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मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

मुक़द्दर का सिकंदर

तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है
कहीं ज़ख्म तो कहीं पीठ में खंजर क्यों है

सुना है तू हर ज़र्रे में है रहता, फिर
ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यों है

जब रहने वाले दुनियां के हर बन्दे तेरे हैं,
फिर कोई दोस्त तो कोई दुश्मन क्यों है..

तू ही लिखता है हर किसी का मुक़द्दर, फिर
कोई बदनसीब, कोई मुक़द्दर का सिक्कंदर क्यों है..

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