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सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

"गुरु"जरुरी है.. "गुरुर" नहीं...

एक मित्र ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है, फारवर्ड करने से खुद को रोक नहीं पाया ....

जीभ जन्म से होती है 
और मृत्यु तक रहती है.....
क्योकि वो कोमल होती है.
दाँत जन्म के बाद में आते है 
और मृत्यु से पहले चले जाते हैं.. 
क्योकि वो कठोर होते है। 

छोटा बनके रहोगे तो 
मिलेगी हर बड़ी रहमत...
बड़ा होने पर तो 
माँ भी गोद से उतार देती है.
पानी के बिना नदी बेकार है,
     अतिथि के बिना आँगन बेकार है,
   प्रेम न हो तो सगे-सम्बन्धी बेकार है,
       पैसा न हो तो पाकेट बेकार है,
           और जीवन में गुरु न हो
               तो जीवन बेकार है,,
                इसलिए जीवन में
         "गुरु"जरुरी है.. "गुरुर" नहीं....!!!"

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