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मंगलवार, 30 जून 2015

किसी बला का था साया दरख्त पर

शायद किसी बला का था साया दरख्त पर ,
चिड़ियों ने रात शोर मचाया दरख्त पर ,
देखा न जाए धूप में जलता हूआ कोई ,
मेरा जो वश चले , करूं साया दरख्त पर ,
सब छोड़े जा रहे थे सफ़र की निशानियां ,
मैंने भी एक नक्श बनाया दरख्त पर ,
अब के बहार आई है शायद ग़लत जगह ,
जो ज़ख्म दिल पे आना था , आया दरख्त पर...

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