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गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

जज्वात की कलम से

जज्वात की कलम से जिगर के पास लिखा कर
मायूसियाँ छोड़, रोज एक नयी आस लिखा कर
  ऐब को हुनर समझ के जो इतराता रहा उम्र भर
  ये दिलफरेबी छोड़ ,कुछ दिलखराश लिखा कर
बड़े शौक से गया था सुनाने उसको नई गजल
कहने लगा वो, लफ़्ज छोड़ अहसास लिखा कर
फूल खुशबू हुस्न ओ ईश्क रंज ओ गम मय साकी
ये चलन अब आम है छोड़ ,कुछ खास लिखा कर
उतर जा अन्दर तक अँधेरों में तलाश कोई रोशनी
कशमकश ये छोड़ कुछ सुनहरे कयास लिखा कर
किस किस की तस्दीक में यूं जाया करेगा जिन्दगी
खुदासनासी छोड़ और  खुदसनास लिखा कर
अक्ल ओ खिरद दानिशवरी से  क्या हुआ हासिल
ये होशियारी छोड़ अब तू बदहवास लिखा कर

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