✳ कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...
✳ बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में..
✳ कांपते होठों से मैंने पुछा,
"क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"
✳ दूकानदार बोला:
✳ "कौनसा लोगे..?
✳ बेटे का ..या बाप का..?
✳ बहिन का..या भाई का..?
✳ बोलो कौनसा चाहिए..?
✳ इंसानियत का.या प्रेम का..?
✳ माँ का..या विश्वास का..?
✳ बाबूजी कुछ तो बोलो कौनसा चाहिए.चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...
✳ मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?
✳ दुकानदार नम आँखों से बोला:
✳ "संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है ..,माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे,
✳ और जिस दिन ये बिक जायेगा... उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..."
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