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सोमवार, 1 जून 2015

बदले रास्ते बदली मंजिल

बदले रास्ते बदली मंजिल तकदीर बदल गयी
बदकिस्मती हूई मेहरबान कि जिंदगी बदल गयी
एक सहारा था जिनसे मुहब्बत का वो भी हूए न अपने
वफा हूई काफूर उनकी भीनजरें बदल गयी
कैफिरतें दी तो उन्होंने बहुत अपनी बेवफाई की
कैसे मान लेता मैं कि हसरतें उनकी बदल गयी
जानता हूँ मैं कि होती है तब्दीलियां इंसा में वक्त के साथ
अफसोस महज इतना है वफा उनकी मुखालफत में बदल गई
पा तो जाऊंगा मैं बदले रास्तों से बदली हूई मंजिल
पर खुशी नहीं मिलेगी वो कि खुशियां सारी गम में बदल गयी
वक्त बेवक्त जब जरूरत हो अपना समझ कर याद कर लेना
एक तेरे बदलने से मेरी मुहब्बतें तो नहीं बदल गयी
मजबूर हूं रस्में उल्फ़त निभाने को अपनी ही वफा से
ये जानने के बाद भी कि फितरतें तुम्हारी बदल गयी

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