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सोमवार, 20 अप्रैल 2015

अब तो आप लोगों से ही आशा है।

लड़की पसंद की शादी करने के कुछ दिनो के बाद शर्मिंदा-शर्मिंदा वापिस अपने मायके आ गयी।
माँ ने वजह पूछी , तो बोली:

क्या बताऊँ माँ...
लड़का तो "अध्यापक" निकला..
एक नंबर का कंगाल।
न घर न द्वार, न पैसा न माल।
बस श्रीमान ठन-ठन गोपाल।
5 पैसे की सेविंग नहीं।
घर किराए का था,
बाइक लोन पर है ,
मोबाइल चाइना का है ,
परचून की दुकान में,
12'570/- की उधारी है।
पैसा वो देता नहीं...
दुकानदार मुझे घूरता है।
एक LIC की पालिसी है,
मात्र 500 रु. महीना..
उसका भी तीन महीने से
प्रीमियम नहीं पटा है।
और तो और...
उसको 8 साल भी नहीं हुआ है।
जिसको सरकार ही
अपना नहीं मानती।
वो भला मेरा कैसे होगा??
ना आने का पता...
ना जाने का।
कभी 10 से 5 बजे,
कभी 9 से 3 बजे,
तो कभी 7 से 11 बजे जाता है।
समझ नहीं आता...
नाश्ता बनाऊं कि खाना??
कभी बी.एल.ओ. बन जाता है,
तो कभी अभिहित अधिकारी
जबरदस्ती का ओवरटाइम।
छुट्टियों में भी काम,
टाइम बच गया तो ट्रेनिंग।
तनख्वाह के बारे में
जब भी पूछो...
एक ही जवाब देता है,
अलाटमेंट नहीं है।
अब पता नहीं ये क्या होता है।
ना प्रमोशन का पता,
ना प्यार-मोहब्बत का टाइम।
ऊपर से सरकारका वादा,
पैसा कम और टेंसन ज्यादा!!
आजकल पता नहीं कौन सा
नजरी नक्शा बना रहा है,
पिछले 15 दिन से तो
नज़र ही नही आ रहा है।
उसके साथ जीवन मेरा तमाशा है,
अब तो आप लोगों से ही आशा है।

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