मुलाकात पूरी है और मैं हूँ
मगर बात अधूरी है और मैं हूँ
सफर तो कब का पूरा हो गया मगर
वही की वही दूरी है और मैं हूँ
ताब मेरे जुनूँ की केसे बयाँ करुँ
एक अजब बेखुदी है और मैं हूँ
सन्नाटोँ का शोर भी कब का थम गया
बस भीतर तक खामोशी है और मैं हूँ
न पूछ कि हादसो ने केसे संवारा मुझको
आंख भरी भरी सी है और मैं हूँ
फक़त तेरे एतबार पे जिंदा हूँ या रब
एक तेरा ही यकीं है और .....
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