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सोमवार, 1 जून 2015

जिसको भी चाहा शिद्दत से चाहा है

जिसको भी चाहा शिद्दत से चाहा है
सिलसिला टूटा नहीं दर्द की ज़ंजीर का
वो शख्स जो कहता था तू न मिला तो मर जाऊंगा
वो आज भी जिंदा है यही बात किसी और से कहने के लिए
एक ही ज़ख्म नहीं सारा बदन ज़ख्मी है
दर्द हैरान है की उठूँ तो कहाँ से उठूँ
तमाम उम्र मुझे टूटना बिखरना था
वो मेहरबां भी कहाँ तक समेटता मुझे
तुम्हारी दुनिया में हम जैसे हजारों हैं
हम ही पागल थे जो तुम्हे पा के इतराने लगे
देखो तो 'चाँद' को कितना मिलता है हमसे,
तुम सा 'हसीन,
मुझ सा 'तन्हा'
रात भर गहरी नींद आना
इतना आसान नहीं..
उसके लिए दिन भर
ईमानदारी से जीना पड़ता हैं.
चेहरे'.अजनबी" हो जाये तो कोई बात नही लेकिन,
'रवैये' अजनबी" हो जाये तो 'बड़ी' "तकलीफ" देते हैं
इतनी बदसलूकी ना कर.
ऐ जिंदगी,
हम कौन सा यहाँ बार बार
आने वाले है.
प्यास बुझानी है तो उड़ जा पंछी शहर की सरहदों से दूर,
यहाँ तो तेरे हिस्से का पानी भी प्लास्टिक की बोतलों में बंद है.....

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