मुरझाई टहनी प्यारी कितनी
चिड़िया दिल से हारी कितनी
स्वप्न संजोये अब भी मन में
प्रेम डोर यह भारी कितनी
चिंहुँक रही है फिर भी देखो
प्यारी इसको यारी कितनी
खुश बहुत मुरझाई डाली
पावन प्रीत हमारी कितनी
साथ निभाया हर हालत में
हम लोगों से न्यारी कितनी....
[ रतनसिहं चम्पावत ]
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