तुम्हारा,तिल जैसे है दमन- द्वीव !
मोहित हो जाता है सारा जग,रहती हो तुम कितनी सजीव !!

अन्डमान और निकोबार द्वीप,पुष्पों का गुच्छ तेरे बालों में !
झिल-मिल,झिल-मिल से लक्षद्वीप, जो चमक रहे तेरे गालों में !!

ताज तुम्हारा हिमालय है ,तो गंगा पखारती चरण तेरे !
कोटि-कोटि हम भारत वासियों का ,स्वीकारो तुम नमन मेरे !!


Happy Independence Day ...

एक नाराज गुरुदेव की चंद पंक्तियाँ...........

एक नाराज गुरुदेव की चंद पंक्तियाँ...................

राजनेताओं की बिरादरी तो चोरो की सिरमौर है,,,
पर कहते फिरते है यूं कि शिक्षक सारे चोर है।।
खुद की नाकामियों को तुम अपने
हाथों बांट रहे,,,
जिस डाली पर बैठे हो उसी डाली को काट रहे।।
सत्ता का असली घमंड तुम्हारे अन्दर छाया है,,
शिक्षा मंदिरों का मान तुम नीचों ने ही घटाया है।।
तोप, चारा, टैंक, क्या तुम कफऩ तक को खा गए,,,
भ्रष्टाचार के पितामह तुम वतन तक को पचा गए।।
राष्ट्र मर्यादाओं को तुमने कदम कदम पर तोड़ा है,,,
जिस महकमें के तुम रखवाले उस तक को तो नहीं छोड़ा है।।
तुम्हारें जैसो की इज्जत चौराहों पर उतारी जाती है,,,
पागल कुत्तों को सरेआम गोली मारी जाती है।।
कुंडली मार बैठे हो पदों पर फूट गई तकदीर यहीं,,,
राजनीति के आक्टोपसों! स्कूल तुम्हारी जागीर नहीं।।
गंदी राजनीति के अखाड़े तुमनेे विद्यालयों में खोल दिए,,,
विष भरे बोल तो खुद के सड़े मुँह से बोल दिए।।
शिक्षक थे तुम भी कैसे अपनी मर्यादा भूल गए,,,
राजनीतिक सिंहासन पर औकात
अपनी भूल गए।।
पहली शिक्षक माँ थी तुम्हारी कह
दो वो भी चोर है,,,
बाप चाचा ताऊ ने जो भी सिखाया कह दो सभी हरामखोर है।।
खुद को तुमने स्वयंभू राजा की छवि में जा कर कैद किया,,,
जिस थाली में खाया था उस थाली में जाकर छेद किया।।
करते फिरते हो जाकर गली गली जो शोर है,,,
कहते फिरते हो यूं कि शिक्षक सारे चोर है।।
गुरूजनों की पदरज का जिसने भी माथे पर चंदन कर डाला,,,
शिक्षक समाज ने उसका तन मन से अभिनंदन कर डाला।।
जब जब हमारे राष्ट्र पर संकट छाया है,,,
शिक्षक ने अपना दायित्व निभाया है।।
सोने की चिड़िया बनाने को सदियों से हमने जतन किए,,,
एक से बढकर एक राष्ट्र को हमने ही तो रतन दिए।।
जोतिबाफूले कहू,  चाणक्य कहूं समर्थ गुरू रामदास
या कहूं राधाकृष्णन,,,
द्रोण वशिष्ठ बाल्मीकी।
विद्यालयों में माँ बाप का किरदार
निभाता हूं,,,
इसीलिए सदियों से हर युग में पूजा जाता हूं।।
पर तुमने कभी मुझे डाकिया तो कभी मुझसे जनगणना करवाई है,
पोषाहार बनवा कर मुझ से
कभी पोलियो की दवा पिलवाई है।।
पर राष्ट्र हित में ये सारे काम जरूरी है,,,
पर तुमको लगता है ये हमारी मजबूरी है।।
शैक्षणिक कार्यों के अलावा कितने काम करवाते हो,,,
ट्रांसफर के नाम पर तुम ही हमारी तनख्वाह तक हड़प कर
जाते हो।।
मकड़जाल में उलझाकर
विद्यालयों को मकड़ी का जाला बना दिया,,,
एकीकरण समानीकरण के नाम पर शिक्षा को प्रयोगशाला बना दिया।।
बिना गुरू एक कदम भी चल दिए तो हाहाकार मच जायेगा,,,
शिक्षक सम्मानित नहीं होगा तो राष्ट्र में अँधकार मच जायेगा।।
कुछ भी बोलोगे तो सुन लें हम ऐसे भी मजबूर नहीं,,,
राष्ट्र निर्माता है हम कोई बँधुआ
मजदूर नहीं।।
शिक्षक के चरणों में गिरकर माफी मांगोेगे
तो वो तुम्हें माफ कर देगा,,,
नहीं तो इतिहास उठाकर देखो अगले चुनावों में फिर से वो पते साफ कर देगा।।
अरे इस जगत की तो शिक्षक एक सुनहरी भोर है,,,
भूल कर भी मत कहना अब कि शिक्षक सारे चोर है।।।।।

प्यास लगी थी गजब की...

प्यास लगी थी गजब की...


प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...


पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...


बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!


ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!


वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!


सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!


सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। 


आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।


"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और


 "किस्मत" महलों में राज करती है!!


"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
 
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,


वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

गलत सुना था कि,

गलत सुना था कि,


गलत सुना था कि,


इश्क आँखों से होता है....


दिल तो वो भी ले जाते है,


जो पलकें तक नही उठाते....!!!!

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

नफरतों का असर देखो, जानवरों का बटंवारा हो गया,

नफरतों का असर देखो,जानवरों का बटंवारा हो गया,


मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..

नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.


मंदिरो मे हिंदू देखे, 
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.


ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं
सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू और 
खजूर मुसलमान हो गए..


न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......
मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....

जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है
कि हरा मुस्लिम का है
और लाल हिन्दू का रंग है
तो वो दिन दूर नही
जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी


और
हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा...

जलते हुए दिए को परवाने क्या बुझायेंगे,

जलते हुए दिएको परवाने क्या बुझायेंगे


पाकिस्तानी बोलते है
कि
हम हिंदुस्तानिओ
को जिंदा जला देंगे...
.
उन के लिए  2 लाईन पेश
कर रहा हु -
.
"जलते हुए दिए
को परवाने
क्या बुझायेंगे,
जो मुर्दों को नही जलाते
वो जिन्दो को क्या जलाएंगे........
.
ना हम शैतान से हारे,
ना हम हैवान से हारे,
कश्मीर में
जो आया तूफान ,
ना हम उस तूफान से
हारे,
.
यही सोच कर ऐ
पाकिस्तान,
हमने तेरी जान
बक्शी है,
शिकारी तो हम है
मगर,
हमने कभी कुत्ते
नहीं मारे...।
.
वन्देमातरम !

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक

ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक


ये चाहतें​, ये रौनकें​, पाबन्द है मेरे जीने तक​;​​​
बिना रूह के नहीं रखते​, घर वाले भी ज़िस्म को​।
बहुत दिल दिखाया है लोगों ने मेरा
"ऐ - मौत"
अगर तू साथ दे तो सबको रुला सकता हूँ में.
ये कलम भी कमबख्त बहुत दिल जली है.....
जब जब भी मुझे दर्द हुआ ये खूब चली है....

सोमवार, 10 अगस्त 2015

रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर,

रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर


रहने दे आसमाँ ज़मीन की तलाश ना कर,

                         
सब कुछ यहीं है,कहीं और  तलाश ना कर,


हरआरज़ू पूरी हो,तो जीने का  क्या मज़ा,


जीने के लिए बस एक खूबसूरत   वजह की तलाश कर,


ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,


अपनेअपने हिस्से की "दोस्ती"   निभाएंगे,

                    
बहुतअच्छा लगेगा ज़िन्दगी का   ये सफ़र,


आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,

           
क्या भरोसा है.जिंदगी का,


इंसान बुलबुला है पानी का,


जी रहे है कपङे बदल बदल कर,


एक  दिन एक "कपङे"में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर.



रविवार, 9 अगस्त 2015

मेरा दर्द ना जाने कोई..... By a soldier..

मेरा दर्द ना जाने कोई.....

By a soldier..

ए भीड में रहने वाले इन्सान
एक बार वर्दी पहन के दिखा
ऑर्डर के चक्रव्यूह में से
छुटी काट कर के तो दिखा
रात के घुप्प अँधेरे में जब दुनिया सोती है
तू मुस्तैद खड़ा जाग के तो दिखा
बाॅर्डर की ठंडी हवा में चलकर
घर की तरफ मुड़ के तो दिखा
घर से चलने ले पहले वाइफ को
अगली छुट्टी के सपने तो दिखा
कल छुट्टी आउंगा बोलके
बच्चों को फोन पे ही चाॅकलेट खिला के तो दिखा
थकी हुई आखों से याद करने वाले
मां बाप को अपना मुस्कुराता चेहरा तो दिखा
ये सब करते समय
दुश्मनकी गोली सीने पर लेकर तो दिखा
आखिरी सांस लेते समय
तिरंगे को सलाम करके तो दिखा
छुट्टी से लौटते वक्त बच्चों के आंसू, माँ बाप की बेबसी, पत्नी की लाचारी को नज़रअंदाज कर के तो दिखा
सरकार कहती है शहीद की परिभाषा नही है
दम है तो भगत सिंह बन के तो दिखा
बेबस लाचार बना दिया है देश के सैनिक को
विपति के अलावा कभी उसको याद करके तो दिखा
रेगिस्तान की गर्मी, हिमालय की ठंड
क्या होती है वहां आकर तो दिखा
जगलं में दगंल, नक्सलियों का मगंल
कभी अम्बुश में एक रात बैठ कर तो दिखा
यह वर्दी मेरी आन बान और शान है
मेरी पहचान का तमाशा दुनियां को ना दिखा
देश पर मर मिट कर भी मुझे शहीद न कहने वाले,
अगर दम है तो एक बार वर्दी पहन के तो दिखा....
एक सैनिक की अपनी पहचान के लिए जंग जारी.....