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गुरुवार, 18 जून 2015

मौत पर मै कैसे लिखु कविता

मौत पर मै कैसे लिखु कविता ,
मरने का नाम ही मौत होता,
या जीवन का अंत ही मौत होता।
तो मै बहाता अपने भावो की सरिता।
मौत पर मै कैसे लिखु कविता।।
मौत ही हमे जीने की राह बताती है।
मौत मिथ्यासंसार का भान कराती है।
मौत से अहसास पराए अपने का,
मौत मानवता का पाठ सीखाती है।।
न मरने का नाम मौत है।
न जीवन का अंत मौत है।।
मै बहा दु कैसे भावो की सरिता।
मै मौत पर कैसे लिखु कविता।।
उस पेड का भी क्या पेड होना,
जिस पर न फूल, न फल ,न छॉव है।
उन मां बाप का भी क्या जीना,
जिनके बेटो ने दिए उन्हे घाव है।।
नदी जो बारीश मे करे कलकल,
बाकी सदा ही मौन रहती है।
जीने की आशा मे हर पल वो,
मौत और बस मौत सहती है।।
नही मै नही लिख सकता,
जीवन के आदर्श ,मौत पर कविता।
मै बहा दू कैसे भावो की सरिता।
मै मौत पर कैसे लिखु कविता।

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