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गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

अंधेरो के माथे पर

अंधेरो के माथे पर रोज उजाले लिखता हूँ
मंजिलो के नाम पैरों के छालै लिखता हूँ

ज़माना तो महज़ लफ्ज़ों का दिवाना है
मैंअहसास के मुख पर ताले लिखता हूँ

वाद ए सबा के साज़ पर मखमली आवाज़ में
दिल जिसे गा सके वो गीत निराले लिखता हूँ

कि  पार उतरना ही सबका मुक्कद्दर नहीं होता
इन कश्तियों को समन्दर के हवाले लिखता हूँ

कब तक तू मुझे यूं आजमाएगी ए जिन्दगी
मैं दिल के नाम दर्द के निवाले लिखता हूँ

(रतन सिंह चम्पावत कृत)

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