कुल पेज दृश्य

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

मन के भीतर, उठते प्रश्नों से हारा हूँ

हे भारत के मुखिया मोदी , बेशक समर्थक तुम्हारा हूं
पर अपने मन के भीतर, उठते प्रश्नों से हारा हूं

मेरे सारे मित्र मुझे , मोदी का भक्त बताते हैं
पर मुझको परवाह नही है, बेशक हंसी उड़ाते हैं

मुझे 'संघ' ने यही सिखाया, व्यक्ति नही पर देश बड़ा
व्यक्ति आते व्यक्ति जाते , मैं विचार के साथ खड़ा

बचपन से ही मेरे मन में ,रहा गूंजता नारा है
जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है

इसीलिए तुमको कुछ कसमें ,याद दिलाना वाजिब है
मेरी आत्मा कहती है, ये प्रश्न उठाना वाजिब है

ये सौगंध तुम्हारी थी, तुम देश नही झुकने दोगे
इस माटी को वचन दिया था, देश नही मिटने दोगे

ये सौगंध उठा कर तुमने, वंदे मातरम बोला था
जिस को सुनकर दिल्ली का, सत्ता सिंहासन डोला था

आस जगी थी किरणों की, लगता था अंधकार खो जायेगा
काश्मीर की पीड़ा का , अब समाधान हो जायेगा

जाग उठे कश्मीरी पंडित, और विस्थापित जाग उठे
जो हिंसा के मारे थे , वे सब निर्वासित जाग उठे

नई दिल्ली से जम्मु तक, सब मोदी मोदी दिखता था
कितना था अनुकूल समय, जो कभी विरोधी दिखता था

फिर ऐसी क्या बात हुई, जो तुम विश्वास हिला बैठे
जो पाकिस्तान समर्थक हैं, तुम उनसे हाथ मिला बैठे

गद्दी पर आते ही उसने, रंग बदलना शुरू किया
पहली प्रेस वार्ता से ही, जहर उगलना शुरू किया

जिस चुनाव को खेल जान पर, सेना ने करवाया है
उस चुनाव का सेहरा उसने, पाक के सिर बंधवाया है

संविधान की उड़ा धज्जियां,अलगावी स्वर बोल दिए
जिनमें आतंकी बंद थे , वे सब दरवाजे खोल दिए

अब बोलो क्या रहा शेष,बोलो क्या मन में ठाना है
देर अगर हो गयी समझ लो,जीवन भर पछताना है

गर भारत की धरती पर,आतंकी छोड़े जायेगें
तो लखवी के मुद्दे पर, दुनिया को क्या समझायेंगे

घाटी को दरकार नही है, नेहरू वाले खेल की
यहां मुखर्जी की धारा हो ,नीति चले पटेल की

अब भी वक़्त बहुत बाकी है, अपनी भूल का सुधार करो
ये फुंसी नासूर बने ना, जल्दी से उपचार करो

जिस शिव की नगरी से जीते,उस शिव का तुम कुछ ध्यान करो
इस मंथन से विष निकला है, आगे बढ़ कर पान करो

गर मैं हूं भक्त तुम्हारा तो, अधिकार मुझे है लड़ने का
नही इरादा है कोई, अपमान तुम्हारा करने का

केवल याद दिलाना तुमको, वही पुराना नारा है
जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें