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सोमवार, 20 अप्रैल 2015

दिल की देहरी से ..........

दिल की देहरी से ...........
अाज की गजल....

कभी कभार अपने दिल की भी सुन लिया कर
ख्वाब सुनहरे पलकोँ पर बुन लिया कर

क्या देखता है मेरी आखोँ मेँ इतनी हसरत से
आईने के लिए भी कुछ लम्हे चुन लिया कर

जीने का शऊर सीख जरा इन शाखों  से
बहती हवाओं के साथ थोडा झुक लिया  कर

कश्तीयों के भरोसे ही  मिलती नहीँ मंजिल फकत
उतरने से पहले इन हवाओं का रुख लिया कर

फूल बनकर ही तुमने मुझे ज़ख्मी हर बार किया
अपनी जात पे आ ,कभी काँटे सा चुभ लिया कर

आना और जाना ही दस्तूर नहीँ इस दुनिया का
वक्त नहीँ है तू ,कंही पे दम पर रुक लिया कर

रोशनी की कद्र भला तारीकियोँ ने कब जानी है
बस अंदर से जल बाहर से बुझ लिया कर

(Ratan Singh Champawat)

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